कविता : बलिका का परिचय-सुभद्रा कुमारी चौहान

यह मेरी गोदी की शोभा,
सुख सोहाग की है लाली
शाही शान भिखारन की है,
मनोकामना मतवाली।
दीप-शिखा है अँधेरे की,
घनी घटा की उजियाली
उषा है यह काल-भृंग की,
है पतझर की हरियाली।
सुधाधार यह नीरस दिल की,
मस्ती मगन तपस्वी की
जीवित ज्योति नष्ट नयनों की,
सच्ची लगन मनस्वी की।
बीते हुए बालपन की यह,
क्रीड़ापूर्ण वाटिका है
वही मचलना, वही किलकना,
हँसती हुई नाटिका है।
मेरा मंदिर, मेरी मसजिद,
काबा काशी यह मेरी
पूजा पाठ, ध्यान, जप, तप,
है घट-घट वासी यह मेरी।
कृष्णचंद्र की क्रीड़ाओं को
अपने आँगन में देखो
कौशल्या के मातृ-मोद को,
अपने ही मन में देखो।
प्रभु ईसा की क्षमाशीलता,
नबी मुहम्मद का विश्वास
जीव-दया जिनवर गौतम की,
आओ देखो इसके पास।
परिचय पूछ रहे हो मुझसे,
कैसे परिचय दूँ इसका
वही जान सकता है इसको,
माता का दिल है जिसका।