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सप्रसंग व्याख्या, सुंदरकांड: तुलसीदास

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1.  प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।
हृदय राखि कोसलपुर राजा।।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
गरुड़ सुमेरू रेनु समताही।
राम कृपा करि चितवा बाही।।
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना।
पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।
देख जहँ तहँ अगनिज बोधा।।
गएऊ दसानन मंदिर माहीं।
अति विचित्र कहि जात सो नाहीं।
सयम किए देखा कपि तेही।
मंदिर मँहु न दीखि बैदेही।।
भवन एक पुनि दीख सोहावा।
हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।।

दो.-  रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाई   
नव तुलसिका बृंद तह देखी हरष कपिराई।।5।।

संकेत- प्रबिसि नगर कीजै ……….. हरष कपिराइ।

संदर्भ- प्रस्तुत काव्यांश रामचरितमानस के एक खण्ड सुन्दरकाण्ड से लिया गया है। जिसके रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश में गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान की वीरता का वर्णन करते हुए बताते हैं कि वह किस प्रकार अपनी वीरता और बुद्धि के बल पर माता सीता का पता लगाते हैं। वह विशाल समुद्र को पार करके किस प्रकार लंका में प्रवेश करते हैं, इन सब का वर्णन तुलसीदास कर रहे हैं।

व्याख्या- प्रस्तुत पद में बताया गया है कि हनुमान जी जब लंका में प्रवेश करते हैं तो उन्हें रास्ते में (लंका के द्वार पर) लंकिनी नामक राक्षसी मिल जाती है, वह उन्हें लंका में प्रवेश करने से रोकती है और फिर हनुमान जी द्वारा मुष्टिका प्रहार करने पर वह जान जाती है कि वे श्री राम के दूत है। तत्पश्चात् वह कहती है कि हे! हनुमान आप श्री राम का स्मरण करते हुए लंका नगरी में प्रवेश करे और अपने सभी कार्य सम्पन्न करे। उनकी कृपा से विष अमृत के समान और शत्रु मित्र बन जाता है। सागर की गहराई गाय के खुर के समान और अग्नि शीतल हो जाती है।

          काकभुशुण्डी गरुड़ जी से कहते हैं कि हे गरुड़ जी! सुमेरू पर्वत उसके लिए कुछ नहीं है, वह उसके लिए धूल के समान है, जिसे श्री रामचन्द्र जी ने एक बार कृपा दृष्टि से देख लिया है। प्रभु श्री राम जी की कृपा जिस पर हो जाती है उसके लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। तब हनुमान जी ने अत्यन्त छोटा रूप धारण किया और प्रभु श्री राम को स्मरण किया और लंका में प्रवेश किया।

          वहाँ जाकर उन्होंने महलों-महिलों में सीता को ढूँढा। उन्हें हर जगह अनगिनत योद्धा दिखाई पड़ते हैं। इस क्रम में उन्होंने रावण का महल भी देखा। वह बहुत ही विशाल, भव्य और विचित्र था जिसका वर्णन करना संभव नहीं है।

          हनुमान जी ने वहाँ रावण को सोते देखा पर उन्हें माता सीता कहीं दिखाई नहीं दे रहीं थीं। पुनः उन्हें एक और सुन्दर महल दिखा। वहाँ एक भगवान का मंदिर भी बना हुआ था। उस महल के मंदिर में श्री राम के धनुष बाण अंकित थे जिसकी सुन्दरता अप्रतिम थी। तुलसी के नए हरे-भरे पौधे को वहाँ देख कर अत्यन्त प्रसन्न हुए।

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