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अधिनायक : रघुवीर सहाय (व्याख्या सहित) Adhinayak Kavita

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रघुवीर सहाय द्वारा रचित अधिनायक कविता (Adhinayak Kavita) भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। यह कविता ऐसी व्यवस्था पर व्यंग्य करती है जो सत्ता के रोब-दाब और ठाट-बाट से लोगों पर शासन करने की मंशा रखती है। कविता का पाठ नीचे दिया गया है :-

अधिनायक कविता (Adhinayak Kavita)

राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है

मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चॅवर के साथ
तोप छुड़ा कर ढोल बजा कर
जय-जय कौन कराता है

पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा
उनके
तमगे कौन लगाता है
कौन कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है

प्रसंग: प्रस्तुत कविता प्रयोगवादी कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित है। रघुवीर सहाय ने अपनी कविताओं के माध्यम से तत्कालीन समाज, राजनीति और व्यक्ति का वर्णन करते हैं। इन्होंने एक बनी बनाई परिपाटी पर चलने की बजाय कुछ अलग और विशेष कर जनसमूह में चेतन जागृत करने का प्रयास किया। 

संदर्भ : प्रस्तुत कविता में कवि देश के गरीब, दुखियारी और असहाय जनता की स्थिति से लोगों को अवगत कराना चाहते हैं और बताना चाहते हैं कि किस प्रकार वे लोग आज़ादी से पूर्व भी दुखी थे और आज़ादी के बाद भी उनकी स्थिति में कोई खासा सुधार नहीं आया है। इस कविता में वह देश के शासक वर्ग के ऊपर भी बड़े चुटीले ढंग से व्यंग्य करते हुए उनकी नज़रंदाज़ी के बारे में बताते हैं। 

व्याख्या : प्रस्तुत कविता में कवि देश के शासक वर्ग के ऊपर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि हमारे राष्ट्रगीत में जिस अधिनायक की बात की गई है, जिस पालनहार का ज़िक्र उसमें आया है, वह भला कौन है? भारत का भाग्य-विधाता जिसे कहा गया है, आखिरकार वह कौन व्यक्ति है? जिसका गुणगान देश की गरीब और दुखियारी (हरचरना यहाँ गरीब और दुखियारी जनता का नेतृत्व कर रहा है) जनता फटा-चिटा वस्त्र पहन कर भी गाती है। शासक वर्ग से प्रश्न करते हुए वह पूछते हैं कि यह कैसा अधिनायक है जो मखमल के टमटम पर आता है, जिसके साथ बल्लम (भाला) धारण किए हुए सैनिकों का झुंड चला आ रहा है, सिर पर पगड़ी धारण किए और चँवर (पशुओं की पुंछ से बना पंख) से जिसकी आवभगत की जा रही है, जिसके आने पर ढोल बजते हैं, तोप से सलामी दी जाती है और चारों ओर वह अपनी जय-जयकार कराता है, यह कैसा शासक है? आगे वह कहते हैं कि देश में इतनी गरीबी और भुखमरी है कि पूरब-पश्चिम से नंगे-भूखे लोग, लंबे समय से भोजन न मिलने के कारण जिनकी हड्डियाँ उभर आई हैं और वे सभी नर-कंकाल की भांति प्रतीत हो रहे हैं। किन्तु राजा अपने सिंहासन पर सुखरूप बैठ उनकी इस दयनीय दशा को केवल देख् रहा है और उनके कल्याण के लिए कोई व्यवस्था नहीं कर रहा है। कवि कहते हैं कि इस देश की जनता केवल गरीब है, किन्तु शासक और नेतागण सब महाबली और ऐश्वर्य से घिरे हुए हैं। और बुरा तो यह है कि इतनी गरीबी और भुखमरी के बावजूद आपको राजा का पूर्ण सम्मान रखना है, उनके गुणगान का बाजा बजते रहना चाहिए। 

इस प्रकार कवि ने इस कविता के माध्यम से तत्कालीन भारत में गरीबी और भूख से हताश और परेशान जनता का दुख प्रकट करने की कोशिश की है। उनके मन में राष्ट्रगीत को लेकर भी एक उदासी का भाव है कि किस प्रकार राष्ट्रगीत में देश की संपन्नता और खुशहाली की बात की गई है लेकिन यथार्थ और वास्तविकता राष्ट्रगीत को केवल कोरी कल्पना मात्र बना कर रख देते हैं। नेता दिन प्रति दिन समृद्ध होते जा रहे हैं और जनता गरीब से और गरीब होती जा रही है। अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के संसाधन भी उनके पास उपलब्ध नहीं रह गए हैं, वहीं शासक मखमल की चादर बिछे टमटम पर आता है, सैनिक और अंगरक्षक उसकि सुरक्षा में तैनात रहते हैं, चारों ओर साज-सज्जा हुई है, चँवर डुलाए जा रहे हैं, ढोल-नगाड़े बजाए जा रहे हैं और इतनी दयनीय स्थिति में भी लोगों को उसकि जय-जयकार करनी पड़ती है।  अधिनायक लोगों को डर में जीने का आदी भी बना रहा है। 

विशेष:

  • कविता की भाषा सरल है। 
  • कविता में व्यंग्य का बहुत सुंदर प्रयोग किया गया है। 
  • भाषा में गेआत्मकता है। 
  • तुरही और बल्लम जैसे आंचलिक शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। 
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