हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

अपना निजी ब्लॉग तैयार करने की प्रक्रिया

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ब्लॉग क्या है?

ब्लॉग एक निजी डायरी की तरह होता है, जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बनाया जा सकता है। एक ऐसा प्लेटफॉर्म जहां, कोई भी व्यक्ति अपने विचार, अपनी अभिरुचियां, अपने शौक, अपना यात्रा वृत्तांत इत्यादि साझा कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ब्लॉग आपकी निजी वेबसाइट होती है, जिसे आप अपनी सुविधा के लिहाज से लगातार अद्यतन करते रहते हैं। लेकिन इसके साथ ही कुछ ब्लॉग पेशेवर भी होते हैं, जहां कई लोगों के समूह एक साथ मिलकर ब्लॉगिंग करते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया और नवभारत टाइम्स के ब्लॉग को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। आम अर्थों में ब्लॉग को वेबसाइट प्लेटफॉर्म माना जाता है, लेकिन दरअसल यह एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म है, जो ब्लॉगर को एक वेबसाइट पर ऑनलाइन डायरी लिखने की सुविधा देता है। डायरी पर लिखी गई सबसे आखिरी टिप्पणी या विषय को पोस्ट कहा जाता है और यही पोस्ट ब्लॉग खोलते ही उसके होमपेज पर दिखता है। ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता इसकी गतिशीलता होती है। अर्थात इसे लगातार अद्यतन किया जा सकता है और इसपर लिखे गए पोस्ट पर पाठक अपनी प्रतिक्रिया भी दे सकता है।
एक विद्वान मेग हॉरिहन कहते हैं, ‘यह कई पोस्ट का एक संग्रह है. छोटे, अनौपचारिक, कभी-कभी विवादास्पद और कभी-कभी बेहद निजी जिसकी शुरुआत किसी न किसी ताजी सूचना के साथ होती है।’

ब्लॉगिंग का इतिहास

ब्लॉगिंग का जन्म ऑनलाइन फोरम सॉफ्टवेयरों के आधार पर हुआ। 90 के दशक में इंटरनेट फोरम सॉफ्टवेयर कंपनियों ने ऑनलाइन सॉफ्टवेयर के जरिए विचार-विमर्श के अंश चलाने शुरू किए। जैसे-जैसे ऐसे फोरमों की संख्या बढ़ी और उन पर होने वाले विचार-विमर्श का दायरा बढ़ा, आमतौर पर माना जाता है कि ‘जस्टिन’स लिंक्स फ्रॉम द अंडरग्राउंड’ दुनिया का पहला ब्लॉग था, जिसे जस्टिन हॉल ने बनाया था। हालांकि उस समय तक ब्लॉग की शब्दावली प्रचलन में नहीं आई थी, इसलिए स्वार्दमोर कॉलेज के छात्र हॉल ने 1994 में तैयार इस पहले प्लेटफॉर्म को उसका निजी होमपेज कहा था। हॉल ने 11 सालों तक ब्लॉगिंग की और धीरे-धीरे यह उनके स्वयं के जीवन पर एक केंद्रित दस्तावेज बन गया। करीब 3 साल बाद दिसंबर 1997 में जॉन बार्गर ने पहली बार ‘वेबलॉग’ शब्द का इस्तेमाल किया क्योंकि उन्होंने ‘वेब में लॉग इन’ किया। बार्गर उस समय के एक प्रभावी ब्लॉग ‘रोबोट विस्डम’ को चला रहे थे। साल भर बाद 1998 में जोनाथन ड्यूब ने पहली बार ‘द शार्लोट ऑब्जर्वर’ के लिए ‘बोनी’ तूफान के लिए एक ब्लॉग लिखा, जो किसी पारंपरिक न्यूज साइट के लिए लिखा गया, संभवतः पहला ब्लॉग था। इसी ‘वेबलॉग’ के लिए 1999 में प्रोग्रामर पीटर मर्होल्ज ने पहली बार ‘ब्लॉग’ का प्रयोग किया और उसके बाद से यह नाम धीरे-धीरे पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया । शुरुआती ब्लॉग मैनुअली अपडेट किए जाते थे, जो एक केंद्रीय होम पेज या आर्काइव से जुड़े होते थे। इसके लिए ब्लॉगर का एचटीएमएल और एफटीपी जानना अपरिहार्य था। यह एक जटिल प्रक्रिया होती थी, लेकिन आम लोगों के लिए ब्लॉगिंग शुरू करने का इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इस तकनीकी जटिलता के कारण उस समय तक ब्लॉग का विकास एक सीमा से ज्यादा नहीं हो सका। इन्हीं शुरुआती दिनों में कुछ अलग-अलग ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म भी लॉन्च हुए, जिनमें लाइवजर्नल संभवतः सबसे ज्यादा लोकप्रिय था। फिर 1999 में इवान विलियम्स और मेग हुरिहन ने ब्लॉगर डॉट कॉम के रूप में एक नया ब्लॉग प्लेटफॉर्म लॉन्च किया। इस प्लेटफॉर्म पर ब्लॉगरों के लिए मुफ्त में कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम (सीएमएस) उपलब्ध कराया गया। ब्लॉगर डॉट कॉम की लॉन्चिंग ब्लॉगिंग के विकास में मील का एक पत्थर था, जिसने पूरी दुनिया में ब्लॉगिंग को मुख्य धारा में ला दिया। फिर मई 2003 में एक नया सीएमएस वर्डप्रेस जारी हुआ।

