प्रतिवेदन और विज्ञप्ति का महत्त्व
प्रस्तावना
सामान्य तौर पर ‘प्रतिवेदन’ और ‘रिपोर्ट’ शब्द का अर्थ समान लिया जाता है लेकिन प्रतिवेदन ‘रिपोर्ट’ से पूर्णतः भिन्न अर्थ की अभिव्यंजना रखता है। रिपोर्ट किसी घटना का सामान्य विवरण है वहीं प्रतिवेदन किसी इससे भिन्न एक विस्तृत दृष्टि की अपेक्षा रखता है। यह एक प्रकार का लिखित विवरण है जिसमें किसी कार्यक्रम, घटना, कार्ययोजना, बैठक आदि के कार्यकलापों का अनुभव और विभिन्न तथ्यों से परिपूर्ण लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है। वहीं विज्ञप्ति द्वारा सरकारी कार्यालय, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गैर सरकारी संगठन तथा राजनीतिक दल आदि की गतिविधियों, योजनाओं, घोषणाओं, निर्देशों आदि से संबंधित सूचनाओं को संबंधित व्यक्तियों या सामान्य जनता तक सहजता से समाचार पत्र के माध्यम से पहुँचाया जा सकता है।
कथ्य-पाठ
‘प्रतिवेदन’ और ‘विज्ञप्ति’ किसी भी कार्यालय के लिए दो महत्त्वपूर्ण विधाएँ हैं। इन दोनों विधाओं के बिना किसी भी कार्यालय का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल सकता। इन दोनों विधाओं का सरकारी और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की दृष्टि से महत्त्व इस प्रकार है :
प्रतिवेदन का महत्त्व
प्रतिवेदन को सामान्य तौर पर अंग्रेजी के ‘रिपोर्ट’ का रूपांतरण मान लिया जाता है। अंग्रेजी से आने के कारण इस विधा का स्वरूप भी अंग्रेजी के रिपोर्ट पर आधारित स्वीकार किया गया है लेकिन विश्लेषण की दृष्टि से देखा जाए तो इन दोनों में अंतर है। जहाँ रिपोर्ट किसी घटना का सामान्य विवरण है वहीं प्रतिवेदन किसी इससे भिन्न एक विस्तृत दृष्टि की अपेक्षा रखता है। यह एक प्रकार का लिखित विवरण है जिसमें किसी कार्यक्रम, घटना, कार्ययोजना, बैठक आदि के कार्यकलापों का अनुभव और विभिन्न तथ्यों से परिपूर्ण लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है। इसके अंतर्गत संबंधित विषय के आंकड़ों का विवरण ही नहीं दिया जाता बल्कि उसके माध्यम से विभिन्न सुझाव और संस्तुतियाँ भी प्रस्तुत की जाती हैं। इस संबंध में Rhoda Doctor & Aspi Doctor का मत है कि ‘प्रतिवेदन एक ऐसा प्रलेख है, जिसमें सूचना देने के उद्देश्य से किसी समस्या की जाँच की जाती है और उस संबंध में निष्कर्ष, विचार और कभी-कभी सिफारिशें भी प्रस्तुत की जाती हैं।’ (Rhoda Doctor and Aspi Doctor, Principal and Pratice of Business Communication, Pg. 129)
जैसे किसी भी दुर्घटना या अपराध के समबंध में पुलिस द्वारा उसकी रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष रखी जाती है। इसी तरह से किसी समाचार पत्र में कार्य करने वाला संवाददाता विभिन्न घटनाओं को देखकर तथ्यों के आधार पर समाचार-पत्र के लिए रिपोर्ट तैयार करता है। लेकिन कार्यालयों में प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट केवल तथ्यों पर आधारित नहीं होती। जैसे किसी भी सरकारी कार्यालय द्वारा किसी योजना का आरंभ करने से पूर्व उस योजना से संबंधित सामाजिक हितों को दृष्टिगत रखते हुए किसी समिति का गठन कर उसके संबंध में बैठकों या कार्यक्रमों द्वारा उस पर विचार किया जाता है और उसके परिमाणों के समबंध में मिलने वाले निष्कर्षों के आधार पर समिति की ओर से किसी अधिकारी द्वारा उसका प्रतिवेदन तैयार कर संबंधित विभाग को भेजा जाता है। इस प्रतिवेदन में योजना