भारत की शास्त्रीय भाषाएं (Bharat ki shastriya bhashayen)
भारत भाषिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपराओं का अद्वितीय केंद्र रहा है। यहाँ अनेक भाषाएँ अत्यंत प्राचीन, समृद्ध और दीर्घकालिक साहित्यिक परंपरा वाली रही हैं। (Bharat ki shastriya bhashayen) भारतीय सरकार ने ऐसी भाषाओं को “शास्त्रीय भाषाएँ” (Classical Languages) के रूप में मान्यता प्रदान की है, जिनमें प्राचीनता, ज्ञान-परंपरा, विशाल साहित्यिक कोष तथा स्वतंत्र भाषिक पहचान जैसी विशिष्ट विशेषताएँ विद्यमान हों। वर्तमान में भारत की छह भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा प्राप्त है—संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओड़िया। प्रत्येक भाषा भारतीय बौद्धिक परंपरा, दर्शन, साहित्य और सांस्कृतिक निरंतरता का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है।
भारत सरकार के अनुसार किसी भाषा को शास्त्रीय का दर्जा प्रदान करने के लिए तीन प्रमुख मानदंड निर्धारित किए गए हैं—
- भाषा का इतिहास कम से कम 1500 से 2000 वर्ष पुराना होना चाहिए।
- भाषा में विस्तृत प्राचीन साहित्य उपलब्ध होना चाहिए, तथा यह साहित्य केवल ऐतिहासिक न होकर सांस्कृतिक, दार्शनिक और बौद्धिक दृष्टि से समृद्ध होना चाहिए।
- भाषा को अपनी विशिष्ट परंपरा तथा स्वतंत्र व्याकरणिक संरचना के आधार पर अन्य भाषाओं से स्पष्ट रूप से भिन्न माना जाए।
इन मानदंडों को पूर्ण करने के बाद ही किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी जाती है।
1. संस्कृत
संस्कृत भारत की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित शास्त्रीय भाषा मानी जाती है। यह वैदिक और उत्तरवैदिक साहित्य की वाहक है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद जैसे ग्रंथ, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक तथा स्मृतियों का विशाल भंडार संस्कृत में ही रचित है। संस्कृत की व्यवस्थित व्याकरण, विशेषकर पाणिनि के अष्टाध्यायी, विश्व में भाषिक संरचना के सर्वश्रेष्ठ मॉडलों में से एक मानी जाती है। इसकी साहित्यिक विविधता में महाकाव्य (रामायण, महाभारत), काव्य, नाटक (कालिदास, भास), दर्शन, ज्योतिष, आयुर्वेद तथा गणित सभी विद्यमान हैं। संस्कृत भारतीय ज्ञान-परंपरा की मूल भाषा है। (Bharat ki shastriya bhashayen)
2. तमिल
तमिल भारत की दूसरी और द्रविड़-परिवार की प्रथम शास्त्रीय भाषा है। इसकी प्राचीनता 2000 वर्ष से अधिक मानी जाती है। संगम साहित्य तमिल की समृद्ध और सुसंगठित साहित्यिक परंपरा का आधार है, जिसमें प्रेम, युद्ध, नीति, समाज और प्रकृति जैसे विषयों का अद्वितीय चित्रण हुआ है। तिरुक्कुरल जैसे नैतिक ग्रंथ इस भाषा की गहन दार्शनिक परंपरा को दर्शाते हैं। तमिल में धार्मिक-दार्शनिक साहित्य (शैव और वैष्णव भक्ति), प्राचीन व्याकरण (तोलकाप्पियम) तथा आधुनिक साहित्य सभी क्षेत्रों में पर्याप्त योगदान है। यह भाषा आज भी जीवंत और व्यापक रूप से बोली जाने वाली शास्त्रीय भाषा है। (Bharat ki shastriya bhashayen)
3. तेलुगु
तेलुगु को “दक्षिण की इटालियन भाषा” कहा गया है, क्योंकि इसकी ध्वनियाँ मधुर और नियमित हैं। इसका साहित्य 11वीं सदी से ही अत्यंत विकसित रूप में उपलब्ध है। नन्नय्या, टिक्कना और एर्रना की महाभारत त्रयी तेलुगु साहित्य की आधारशिला मानी जाती है। भक्तिकाल में अन्नमाचार्य, त्यागराज और रामदासु जैसे कवियों ने इस भाषा को आध्यात्मिक स्वर प्रदान किया। तेलुगु व्याकरण की स्वतंत्र संरचना और इसका विशाल काव्य-भंडार इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करता है।
4. कन्नड़
कन्नड़ भाषा की साहित्यिक परंपरा 1500 वर्ष पुरानी मानी जाती है। इसका प्राचीनतम ग्रंथ कविराजमार्ग (9वीं शताब्दी) कन्नड़ काव्य और भाषा की मानक शैली को स्थापित करता है। कन्नड़ साहित्य तीन प्रमुख परंपराओं—जैन, शैव और वैष्णव—से प्रभावित रहा है। पम्प, पोंना और रण्णा जैसे कवियों को “कन्नड़ के तीन रत्न” कहा गया है। बाद में वचन साहित्य (अक्कमहादेवी, बसवन्ना) ने इसे सामाजिक और आध्यात्मिक आयाम प्रदान किया। इतिहास, दर्शन और नाटक—सभी में इस भाषा का गहरा योगदान है।
5. मलयालम
मलयालम को 2013 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला। इसका विकास तमिल-भाषिक परंपरा से हुआ, किंतु समय के साथ इसने स्वतंत्र पहचान विकसित की। रामचरितम् और पथ्तु पाट्टू इसके प्राचीन साहित्यिक नमूने हैं। मलयालम में संगठित व्याकरण, दार्शनिक साहित्य, ऐतिहासिक काव्य और विविध धार्मिक ग्रंथों का बड़ा भंडार है। आधुनिक काल में बासेल मिशन और स्थानीय लेखकों ने मलयालम गद्य को नई दिशा दी।
6. ओड़िया
2014 में ओड़िया को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया। इसकी साहित्यिक परंपरा 10वीं शताब्दी से सुस्पष्ट रूप में उपलब्ध है। सरला दास की ओड़िया महाभारत, जगन्नाथ संस्कृति, महाकाव्य और लोककथाएँ ओड़िया भाषा को एक विशिष्ट सांस्कृतिक स्थान प्रदान करती हैं। ओड़िया की ध्वन्यात्मक प्रणाली अन्य भारतीय भाषाओं की अपेक्षा अधिक संरक्षित मानी जाती है, जिसके कारण इसकी प्राचीनता और विशिष्टता सिद्ध होती है।
भारत की शास्त्रीय भाषाएँ केवल भाषिक इकाइयाँ नहीं, बल्कि उस बौद्धिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसने भारत की सभ्यता को हजारों वर्षों तक संजोए रखा। इन भाषाओं का साहित्य इतिहास, दर्शन, धर्म, कला, विज्ञान और सामाजिक चेतना का प्रामाणिक आधार है। शास्त्रीय भाषाएँ भारत की विविधता, निरंतरता और सांस्कृतिक आत्मा की जीवंत परिचायक हैं। अतः इनका संरक्षण, अध्ययन और संवर्धन भारतीय संस्कृति के भविष्य के लिए अपरिहार्य है। (Bharat ki shastriya bhashayen)