ब्लॉगिंग का विकास काल

जेसी जेम्स गैरेट ने 1999 में एक सूची बनाई थी, जिसके उस समय मुताबिक इंटरनेट पर कुल ब्लॉगों की संख्या 23 थी। लेकिन 2006 के मध्य तक टेक्नोरातीज स्टेट ऑफ ब्लॉगोस्फेयर रिपोर्ट के मुताबिक ब्लॉगों की संख्या 5 करोड़ तक पहुँच चुकी थी। ब्रैंडन गैली ने 2013 तक इनकी संख्या बढ़कर 15.2 करोड़ तक बताई है, जो वर्डप्रेस, मूवेबल टाइप, ब्लॉगर, लाइव जरनल जैसे प्लेटफॉर्म पर बनाए गए हैं। वर्ष 2003 में वर्डप्रेस के जारी होने के बाद से 11 सालों में लॉन्च हुए कई मुफ्त ब्लॉगिंग सॉफ्टवेयरों ने ब्लॉगों के विकास में जबर्दस्त भूमिका निभाई और 2014 में केवल इसी एक प्लेटफॉर्म पर 14.4 अरब ब्लॉग पेज बनाए जा चुके थे।
ब्लॉगिंग के विकास के साथ ही देश और दुनिया में मीडिया का स्वरूप, उसकी पहुँच और समाचार स्रोतों की संरचना में भी आमूलचूल बदलाव आ गया है। ब्लॉगरों की अपनी एक विशाल दुनिया है, जिसमें सैकड़ों भाषाओं, भूगोलों और आयु वर्गों के लोग रोज नया संसार रच रहे हैं। इस लिहाज से देखा जाए, तो ब्लॉगिंग केवल एक नया संचार मंच ही नहीं है, बल्कि लाखों-करोड़ों भावनाओं, अभिरुचियों, मनोविज्ञानों और नजरियों का एक विशाल सागर है। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों में ब्लॉगिंग कारोबार बढ़ाने और मार्केटिंग एवं ब्रांडिंग के एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में भी विकसित हुआ है। इसलिए अमेच्योर ब्लॉगिंग के साथ पेशेवर ब्लॉगिंग का चलना भी बढ़ा है और ब्लॉगिंग के कई नए आयाम खुले हैं।

