हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

भाषा और वर्ग

0 1,464

भाषा और वर्ग का pdf प्राप्त करने के सबसे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

वर्ग से तात्पर्य है एक ही प्रकार अथवा बहुत कुछ मिलता-जुलता समूह । जब हम वर्ग को भाषा से जोड़ते है तो इसका तात्पर्य है एक समाज के भीतर जितने भी वर्ग पाए जाते हैं उनकी भाषा या उन सभी वर्गों का भाषा पर पड़ने वाला प्रभाव। एक ही समाज में कई वर्ग पाए जाते हैं जैसे उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, मध्य वर्ग, शिक्षित वर्ग, अशिक्षित वर्ग, पुरुष वर्ग, स्त्री वर्ग, शहरी वर्ग, ग्रामीण वर्ग, विभिन्न आयु वर्ग के अनुसार भी वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के कार्य क्षेत्रों एवं भौगोलिकता के आधार पर भी भाषा में बदलाव देखा जा सकता है।

एक ही समाज में रहने पर भी हम विभिन्न वर्गों की भाषाओं में आसानी से अंतर देख सकते हैं। प्रत्येक वर्ग की भाषा उसकी सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्था से प्रभावित होती है । परन्तु यह आवश्यक है कि प्रत्येक वर्ग की भाषा कुछ इस प्रकार हो कि विभिन्न व्यवस्थाओं में रहने के बावजूद भी वह बोधगम्य हो। इस प्रकार एक समाज में कई भाषा कोड होने के बावजूद संप्रेषण के दृष्टिकोण से यह आवश्यक हो जाता है कि बोधगम्यता इन वर्गों का मुख्य आधार हो। प्रत्येक भाषा वर्ग का अपना एक कोड होता है। जिसे कूट भाषा – या कोड-भाषा कहते हैं किसी भी समाज में भाषा के कई कोड-आधात्री होते हैं। कोड-आधात्री को ‘कोड-मैट्रिक्स’ भी कहा जाता है। जिस प्रकार वाक्य-स्तर पर पर्यायवाची शब्दों की सत्ता और महत्व है और जिस भाषा – स्तर पर शैली-भेद की स्थिति और प्रयोजन सिद्ध है, उसी प्रकार बहुभाषी समाज के संदर्भ में उस भाषा-भेद की प्रकृति और उनके प्रयोजन का महत्व है जो उस भाषायी समाज की ‘कोड-मैट्रिक्स’ है। इस प्रकार एक ही समाज में रहते हुए व्यक्ति कई भाषा-कोड़ों का प्रयोग कर सकता है। प्रायः कोड़ों को नियमों के एक ऐसे समुच्यय के अर्थ में परिभाषित किया जाता है जो वक्ताओं की पारस्परिक बोधगम्यता का आधार हो।

उच्च वर्ग, मध्य वर्ग, और निम्न वर्ग की भाषा में स्पष्ट रूप से अन्तर देखा जा सकता है। उच्चवर्ग और निम्नवर्ग का निर्धारण प्रायः धनसम्पत्ति के आधार पर किया जाता है। उच्चवर्ग की भाषा में अधिकतर अंग्रेजी भाषा के वाक्य और प्रोक्ति की संख्या अधिक दिखलाई पड़ती है। कई कारणों से उन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य और एक देश से दूसरे देश जाना पड़ता है जिससे वे अपनी मातृभाषा के अलावा अन्य भाषा को भी सीखते और बोलने लगते हैं। इस वर्ग की भाषा में भाषा के मानक रूप का प्रयोग अधिक दिखलाई पड़ता है। इसके अलावा उनकी शैली और उच्चारण में भी निम्न और मध्य वर्ग से अंतर देखा जा सकता है। मध्य वर्ग की भाषा में प्राय: अंग्रेजी भाषा के शब्दों वाक्यों और उपबंधों की संख्या अधिक दिखलाई पड़ती है। इनकी भाषा मुख्य रूप से इनकी मातृभाषा ही होती है। ये अंग्रेजी भाषा का प्रयोग तो करते हैं परन्तु उसकी शैली मातृभाषा के उच्चारण स्तर के आधार पर आधारित होती है। निम्न वर्ग की भाषा में उस क्षेत्र विशेष की भाषा के शब्द और वाक्य अधिक संख्या में दिखलाई पड़ते हैं। जिस क्षेत्र के भाषा-भाषी वे होते हैं ये छोटे वाक्यों का प्रयोग अधिक करते हैं इसके अलावा इनकी भाषा में बदलाव का एक अन्य कारण यह भी है कि ये वर्ग कहीं मजदूरी करने या कहीं और किसी श्रमिक कार्य करने के लिए रख लिए जाते हैं यह आवश्यक नहीं कि ये अपने क्षेत्र विशेष में ही कार्य करें बल्कि इन्हें कई कारणों अपने क्षेत्र से बाहर भी जाना पड़ता है जिससे कि उनकी भाषा में अन्तर पैदा हो जाता है और क्रियोल की स्थिति पैदा हो जाती है।

