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मॉडल प्रश्न उत्तर, हिन्दी कविता सेमेस्टर-2, इकाई-3 बिहारी-2

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निम्नलिखित मॉडल प्रश्नोत्तर बी.ए.(ऑनर्स) हिन्दी के सेमेस्टर-2 के पेपर हिन्दी कविता: सगुण भक्तिकाव्य एवं रीतिकालीन काव्य के हैं।

बिहारी (बिहारी रत्नाकर)

प्रश्न-2. बिहारी की काव्यगत विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए।

अथवा

“बिहारी के काव्य में शृंगार, नीति और भक्ति की त्रिवेणी प्रवाहित हुई है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।

उत्तर- बिहार के काव्य की काव्यगत विशेषताएँ-

बिहारी के काव्य का भाव पक्ष-

1.  शृंगारिक भावों का वर्णन- इन्होंने शृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग और वियोग का सुंदर, चित्रण प्रस्तुत किया है। संयोग शृंगार के अंतर्गत आने वाली किसी भी स्थिति को नहीं छोड़ा है। इस पक्ष के अंतर्गत आलंबन और आश्रय को सुंदर चित्रित करते हुए अधिकांशतः राधा और कृष्ण को आधार बनाया है। इन्होंने नायिका के नख-शिख सौंदर्य का वर्णन दूत और दूतिका को नायक एवं नायिका के पास भेजना, नायक एवं नायिका के हँसी-मजाक, नायिका के कटाक्ष, पतंग बाजी, आँख-मिचौली, नायक और नायिका की प्रेम क्रीडाओं इत्यादि का सुंदर, वर्णन किया है। कुछ स्थानों पर इन्होंने वर्णन करते हुए अपनी ईष्ट देवी राधा की प्रेम रूप को दिखाया है।         

नायिका के नख-शिख सौन्दर्य के अन्तर्गत वर्णन करते हुए इन्होंने नायिका के मुख के सौन्दर्य को देख कर बताया कि इससे चन्द्रमा की चाँदनी को बताया कि इससे चन्द्रमा की चाँदनी को भ्रम हो जाता है-

“पत्रा ही तिथि पाइए वा घर के चहुँ पास।
निति प्रति पून्यों ही रहत आनन ओज उजाय।।”         

इसके अंतर्गत हँसी मजाक से युक्त वर्णन को प्रस्तुत करते हुए कवि कहते हैं-

“बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौह करै भौहेनु हंसै, दैन कहै नटि जाय।।”         

नायिका अपनी शरीर की कोमलता के कारण आभूषणों के भार को सहन करने में असमर्थ है। इसका वर्णन प्रस्तुत करते हुए कवि कहते हैं-

“भूषण भार न संभारिये, क्यों इति तन सुकुमार।
सूधे पाइन्न धर परै, सोभा ही के भार।।”         

कवि ने अपने एक दोहे में 7 भावों का चित्रण करते हुए कहा है-

“कहत, नटत, रीझत, खीजत, मिलत, खिलत, लजियात,
भरे भौन में करत है, नैनन ही सो बात।।”      

जितनी चतुराई से बिहारी ने संयोग शृंगार का वर्णन किया है, उतनी चतुराई वियोग शृंगार में नहीं दिखायी देता है।

1. वियोग- इसमें नायक और नायिका के मिलन के बाद बिछुड़ना दिखाया जाता है। कवि ने वियोग अवस्था में नायिका के अश्रुओं का विरह की अग्नि से भाप बनकर उड़ना बताया है। कवि कहते हैं कि नायिका विरह के कारण अत्यधिक दुर्बल हो गयी है-

“इत आवत, उत जात है, चली छः सातक हाय।
चढ़ी हिडोरे सी रहैं, लगी उसासन साध।।”      

बिहारी कहते हैं कि रात्रि में सखियाँ गीले वस्त्र पहनकर उस नायिका के पास जाती है जो विरह से युक्त है। इन्होंने वियोग शृंगार के चार भेदों-पूर्वराग, मान, प्रवास, करुण में से पूर्वराग और मान का वर्णन अधिक किया है।

2. भक्ति भावना- रीतिकाल के कवि होने पर भी ये राधा और कृष्ण की भक्ति से युक्त थे। इन्होंने सुख-दुःख में ईश्वर को न भूलने की बात कहीं है। साथ ही राधा-कृष्ण को सांसारिक बाधाओं को हरने वाला बताया है। इन्होंने श्रेष्ठ संपत्ति कृष्ण को कहा है-

