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सप्रसंग व्याख्या, सुंदरकांड: तुलसीदास

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2.  तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुन्दर।
चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष विषाद हृदयै अकुलानी।।
जीति को सकङ् अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।।
सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।
रामचन्द्र गुन बरने लागा। सनतहिं सीता कर दुख भागा।।
लागीं सुने स्त्रवन मन लाई। आदिहुँ ते सब कथा सुनाई।।
श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कही सो प्रगट होति किन भाई।।
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठी मन बिसमय भयऊ।।
रामदूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।।
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।।
नर बानरहि संग कहु कैसें। कही कथा भइ संगति जैसे।।
दो कपि के वचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।
जाना मन क्रम वचन येह कृपासिंधु कर दास।।

व्याख्या- प्रस्तुत पद में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा बताया गया है कि जब माता सीता ने राम नाम से अंकित सुन्दर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचान कर माता सीता आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगी। और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं। वे सोचने लगीं कि श्रीराम तो अपराजेय हैं और माया से भी ऐसी अँगूठी नहीं बनायी जा सकती है। माता सीता के मन में अनेक विचार आ रहे थे कि उसी समय हनुमान जी मधुर वाणी से बोले- वे श्री राम के गुणों का वर्णन करने लगे। इन्हें सुनते ही सीता जी की पीड़ा दूर हो गई। वे ध्यान से उनका गुणगान सुनने लगी। हनुमान जी ने आदि से अब तक सारी कथा सुनाई। सीता माता कथा सुनने के बाद कहती है कि जिसने कानों को अमृत के समान कथा सुनाई है वह स्वयं प्रकट क्यों नहीं होता। तब हनुमान जी प्रकट होकर उनके पास चले गये। उन्हें देखकर सीता जी ने मुँह फेर लिया, उनके मन में आश्चर्य हुआ। हनुमान जी ने कहा हे माता जानकी! मैं श्री राम का दूत हूँ। मैं दयानिधान श्रीराम की सच्ची शपथ लेता हूँ कि यह अँगूठी मैं ही लाया हूँ। श्रीराम ने यह निशानी आपको देने के लिए स्वयं मुझे दी है।

          सीता जी ने पूछा- नर और वानर का संग (मिलन) कहा कैसे हुआ? तब हनुमान ने श्री राम के साथ मिलन की सारी कथा सुना दी।

          हनुमान के वचनों को सप्रेम सुनने के पश्चात् सीता को उन पर विश्वास हो गया। उन्होंने समझ लिया कि वह मन, वचन, कर्म से श्री राम का सच्चा भक्त है।

विशेष-

  1. तुलसीदास की भाषा बहुत सरल एवं सारगर्भित है।
  2. रसों का प्रयोग।
  3. छन्दों का बहुत ही मनोहर वर्णन। 
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