ब्लॉग के विभिन्न चरण

जब हम ब्लॉग की बात करते हैं, तो दरअसल वह एक इंटरफेस की बात होती है, जिस पर अलग-अलग विषयों से संबंधित विचार प्रकाशित किए जाते हैं। लेकिन एक ब्लॉगर के लिए ब्लॉग केवल एक इंटरफेस या होमपेज नहीं होता है। इसकी बारीकियों में कई हिस्से शामिल होते हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है।
प्लेटफॉर्म : ब्लॉगिंग का सबसे पहला और अहम हिस्सा होता है, इसका प्लेटफॉर्म ब्लॉगर डॉट कॉम, वर्डप्रेस डॉट कॉम इत्यादि अलग-अलग प्लेटफॉर्म हैं, जिन पर ब्लॉग बनाए जाते हैं। ज्यादातर लोकप्रिय प्लेटफॉर्म कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम भी मुफ्त में मुहैया कराते हैं । लेकिन कुछ प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल तकनीकी तौर पर जटिल होता है और कुछ खास प्रोग्राम जानने वाले ब्लॉगर ही इसका सही तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं।
डोमेन नाम : डोमेन का नाम दरअसल वह यूआरएल होता है, जिसे ड्रेस बार में टाइप कर कोई भी पाठक किसी ब्लॉग तक पहुँच सकता है। यह यूआरएल ही दरअसल किसी ब्लॉग का प्राथमिक परिचय होता है और यही ब्लॉग तक पहुँचने का दरवाजा भी होता है। इसलिए डोमेन का चुनाव बहुत सावधानी से करना चाहिए। डोमेन के नाम से ब्लॉग के विषय-वस्तु का परिचय भी हो जाता है जैसे, अगर समुद्ध विज्ञान से जुड़ा कोई ब्लॉग हो, तो उसके यूआरएल में सी और साइंस शब्दों का समावेश होना चाहिए। यह डोमेन नेम इसलिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि एक बार तय हो जाने पर इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। डोमेन का नाम तय करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पाठक को इससे क्या जानकारियां मिलेंगी। यह वो पहली सूचना है, जो ब्लॉग के बारे में पाठक तक पहुँचती है। इसलिए डोमेन नेम तय करते समय ब्लॉगर को यह ध्यान में रखना चाहिए कि क्या यह उसके लक्षित समूह (टार्गेट ऑडिएंस ) तक ब्लॉग के उद्देश्य की जानकारी ठीक तरीके से संप्रेषित कर पा रहा है।
ब्लॉगिंग विशेषज्ञ केनेथ बाइर्ड के मुताबिक सही डोमेन नेम के चुनाव से ब्लॉगर को पांच तरह के फायदे होते हैं-

  1. ज्यादा ट्रैफिक
  2. ज्यादा सब्सक्राइबर
  3. सोशल मीडिया पर ज्यादा शेयरिंग
  4. साफ ब्रांड संदेश और
  5. ज्यादा सफलता

किसी ब्लॉग को खोजने के दो रास्ते हैं। पहला, सर्च इंजन और दूसरा सोशल मीडिया या उसी विषय के किसी दूसरे ब्लॉग से हासिल होने वाले लिंक। गूगल ने हालांकि वेबसाइटों की रैंकिंग के तरीके में बदलाव कर दिया है, फिर भी यूआरएल में वेबसाइटों या ब्लॉग के मुख्य विषय से जुड़े सटीक शब्द शामिल होने से डोमेन नाम प्रभावी हो सकता है।

होस्टिंग सर्विस : यह वो सेवा है, जिसके जरिए इंटरनेट पर ब्लॉगिंग का स्पेस हासिल किया जाता है । यह किराए पर अपना घर या ऑफिस स्पेस लिए जाने जैसा है, जिसके लिए महीने या साल के हिसाब से एक निश्चित रकम का भुगतान करना होता है। वेबसाइट होस्टिंग में तो होस्टिंग सेवा के लिए एक निश्चित रकम का भुगतान लगभग अनिवार्य है, लेकिन ब्लॉगिंग की दुनिया में बहुत से ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जो यह सेवा मुफ्त में देते हैं । होस्टिंग सेवाएं चार तरह की होती हैं-

