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भारत की आधुनिक भाषाएं (Bharat ki adhunik bhasha)

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भारत विश्‍व के उन विरल देशों में शामिल है जहाँ भाषिक विविधता अत्यंत व्यापक, जटिल और ऐतिहासिक रूप से विकसित रूप में विद्यमान है। आधुनिक भारतीय भाषाएँ इस विविधता का समकालीन स्वरूप हैं, जो न केवल भिन्न भाषिक परिवारों की प्रतिनिधि हैं, बल्कि भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना, राजनीतिक इतिहास और साहित्यिक परंपरा की समृद्ध अभिव्यक्तियाँ भी हैं। आधुनिक भाषाओं का विकास मुख्यतः 18वीं–19वीं शताब्दी के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों, औपनिवेशिक शासन, छापाखाने के प्रसार, शिक्षा-व्यवस्था के विकास और राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव से जुड़ा हुआ है। इन प्रक्रियाओं ने भारतीय भाषाओं को आधुनिक विचारधाराओं और अभिव्यक्ति के नवीन रूपों से जोड़ा, जिससे वे आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित हुईं। (Bharat ki adhunik bhasha)

भारतीय भाषाओं की आधुनिक संरचना को समझने के लिए उनका भाषाई वंश-वृक्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत की अधिकांश आधुनिक भाषाएँ इंडो-आर्य भाषिक परिवार से संबंधित हैं, जिनका विकास प्राकृत और अपभ्रंश परंपराओं से हुआ है। हिन्दी, बंगला, मराठी, पंजाबी, गुजराती, उड़िया, असमिया, कश्मीरी और सिंधी जैसी भाषाएँ इसी परिवार की प्रमुख अभिव्यक्तियाँ हैं। इन भाषाओं ने आधुनिक काल में समाज-सुधार आंदोलनों, पत्रकारिता, प्रशासन तथा साहित्यिक नवजागरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिन्दी और बंगला ने राष्ट्रवादी चेतना को स्वर दिया, मराठी और गुजराती ने सामाजिक सुधार और आधुनिक गद्य परंपरा को सुदृढ़ किया, जबकि पंजाबी और असमिया ने धार्मिक-सांस्कृतिक आंदोलनों तथा क्षेत्रीय साहित्य को नई ऊर्जा प्रदान की। ((Bharat ki adhunik bhasha)

दक्षिण भारत की भाषाएँ द्रविड़ भाषिक परिवार से संबंधित हैं, जो भारत की भाषाई विविधता के एक स्वतंत्र और अत्यंत प्राचीन आधार को प्रस्तुत करती हैं। तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम आधुनिक द्रविड़ भाषाओं के प्रमुख रूप हैं। तमिल का आधुनिक साहित्य संगम परंपरा के साथ समन्वय बनाते हुए आधुनिक विषयवस्तुओं को व्यापकता देता है। तेलुगु और कन्नड़ में सामाजिक यथार्थवाद, नवजागरण और आधुनिक कथा-साहित्य का उल्लेखनीय विकास हुआ है, जबकि मलयालम ने शिक्षा और सामाजिक चेतना के आधार पर एक सशक्त आधुनिक साहित्यिक परंपरा निर्मित की है। द्रविड़ भाषाओं ने न केवल अपने-अपने क्षेत्रों में साहित्यिक समृद्धि स्थापित की, बल्कि आधुनिक भारतीय पहचान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

भारतीय भाषाओं की विविधता में ऑस्ट्रो-एशियाई भाषिक परिवार का स्थान भी उल्लेखनीय है। संताली, मुंडारी और हो जैसी भाषाएँ आदिवासी समाज की सांस्कृतिक परंपराओं और सामुदायिक जीवन की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। इन भाषाओं का आधुनिक रूप मुख्यतः संविधान में मान्यता, शिक्षा के प्रसार और सांस्कृतिक आंदोलनों के कारण सुदृढ़ हुआ है। विशेषतः संताली को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किए जाने के बाद इसके साहित्यिक और अकादमिक विकास को नई दिशा मिली। इसी प्रकार तिब्बती-बर्मन भाषिक परिवार पूर्वोत्तर भारत की भाषाई पहचान का मूल आधार है। नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ भागों में बोली जाने वाली मणिपुरी (मैतेई), मिज़ो, बोडो, अंगामी तथा अन्य भाषाएँ इस परिवार की आधुनिक अभिव्यक्तियाँ हैं। इन भाषाओं ने आधुनिक साहित्य, लोकसंस्कृति और राजनीतिक पहचान को सशक्त किया है। (Bharat ki adhunik bhasha)

आधुनिक भारतीय भाषाओं की विशेषता केवल उनकी भाषिक संरचना या साहित्यिक परंपरा में ही नहीं है, बल्कि आधुनिक सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तनों में उनकी सक्रिय भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारतीय भाषाओं ने आधुनिक साहित्यिक विधाओं—उपन्यास, नाटक, पत्रकारिता, निबंध, जीवनी और आलोचना—को आत्मसात किया, जिससे उन्होंने आधुनिक सामाजिक यथार्थ, राजनीति, जाति, लिंग, शिक्षा और आर्थिक असमानताओं पर नए विमर्शों को जन्म दिया। प्रेमचंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, शरतचंद्र, महादेवी वर्मा, एस. एल. भैरप्पा, एम. टी. वासुदेवन नायर, ओ. वी. विजयन्, शिवराम कारंत आदि रचनाकारों ने आधुनिक भारतीय साहित्य को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

डिजिटल युग ने आधुनिक भारतीय भाषाओं को नए क्षितिज प्रदान किए हैं। यूनिकोड और इंटरनेट के प्रसार ने भारतीय भाषाओं में लेखन और पढ़ने की सुविधा बढ़ाई है, जिससे ये भाषाएँ नए पाठक वर्ग तक पहुँच रही हैं। सोशल मीडिया, फ़िल्म उद्योग, वेब-सीरीज़ और ब्लॉगिंग ने भारतीय भाषाओं को एक नए सांस्कृतिक मंच पर स्थापित किया है, जहाँ स्थानीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर संवाद संभव हो सका है। (Bharat ki adhunik bhasha)

अंततः, आधुनिक भारतीय भाषाएँ केवल अभिव्यक्ति के साधन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक बहुलता, ऐतिहासिक निरंतरता और लोकतांत्रिक चेतना की जीवित परंपराएँ हैं। वे विविध भाषिक परिवारों की विकसित संरचनाओं के रूप में भारत की सांस्कृतिक बहुरूपकता को व्यक्त करती हैं और समकालीन समाज में संचार, साहित्य, राजनीति एवं शिक्षा की मूलभूत धुरी के रूप में स्थापित हैं। इन भाषाओं का संरक्षण और विकास भारत के भाषिक भविष्य के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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