से संबंधित सामाजिक आंकड़ों, उससे लाभ प्राप्त करने वाले सामाजिकों की स्थितियों, उनके तत्कालीन और दूरगामी परिणामों की सूचना व समिति के सुझावों व संस्तुतियों को प्रस्तुत किया जाता है। जैसे किसी बैंक का मुख्यालय यदि दिल्ली में है और विभिन्न क्षेत्रों, उसकी शाखाएँ और क्षेत्रीय कार्यालय हैं तो इन शाखाओं और कार्यालयों में नियमित रूप से चलने वाली गतिविधियों, कार्यालयों और शाखाओं की स्थितियों, मासिक – त्रैमासिक लाभ-हानि आदि से समबंधित जानकारियों को उन शाखाओं और क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा प्रत्येक तिमाही या छमाही के अंतर्गत प्रतिवेदन के माध्यम से भेजा जाता है।
विभिन्न व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में इसकी उपयोगिता ओर भी अधिक होती है। इन प्रतिष्ठानों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। इसलिए किस प्रोडक्ट की बाजार में माँग और उसके लक्षित उपभोक्ता वर्ग की रुचि के लिए ये प्रतिष्ठान अपने कार्यालयों द्वारा सर्वे कराकर उनका प्रतिवेदन अपने मुख्यालयों को भेजते हैं जिससे व्यावसायिक प्रतिष्ठान उसके अनुरूप योजना बनाकर अपने प्रोडक्ट तैयार कर बाजार में उतारता है।
किसी भी कार्यालय या प्रतिष्ठान के लिए ‘प्रतिवेदन’ की उपयोगिता इस कारण से है कि वह कार्यालय या प्रतिष्ठान उसके आधार पर अपनी योजनाओं को बनाता और क्रियान्वित करता है। प्रतिवेदन में विभिन्न विषयों से संबंधित सूचनाओं व तथ्यों का संकलन कर उनका विवेकपूर्ण निष्पक्ष अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है। समिति यह दायित्व होता है कि वह तथ्यों, सूचनाओं और विचारों की प्रामाणिकता की जाँच निष्पक्ष और निरपेक्ष रूप से कर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। किसी भी कार्य के लिए बनाई गई समितियाँ केवल बैठकों के आधार पर ये निर्णय नहीं लेती बल्कि व्यावहारिक रूप से समाज के बीच जाकर उनके सुझावों और आंकड़ों के आधार पर अपना अंतिम प्रतिवेदन प्रारूप तैयार करती हैं। इस प्रारूप के पश्चात भी इसमें अपेक्षित परिवर्तन किया जा सकता है। जैसे वर्ष 2020 में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ की लागू होने से पूर्व शिक्षा मंत्रालय द्वारा 5-6 वर्ष पूर्व गठित समिति द्वारा इसका सामाजिक और शैक्षिक विश्लेषण करने के उपरांत एक प्रारूप तैयार किया गया। इस प्रारूप को वर्ष 2016 में समाज के लिए जारी कर उससे संबंधित सुझाव माँगे गए। तीन वर्ष तक लाखों की संख्या में मिले सुझावों के विश्लेषण के उपरांत समिति ने अपने प्रारूप को अंतिम रूप देकर सरकार के समक्ष ‘प्रतिवेदन’ प्रस्तुत किया। इस प्रतिवेदन में नई शिक्षा नीति से संबंधित समाजिकों, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों, शिक्षाविदों आदि के सुझावों के आधार पर शिक्षा नीति के वास्तविक स्वरूप को लक्षित करते हुए समिति द्वारा उसमें अपने सुझाव और इसके कार्यान्वयन संबंधी संस्तुतियाँ भी की गई। जिसके उपरांत 2020 में भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ को लागू किया गया।