शिक्षित वर्ग और अशिक्षित वर्ग की भाषा में भी स्पष्ट अन्तर देखा जा सकता है। शिक्षित वर्ग की भाषा में हमें मानक शब्दावली अधिक दिखाई देती है। इसके अतिरिक्त शिक्षित वर्ग सामाजिक, राजनीतिक रूप से जागरूक रहने वाला वर्ग है तो उसकी भाषा में हमें वैचारिकता तथा सक्षम विचार अधिक दिखाई देते हैं। यह वर्ग सृजनात्मक कार्यों में भी अपेक्षतया अधिक जागरूक दिखलाई पड़ता है । इस वर्ग की भाषा में हमें औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रकार की भाषा मिलती है। स्थिति और स्थान विशेष के अनुसार इनकी भाषा में बदलाव देखा जा सकता है। इनकी भाषा व्याकरणिक रूप से शुद्ध और तार्किक होती है तथा इनकी शैली भी विशिष्ट होती है। जबकि अशिक्षित वर्ग की भाषा में स्थानीय शब्दों तथा क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग अधिक पाया जाता है। कई बार भाषा में अशुद्धिकरण भी इनकी भाषा में दिखाई देता है।

स्त्री वर्ग और पुरुष वर्ग की भाषा में हमें बहुत अंतर दिखाई देता है। स्त्री वर्ग और दिखाई देता है। स्त्री वर्ग के विषय अधिकांश रूप से रसोई, बच्चे घर आदि से पुरुष वर्ग की भाषा में हमें उन दोनों के विषय और शब्दावली में अन्तर संबंधित होते हैं। जबकि पुरुषों की भाषा के विषय मार्केट, कार्यालय, समाज, राजनीति आदि से अधिक जुड़े हुए होते हैं। स्त्रियों की भाषा पुरुषों की भाषा की अपेक्षा अधिक परिष्कृत होती है। हमारे समाज में यह माना जाता है कि बच्चों को पालने-पोसने तथा उन्हें सुसंस्कृत बनाने की जिम्मेदारी माँ के ऊपर अधिक होती है। क्योंकि माँ उनके साथ पिता की अपेक्षा अधिक समय बिताती है। स्त्री वर्ग की भाषा सरल तथा शैली वर्णनात्मक पाई जाती है। जबकि पुरुष की भाषा में हमें कठोरता अधिक दिखाई देता है। ये उनके पारंपरिक संस्कार के कारण भी देखा जा सकता है।

ग्रामीण वर्ग की भाषा में क्षेत्रीय बोलियों को अधिक देखा जाता है। इसके साथ ही उनकी भाषा में कृषि, घरेलू – व्यवसाय, छोटे-छोटे उद्योग आदि से संबोधित शब्दावली अधिक दिखलाई पड़ती है वाक्य छोटे-छोटे सरल शैली का प्रयोग ग्रामीण लोग अधिक करते हैं। दूसरी ओर शहरी वर्ग की भाषा में हमें महानगरीय जीवन से जुड़े सभी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विषयों की चर्चा देखी जा सकती है। शहरी वर्ग की भाषा में हमें अधिकांश अंग्रेजी भाषा. मानक शब्दावली तथा व्याकरण का प्रयोग अधिक दिखाई देता है।

इसके अतिरिक्त विभिन्न आयु वर्ग के अनुसार भी भाषिक वर्गों में उनकी शब्दावली, उच्चारण, शैली आदि को लेकर अंतर देखा जा सकता है।

इस study material की pdf डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Leave A Reply

Your email address will not be published.