  1. साझा होस्टिंग : नाम की ही भांति यह एक साझी होस्टिंग सेवा होती है, जिसमें बहुत सी वेबसाइटें एक ही सर्वर पर होती हैं । ये सभी वेबसाइटें या ब्लॉग पेज हालांकि एक दूसरे से अलग रहते हैं, लेकिन वे सभी एक स्पेस में रखे जाते हैं। बहुत भारी या कई सारे पेज व हिस्सों वाली वेबसाइटें साझी होस्टिंग सेवा में चलाने पर उसकी गति पर फर्क पड़ सकता है ।
  2. आभासी निजी सर्वर (वीपीएस) : वीपीएस में भी कई वेबसाइटें एक ही सर्वर में होस्ट होती हैं, लेकिन उन सभी का अपना अलग स्पेस होता है। हर वेबसाइट या ब्लॉग के लिए एक स्वतंत्र सर्वर की भांति अलग संसाधन सुरक्षित होते हैं।
  3. डेडिकेटेड होस्टिंग : व्यक्तिगत ब्लॉगिंग के लिए साझा होस्टिंग बिलकुल सही है, लेकिन कारोबारी या वाणिज्यिक उद्देश्य से शुरू की जाने वाली वेबसाइट के लिए बहुत ज्यादा स्पेस और संसाधनों की आवश्यकता होती है। इसके लिए एक अलग सर्वर उपलब्ध कराया जाता है, जिसे डेडिकेटेड होस्टिंग कहते हैं। यह काफी महंगा होता है।
  4. क्लाउड होस्टिंग : मौजूदा दौर पर यह प्रौद्योगिकी सबसे ज्यादा लोकप्रिय और प्रचलित है। इसमें एक ही वेबसाइट को कई सर्वरों पर स्पेस दिया जाता है और आवश्यकता के अनुसार उसे नए संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं। इसमें वेबसाइट होल्डर या ब्लॉगर को कम खर्च में ज्यादा स्पेस और सुविधाएं हासिल हो जाती हैं। और उसे केवल उसी समय इनके लिए भुगतान करना होता है, जब उसे इसकी आवश्यकता होती है।

डोमेन नाम के चयन में सावधानियां

इंटरनेट पर ब्लॉग या वेबसाइट का यूआरएल तय करते समय ब्लॉगर के सामने कई एक्सटेंशनों का विकल्प होता है, जैसे डॉट कॉम, डॉट नेट, डॉट ओआरजी, डॉट टीवाई, डॉट बिज इत्यादि । लेकिन यह बहुत अहम बात है कि दुनिया में मौजूद तमाम वेबसाइटों में लगभग तीन-चौथाई के यूआरएल का एक्सटेंशन डॉट कॉम है। कई सर्च इंजिनों में भी डॉट कॉम एक्सटेंशन वाले यूआरएल की लिस्टिंग पहले होती है। हालांकि बाकी एक्सटेंशन वाले यूआरएल भी काम करते हैं, लेकिन ब्लॉग सर्च में डॉट कॉम वाले एक्सटेंशनों को शुरुआती बढ़त मिल जाती है। डोमेन का नाम चुनने में बहुत ज्यादा प्रयोगधर्मी होने से बचना चाहिए। किसी ब्लॉगर को अगर ये गलतफहमी हो जाए कि बिलकुल नये या अपरिचित शब्द को डोमेन नाम बनाकर वह नेट की दुनिया में एक नई लकीर खींच सकता है, तो यह उसके अपने ब्लॉग के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। इसलिए डोमेन नाम तय करने में यह ख्याल रखना चाहिए कि नाम विषय से सीधा जुड़ा हो और ऐसे प्रचलित शब्दों में शामिल हो, जो उस विषय पर बात करने वालों के लिए तुरंत ध्यान में आता हो।