कार्य की उपयोगिता और उसके परिणामों को दृष्टिगत रखते हुए प्रतिवेदन के लिए ‘एक सदस्य’ या ‘एक से ‘अधिक सदस्यों’ की समितियों का गठन किया जा सकता है। जैसी किसी संस्थान में राजभाषा हिंदी के क्रियाकलापों के कार्यान्वयन व उन्नयन हेतु उस संस्थान के प्रमुख द्वारा एक सदस्य की समिति का गठन कर दो सप्ताह में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए कहा जा सकता है। इसी तरह भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा नई शिक्षा नीति की आवश्यकता और उसके प्रमुख बिंदुओं के लिए अनेक सदस्यों की समिति का गठन किया गया जिसमें समिति के वरिष्ठ सदस्य को अध्यक्ष का दायित्व प्रदान कर उनके नेतृत्व में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। प्रतिवेदन के अंत में सभी सदस्यों के हस्ताक्षर (तिथि सहित) होने आवश्यक हैं।
विज्ञप्ति का महत्त्व
किसी भी सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालय / प्रतिष्ठान के लिए विज्ञप्ति का बहुत अधिक महत्त्व होता है। इसका उपयोग सरकारी कार्यालय, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गैर सरकारी संगठन तथा राजनीतिक दल अपनी गतिविधियों और योजना आदि से संबंधित सूचनाओं को संबंधित व्यक्तियों या सामान्य जनता तक पहुँचाने के लिए करते हैं। यह लिखित सम्प्रेषण के प्रमुख माध्यम है। किसी प्रतिष्ठान द्वारा जब किसी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है तो उसमें आमंत्रित विशिष्ट विद्वानों या महत्त्वपूर्ण लोगों के विचारों की सूचना को विज्ञप्ति के माध्यम से समाचार-पत्रों को प्रेषित किया जाता है। सामान्य रूप से समाचार-पत्रों के संवाददाता सभी स्थानों पर जाकर रिपोर्टिंग नहीं कर पाते, या फिर समय की व्यस्तता के कारण किसी कार्यक्रम में समय पर न पहुँच पाने के कारण पूरी रिपोर्टिंग करना संभव नहीं होता तो ऐसे में विज्ञप्ति का महत्त्व अधिक बढ़ जाता है।
जहाँ तक व्यावसायिक प्रतिष्ठाओं का प्रश्न है तो किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान द्वारा अपने कार्यालय या व्यवसाय से संबंधित नीतियों, कार्यक्रमों तथा निश्चयों की जानकारी सर्वसाधारण तक प्रचारित करने के लिए विज्ञप्ति का प्रयोग किया जाता है। विज्ञप्ति में व्यावसायिक प्रतिष्ठान द्वारा दी गई सूचना में किसी भी तरह का परिवर्तन करने का अधिकार समाचार- पत्र या पत्रिका के संपादक को नहीं होता। इसके लिए समाचार पत्र को विज्ञप्ति के साथ स्पष्ट रूप से यह निर्देश भी दिया जाता है कि विज्ञप्ति समाचार पत्र या पत्रिका में किस तिथि में प्रकाशित की जाए ।
एक आदर्श विज्ञप्ति के लिए आवश्यक है कि उसे स्पष्ट और संक्षिप्त होना चाहिए। उसका एक उचित व सुगठित शीर्षक होता है जिससे प्रेषित सूचना के कथ्य का ज्ञान हो जाता है। विज्ञप्ति के मूल कथ्य भी संक्षेप में लिखना चाहिए क्यूंकि यह समाचार पत्र में प्रकाशन के लिए होता है।
निष्कर्ष
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ‘प्रतिवेदन’ और ‘विज्ञप्ति’ दोनों ही लिखित सम्प्रेषण के माध्यम होने के कारण कार्यालयों/प्रतिष्ठानों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जहाँ ‘प्रतिवेदन के द्वारा विभिन्न प्रकार की सरकारी योजनाओं, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की बाजार की माँग, किसी घटना की आदि के संबंध में निष्पक्ष रूप से प्राप्त निर्णयों के आधार पर उचित निष्कर्ष पर पहुँचा और सही सुझावों और संस्तुतियों द्वारा उसे क्रियान्वित किया जा सकता है। वहीं ‘विज्ञप्ति’ द्वारा किसी भी प्रतिष्ठान की सही सूचनाओं को अनावश्यक जानकारी के बिना व्यक्तियों और सामान्य जनता तक पहुँचाया जा सकता है।
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