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वर दे! वीणावादिनी : सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ Var de veena vadini

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महाप्राण निराला कृत वर दे! वीणावादिनी (Var de veena vadini) माँ शारदा की वंदना हेतु लिखा गया एक बेहद ही मनोरम और भक्तिमय गीत है। इस कविता में जहां भक्ति दिखाई पड़ती वहीं निराला माँ शारदा से अपने देशवासियों के लिए स्वतंत्रता का अमर वरदान मांगते भी नज़र आते हैं। इस प्रकार इस कविता में हमें राष्ट्रीय चेतना के स्वर भी दिखाई पड़ते हैं।

वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे!

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे!

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे!

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

यह कविता (Var de veena vadini) दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.ए. प्रोग्राम के सातवें सेमेस्टर (चौथे वर्ष) में लागि हुई है। रचनाकार केंद्रित अध्ययन के अंतर्गत सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की यह अद्भुत कविता विद्यार्थियों को पढ़ाई जाएगी।

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