ब्लॉगिंग थीम और डिजाइन

इन दोनों के ही चयन की सुविधा अमूमन ब्लॉग प्लेटफॉर्मों पर उपलब्ध होती है। एक बार प्लेटफॉर्म, डोमेन नाम और होस्टिंग का फैसला हो जाने पर ब्लॉग का रूप तय करने की बारी होती है। इसके लिए ब्लॉगर, वर्डप्रेस आदि लोकप्रिय प्लेटफॉर्मों पर कई नमूने उपलब्ध होते हैं, जिनमें से किसी एक का चयन किया जा सकता है। डिजाइन एक ओर जहां ब्लॉग की पठनीयता बढ़ा या घटा सकती है, वहीं थीम पाठक को प्रथम दृष्टि में ब्लॉग का संदेश संप्रेषित करता है। डिजाइन नमूने (टेम्पलेट) ब्लॉग की हेडलाइन, टेक्स्ट, तस्वीर, संबंधित लिंक, लेखक परिचय इत्यादि की पेज पर स्थिति तय करने में मदद करते हैं। साथ ही डिजाइन का विषय-वस्तु (कंटेंट) का भी तारतम्य होना चाहिए। जैसे, अगर ब्लॉगर सिनेमा पर कोई ब्लॉग तैयार कर रहा है, तो उसमें तस्वीरों का स्थान ज्यादा प्रमुख होगा। वैसे ही अगर कोई शोध ब्लॉग तैयार कर रहा हो, तो उसमें ग्राफिक एलीमेंट और चार्ट का भी समावेश होना चाहिए। इसी तरह थीम की भी भूमिका होती है । पहली बार ब्लॉग पर आने वाला पाठक थीम से ही उसे आगे पढ़ने को प्रेरित होता है। जैसे, अगर पर्यावरण पर शुरू किए जा रहे किसी ब्लॉग का पेज चटख रंग में हो और उस पर केवल एक फूल की क्लोजअप तस्वीर लगी हो, तो पर्यावरण विषय का गंभीर पाठक वहां शायद ही रुकना पसंद करे। लेकिन अगर यहीं थीम किसी पर्यटन ब्लॉग का हो, तो उसे पहली बार आने वाले पाठक की ज्यादा सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलेगी।

ब्लॉग पर लेखक/ब्लॉगर की व्यक्तिगत छाप

अब तक हमने जिन भी टूल्स की बात की, वे सब ब्लॉग तैयार करने वाले प्लेटफॉर्म पर पहले से तय टेम्पलेट में उपलब्ध होते हैं और ब्लॉगर को उनमें से महज चुनाव भर करना होता है। लेकिन इनके अलावा तमाम प्लेटफॉर्म ब्लॉगर को कई ऐसे विकल्प भी उपलब्ध कराते हैं, जिनका उपयोग कर वे अपने ब्लॉग को कुछ अलग रूप-रंग दे सकते हैं। ऐसा कर ब्लॉगर अपने ब्लॉग की एक अलग पहचान स्थापित कर सकता है और उसके माध्यम से पाठक को अपने व्यक्तित्व के किसी खास पहलू से परिचित करा सकता है। उदाहरण के लिए ब्लॉगर अपने नेविगेशन मेन्यू, लोगो, फुटर, साइडबार और थीम एवं ढांचे के बहुत से दूसरे पहलुओं को कस्टमाइज कर सकता है। इसके साथ ही वह ब्लॉग पर आने वाले ट्रैफिक की संख्या, उनके स्थान इत्यादि को ट्रैक करने का टूल भी लगा सकता है और इस बात की भी व्यवस्था कर सकता है कि पेज पर आने वाले पाठकों से वह ईमेल के माध्यम से संवाद स्थापित कर सके। इस उद्देश्य में और मदद करने के लिए प्लगिंस होते हैं, जो ब्लॉग पर और कई गतिविधियां करने की सहूलियत देते हैं। उदाहरण के लिए कुछ लोकप्रिय प्लगिंस लिंक ‘ऑल इन वन सिक्योरिटी’, ‘लीडपेजेज’, ‘स्टॉप स्पैम कमेंट्स’ इत्यादि हैं। लेकिन प्लगिंस क्योंकि स्वतंत्र स्रोतों से डाउनलोड किए जाते हैं, इसलिए उन्हें डाउनलोड करने में कुछ सावधानियां ध्यान में रखनी चाहिए। जैसे, उनका डेवलपर कौन है और उनका अंतिम अपडेशन कब हुआ था। साथ ही, कि क्या ब्लॉग के साथ उनकी कैपेबिलिटी है।