कोऊ कोटिक संग्रहौ कोऊ लाख हजार।
मो संपत्ति जहुपति, विपत्ति विहारनहार।।”

ये कृष्ण भक्त होने के बावजूद रीतिकाल के प्रभाव से बच नहीं सके। अतः इन्होंने राधा कृष्ण की भक्ति के सहारे अपनी शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। इन्होंने माना कि भक्ति का रंग विचित्र होता है। इसमें भक्ति डूब कर अपने मन को उज्ज्वल कर लेता है।

“या अनुरागी चित की, गति समुझै नहि कोय।
ज्यों ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।”         

इन्होंने कृष्ण और राम की भक्ति एक ईश्वर के रूप में की है। वे मानते हैं कि इनमें कोई अंतर नहीं है। इन्होंने ईश्वर के दोनों रूपों सगुण एवं निर्गुण का चित्रण अपने काव्य में किया है। लौकिकता में अलौकिकता का समावेश करते हुए कहा है-

“मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झोई परै स्यायु हरित दुति होइ।।”      

इनकी भक्ति भावना में संख्य भाव नाम महिमा, आत्म-समर्पण, दीनता का भाव तथा सत्संगति इत्यादि का चित्रण पूर्ण रूप से हुआ है। शृंगारिक कवि होने पर भी इन्होंने अन्योक्तियों सूक्तियों पर भक्ति दोहे की रचना कर रहे हैं।

3. नीतिगत भावों का चित्रण- इन्होंने अन्योक्ति अलंकारों के द्वारा कई नीतिगत भावों को प्रस्तुत किया है। इन्होंने पराए संकेत पर हिंसा को अच्छा नहीं बताना, स्वभाव में परिवर्तन नहिीं होना, लोभ के घृणित रूप को बताना, संसार में बुरे मनुष्यों का सम्मान होना और नम्रता को श्रेष्ठ बताना इत्यादि नीतिगत भावों को प्रकट किया है। कवि ने विनम्रता को उच्च स्थान देते हुए कहा है-

“नर को अरु नल-नीर की, गति एकै करि होय।
जेतो नीचो हवै चलै, तेतो ऊँचो होय।।”         

इन्होंने संसार की बुराई करते हुए उसकी नश्वरता को प्रकट किया है-

“को छूट्यो इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलता।
ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चाहत, त्यों-त्यों डरअत जात।।”         

कवि ने साहित्य और संगीत कला की चतुराई के बारे में यह कहा है-

“तंत्रीनाद कवित्त रस सरस राग इति रंग।
अन बूडे बूडे तरे जे बूडे सब अंग।।”     

इन्होंने काव्यों में सूक्तियों का प्रयोग किया है।

4. लोक-जीवन की झांकी- इन्हें तत्कालीक सामाजिक और राजनीतिक वातावरण की जानकारी थी। अतः इन्हांेने लोक-जीवन के दुःख दर्द राजाओं की ऐश्वर्यता और हिन्दुओं के प्रति सहानुभूति को कलमबद्ध किया। इन्होंने बताया कि मनुष्य की प्रवृत्ति आसानी से परिवर्तित नहीं होती है-

“कोटि जतन कोऊ करै, परै न प्रकृतिहि बीच।
नल बल जल ऊँचौ चढ़ै, तऊ तीच को नीच।।”     

इन्होंने अपने काव्य में तत्कालीन समाज में वयाप्त अराजकता और उससे प्राप्त होने वाले जनता के दुःखों को चित्रित किया है। कुछ स्थानों पर इन्होंने राजाओं और उनकी राजव्यवस्था पर कड़ा व्यंग्य किया है।

5. कल्पना की समाहार शक्ति- बिहारी की काव्य प्रतिभा का मूल कारण था- उनकी कल्पना शक्ति ‘हिन्दी साहित्य’ में ऐसे कुछ विलक्षण कवि ही हुए है जिनमें दूर की सूक्ष्म को कल्पना के बल पर अपने दोहों में साकार करने की यह शक्ति पायी जाती है। इसके द्वारा इनके काव्य में मधुरता, सरसता, सहजता और चमत्कार उत्पन्न हो गए हैं।

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