ब्लॉग की विशेषताएं

ब्लॉगिंग विशेषज्ञ केनेथ बाइर्ड ने आधुनिक ब्लॉग की निम्नांकित विशेषताएं बताई है-

  • ब्लॉग में नेविगेशन की कुछ सुविधाएं मौजूद होती हैं।
  • ब्लॉग के लेआउट में अमूमन एक हेडर, एक फुटर और एक बॉडी (विषय- वस्तु) होता है।
  • पोस्ट की अलग-अलग श्रेणियां होती हैं।
  • पाठक आर्काइव में से पुराने पोस्ट पढ़ सकते हैं।
  • एक पोस्ट में तस्वीरे, दूसरी वेबसाइट के लिंक, वीडियो और दूसरे मीडिया के हिस्से शामिल रह सकते हैं।

पाठकों की टिप्पणियों या प्रतिक्रियाओं के लिए स्पेस होता है। ब्लॉग की इन मानक विशेषताओं के अलावा आधुनिक ब्लॉगिंग में कई अन्य तकनीकी आयाम भी जुड़ने लगे हैं। जहां कई ब्लॉगर प्लगिंस डाउनलोड अपने पोस्ट स्वतः ट्विटर और फेसबुक पर भी स्थानांतरित कर देते हैं वहीं कई तस्वीरों की गैलरी और दूसरे फीचर प्रदर्शित करते हैं।

ब्लॉग के हिस्से

किसी भी ब्लॉग के मोटे तौर पर चार हिस्से होते हैं-

  1. हेडर : ब्लॉग का हेडर वह हिस्सा होता है, जहां ब्लॉग का नाम होता है और उसकी पृष्ठभूमि में एक बड़ी सी तस्वीर होती है। ब्लॉग का नाम उसका डोमेन नेम (यूआरएल) भी हो सकता है और उससे अलग भी। ब्लॉग के नाम के नीचे उसका टैग लाइन होता है, जिसमें दरअसल उस ब्लॉग का संदेश होता है।
  2. विषय-वस्तु : हेडर के नीचे ब्लॉग का विषय-वस्तु होता है, जिसकी एक हेडलाइन होती है और उसके नीचे पूरा लेख या पोस्ट होता है । विषय-वस्तु की प्रस्तुति कई तरीके से हो सकती है और इसे ब्लॉग प्लेटफॉर्म से टेम्पलेट के रूप में तय किया जा सकता है। विषय-वस्तु की शुरुआत कई बार बाईं ओर, कई बार दाईं ओर तथा कई बार बीच में कोई तस्वीर लगा कर की जाती है। इस तस्वीर की जगह पोस्ट के बीच में कहीं भी रखी जा सकती है और उसका आकार बढ़ाया या कम किया जा सकता है। या हो सकता है कि पोस्ट में कोई भी तस्वीर न हो । किसी खास संदर्भ को इंगित करने के लिए विषय बीच में उसके मूल स्रोत का लिंक भी चस्पा किया जा सकता है। आधुनिक ब्लॉग सॉफ्टवेयर में ब्लॉगर के लिए कई सारे विकल्प मौजूद हैं, जिनसे पोस्ट के विषय-वस्तु को अत्यंत आकर्षक और प्रभावी रूप दिया जा सकता है।
  3. फुटर : ब्लॉग के इस हिस्से में आमतौर पर संपर्क सूचना और कॉपीराइट की जानकारी होती है। इनके अलावा कुछ ब्लॉग फुटर में अन्यत्र बिखरे कंटेंट के लिंक भी देते हैं।
  4. साइड बार : ब्लॉग में साइड बार वह स्थान होता है जहाँ आप पाठकों को यह दर्शाते हैं कि आप उन्हें क्या पेश कर रहे हैं। प्रायः साईड बार में सोशल मीडिया विजिट, टॉप पोस्ट, नयी पोस्ट सर्च वॉक्स, विज्ञापन, पोस्ट आर्काइव या लेख संग्रह, लेबल्स या पेज लिंक आदि होते हैं ।

ब्लॉगिंग की कानूनी और कॉपीराइट सीमाएँ

हर ब्लॉगर को ब्लॉग लिखते वक़्त कुछ सावधानियाँ ज़रूर बरतनी चाहिए-

  1. किसी और का काम अपने ब्लॉग में इस्तेमाल कर केवल लेखक या सर्जक को श्रेय (क्रेडिट) दे देने से कॉपीराइट कानून का असर खत्म नहीं हो जाता। किसी भी कॉपीराइट विषय-वस्तु का इस्तेमाल करने के लिए लेखक / फोटोग्राफर से अनुमति होनी आवश्यक है।
  2. किसी भी संदर्भ में अगर कॉपीराइट संदेश न हो, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि उस पर कोई कॉपीराइट नहीं है। इसलिए कहीं से भी कुछ कॉपी करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह कॉपीराइट से बाहर है।
  3. इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता कि आपका ब्लॉग व्यक्तिगत उद्देश्य से है या वाणिज्यिक | कॉपीराइट कानून दोनों ही स्थितियों में बराबर लागू होते हैं।
  4. किसी भी कॉपीराइट विवाद की स्थिति में केवल माफी मांगना या विवादित अंश को हटा देना समस्या का समाधान नहीं होता है। यदि दावा करने वाला अदालत में चला जाता है, तो ब्लॉगर मुश्किल में फँस सकता है, यह ध्यान रखा जाना चाहिए।

ब्लॉगिंग की भाषा

भारत जैसे देशों, जहां अंग्रेजी लगभग हर ब्लॉगर की दूसरी भाषा है, लेकिन ज्यादा सम्मान और ज्यादा प्रभाव हासिल करने के लिहाज से अधिक प्रभावी मानी जाती है, वहां कई ब्लॉगरों के सामने यह भ्रम होता है कि वे ब्लॉगिंग अंग्रेजी में करें या अपनी मातृभाषा में। अंग्रेजी बनाम किसी भारतीय भाषा में ब्लॉग शुरू करने के अपने-अपने फायदे हैं, जिन्हें समझने से किसी भी ब्लॉगर को ब्लॉगिंग की भाषा तय करने में आसानी होगी।

  1. बेहतर संचार : ब्लॉग का उद्देश्य अपनी बातों को दुनिया के सामने रखना होता है। ऐसे में अपनी भाषा का इस्तेमाल कर ब्लॉगर अपने विचारों को, अपनी भावनाओं को और अपने संदेश को बेहतर तरीके से संप्रेषित कर सकता है ।
  2. विषय : कुछ विषयों के पाठक उन विषयों को एक खास भाषा में ही पढ़ना चाहते हैं। जैसे अगर किसी ब्लॉगर को विज्ञान पर ब्लॉग शुरू करना हो, तो उसे यह ध्यान रखना होगा कि ज्यादातर भारतीय भाषाओं के विद्यार्थियों को भी विज्ञान के लिए अंग्रेजी भाषा ज्यादा सहूलियत देती है । लेकिन वहीं लोग राजनीति या खेल के बारे में अपनी भाषा में पढ़ना चाहते हैं। इस लिहाज से भाषा का चुनाव ब्लॉग के विषय के अनुसार हो, तो पाठक संख्या पर सकारात्मक असर पड़ेगा ।
  3. कारोबार : अगर ब्लॉगर किसी कारोबारी उद्देश्य से ब्लॉग चलाना चाहता है, तो उसे अपने लक्षित समूह को देखते हुए भाषा का चुनाव करना चाहिए।
  4. नेटवर्किंग : यदि ब्लॉगर का उद्देश्य अपने समान रुचि और व्यवसाय वाले लोगों के साथ नेटवर्किंग करना है, तो उसे उसी लिहाज से भाषा का चुनाव करना चाहिए। जैसे, अगर कोई राजनीतिक विश्लेषक हिन्दी प्रदेश के राजनीतिक हलकों में अपनी पहचान कायम करना चाहता हो और इसलिए ब्लॉग शुरू करता है, तो अंग्रेजी में की जाने वाली ब्लॉगिंग उसे एक बहुत सीमित वर्ग तक सीमित कर देगी। और वह अपने लक्षित समूह तक नहीं पहुँच सकेगा। लेकिन इसके विपरीत अगर कोई वैज्ञानिक विज्ञान के क्षेत्र में होने वाली नई खोजों पर ब्लॉग शुरू कर दूसरे वैज्ञानिक ब्लॉगरों की नेटवर्किंग करना चाहता हो, तो उसे अंग्रेजी भाषा में ब्लॉगिंग करने के ज्यादा फायदे हो सकते हैं।

ब्लॉग बनाने की चरणबद्ध प्रक्रिया

ब्लॉगर और वर्डप्रेस यह फ्री ब्लॉग और वेबसाइट बनाने के लिए सबसे ज्यादा पापुलर (प्रसिद्ध प्लेटफॉर्म है। ब्लॉगर पर फ्री ब्लॉग बनाने के लिए निम्न बिन्दू हैं:-

  1. सबसे पहले www.blogger.com पर जायें।
  2. ब्लॉग क्रियेट करने के लिए अपने जीमेल अकाउंट से साइन अप करें
  3. अब आपको दो ऑपशन नजर आते हैं गूगल प्रोफाइल और ब्लॉगर प्रोफाइल किसी एक को स्लेक्ट करें और प्रोफाइल सेट करें इसके बाद क्रियेट ब्लॉग पर क्लिक करें नीचे दिए गए Step को फोलो करें।

टाइटल (Title)
अपने ब्लॉग का टाइटल लिखें जैसे अगर आपके ब्लॉग का अड्रेस है www.hpjinholiya.com है तो यहाँ पर HP Jinjholiya लिखें।
अड्रेस (Address)
अपने ब्लॉग का अड्रेस लिखें। यह वो अड्रेस है जिसे लोग गूगल में सर्च करके आपके ब्लॉग तक पहुँचते हैं। अगर आपके द्वारा दिया गया अड्रेस उपलब्ध होगा तो आपको This Blog address is available मैसेज दिखाई देगा।
थीम (Theme)
आप अपने ब्लॉग की थीम किसी तरह की रखना चाहते हैं उसे भी स्लेक्ट करें जिसे आप बाद में भी बदल सकते हैं। क्रियेट ब्लॉग पर क्लिक करते ही आपका ब्लॉग बनकर तैयार हो चुका है। अब आप अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर उसे पब्लिश कर सकते हैं और फिर उसे गूगल एडसेंस (Adsense) से जोड़कर पैसे कमाना शुरू कर सकते हैं ।
वर्डप्रेस पर फ्री ब्लॉग बनाने की प्रक्रिया :-
वर्ड प्रेस ब्लॉग और वेबसाइट बनाने के लिए दो प्लेटफॉर्म देता है जिसमें एक
पेड (Paid) है जिसके लिए आपको डोमेन नेम और वेब हॉस्टिंग की जरूरत पड़ती है और दूसरा फ्री है जिससे आप फ्री ब्लॉग बना सकते हैं। वर्ड प्रेस पर फ्री ब्लॉग बनाने के निम्न बिन्दु है।

  1. सबसे पहले आपको www.wordpress.com पर जाना है और उसमें साइन अप (Sign Up) पर क्लिक करना है।
  2. इसके बाद आपके सामने एक फॉर्म खुल जाता है जिसके 4 स्टेप को फोलो करना है अपने ब्लॉग का नाम केटेगरी और गोल (Goal) स्लैक्ट करने के बाद कंटिन्यू (continue) बटन पर क्लिक करें।
  3. अपने ब्लॉग का अड्रेस डालें और फ्री ब्लॉग अड्रेस को स्लैक्ट करें।
  4. इसके बाद आपको फ्री प्लान को स्लैक्ट करना है और स्टार्ट विद फ्री पर क्लिक करना है।
  5. अब अपने जीमेल अकाउंट का अड्रेस डालकर कन्टिन्यू बटन पर क्लिक करें और बस आपका वर्ड प्रेस पर फ्री ब्लॉग बनकर तैयार हो जाता है इन बिन्दुओं को फोलो करके फ्री ब्लॉग और वेबसाइट आसानी से बना सकते
    हैं।
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