सोशल मीडिया से सम्बन्धित विविध विषयों पर आलेख तैयार करना

समय के साथ-साथ मनुष्य के सोचने एवं विचार करने की आदतें, उसका व्यवहार एवं विमर्श का दायरा भी बदलता जाता है । आज नवमाध्यमों ने हमारी सोच के दायरे को बदला है साथ ही अभिव्यक्ति के तरीकों में भी परिवर्तन हुआ है । देश, काल और परिस्थिति की बातें अब बेगानी सी हो गई है, नवीन सूचनातंत्रों ने चर्चा, परिचर्चा और विमर्श के पुराने तरीके को बदल डाला है और लोक विमर्श को नया आयाम दिया है। परंपरागत मीडिया में जिन विचारों सूचनाओं को आसानी से कवरेज नहीं मिल पाती थी उन्हें सोशल माध्यमों ने आसान साधन उपलब्ध कराया है। साथ ही संचार एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में सही मायनों में पब्लिक जर्नलिज्म के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया है। सोशल माध्यम जनमाध्यमों को धीरे-धीरे जन की ओर अभिमुख करने का काम कर रहा है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि नव माध्यम वर्तमान दौर में लोकसंवाद एवं विमर्श की प्रक्रिया को एक नई दिशा प्रदान कर रहे हैं।
इंटरनेट ने बदली जीवनशैली
पिछले दो दशकों से इंटरनेट ने हमारी जीवनशैली को बदलकर रख दिया है और हमारी जरूरतें, कार्य प्रणालियाँ, अभिरुचियाँ और अब तो हमारे सामाजिक मेल-मिलाप और सम्बन्धों का सूत्रधार भी किसी हद तक इन्टरनेट ही है। इंटरनेट कम्प्यूटरों को आपस में बिना तार के जोड़ने वाले नेटवर्कों का नेटवर्क यानी न्यू मीडिया का मूलभूत कारक है। भारत में इंटरनेट का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 84 करोड़ है। यह विश्व भर के शैक्षणिक, औद्योगिक, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं और व्यक्तियों को आपस में जोड़ता है। यह विश्व भर के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर काम करने वाली नेटवर्क प्रणालियों को एक मानक प्रोटोकॉल के माध्यम से जोड़ने में सक्षम है। इसका कोई केन्द्रीय प्राधिकरण नहीं है। मात्र विभिन्न नेटवर्कों के बीच परस्पर सहमति के आधार पर इसकी परिकल्पना की गई है। यह सहमति इस बात पर है कि सभी प्रयोक्ता संस्थाएं इस पर संदेश के आदान-प्रदान के लिए एक ही (ट्रांसमिशन) भाषा या प्रोटोकॉल का प्रयोग करेंगी। देश में बढ़ते इंटरनेट उपभोक्ताओं को देखते हुए गूगल, फेसबुक जैसी कम्पनियाँ भारतीय भाषाओं को फोकस कर रही है। भारतीय भाषाओं में सामग्री बढ़ने से एवं इंटरनेट पर हिन्दी को महत्व देने के कारण, भविष्य में इन नए मीडिया माध्यमों की लोकसंवाद एवं विमर्श में निश्चित रूप से भूमिका बढ़ने का अनुमान है।
नवमाध्यम
आज का दौर ‘नवमाध्यम’ का है। वह दौर गया जब समाचारों को जल्दी में लिखा गया इतिहास कहा जाता था। तकनीकी क्रान्ति के पश्चात् मीडिया एक गहरे बदलाव के दौर में है। आज एक तरफ परम्परागत मीडिया जैसे अखबार, टीवी, रेडियो आदि है तो दूसरी तरफ न्यू मीडिया, जिसकी परिधि में एक वेबसाईट, पत्रिकाएँ, से लेकर फेसबुक, ट्विटर, विकिपीडिया, वाट्सएप आदि है। नए मीडिया ने संवाद की दुनिया को आज फैलाव का एक नया धरातल दे दिया है। संवाद का ऐसा लोकतंत्रीकरण मानव इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया था। नया माध्यम सोशल नेटवर्किंग साइट्स से कहीं आगे कनवर्जेन्स तक को समेटे हुए है। कनवर्जेन्स का अर्थ है एक मोबाइल फोन में पूरे सूचना तंत्र का विलय हो जाना। चाहे वह टीवी हो, अखबार का ऑनलाइन संस्करण हों, रेडियो प्रसारण हो, फेसबुक हो या आपका ब्लॉगस्पॉट का ब्लॉग । यह सब सिमटकर एक छोटे से डिवाइस में आ जाना ही कनवर्जेन्स कहलाता है।
आज का दौर सोशल मीडिया का दौर भी कहा जाता है। सोशल मीडिया में स्वयं की सक्रिय भागीदारी होती है, जिससे प्रयोक्ता खुलकर अपनी बात रख सकता है और अपनी कृतियों पर दूसरों की प्रतिक्रियाएं चाहता है, और उनकी उम्मीद से अधिक सक्रिय रहता है। सोशल मीडिया एक तरह से दुनिया के विभिन्न कोनों में बैठे उन लोगों से संवाद है जिनके पास इंटरनेट की सुविधा है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। एक व्यक्ति अपने किसी विचार पर तत्काल बहुत से लोगों की प्रतिक्रियायें जानना चाहता है। मीडिया में भी ऐसे ‘टू-वे कम्युनिकेशन’ की ही अपेक्षा की जाती है। सोशल नेटवर्किंग मनुष्य के इसी मनोविज्ञान को खूब भुना रही है। वर्तमान में विश्व में दो तरह की सिविलाइजेशन यानि संस्कृतिकरण की बात की जा रही है, वर्चुअल और फिजीकल संस्कृतिकरण । सोशल मीडिया इसी वर्चुअल सिविलाइजेशन का एक स्टेशन है। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो तीन गुना अधिक आबादी इंटरनेट पर होगी। दरअसल, इंटरनेट एक ऐसी टेक्नोलॉजी के रूप मैं हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया है, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं । यहीं से सामाजिक मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। सामाजिक मीडिया अन्य पारम्परिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और स्थायित्व आदि तत्व शामिल है।
सोशल मीडिया : विविध पक्ष
लोकतांत्रिक व्यवस्था और सोशल मीडिया
लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था रखने वाले देशों में मीडिया को अभिव्यक्ति की परी स्वतंत्रता दी गई है। यह सिर्फ सैद्धान्तिक नहीं है, बल्कि व्यवहारिक तौर पर है। जबकि जिन देशों को दोषपूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था की श्रेणी में रखा गया है, वहाँ मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो है, लेकिन राजनीतिक व्यवस्था किसी न किसी तरीके से इस पर नकेल कसती रहती है। इसके बावजूद इनकी खासियत यह है कि कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर मीडिया को लिखने-बोलने की पूरी आजादी दी गई है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नागरिक जिस ‘सार्वजनिक मंच’ के जरिए भागीदारी करते हैं, उसमें उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे बुनियादी शर्त है। मीडिया की स्वतंत्रता इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से निसृत होती है जो कि नागरिकों के जानने के अधिकार से जुड़ी हुई है। स्पष्ट है कि मीडिया की ताकत का आधार सूचित और सक्रिय नागरिक है । हैबरमास के अनुसार लोकतंत्र का प्राण वायु ‘सार्वजनिक मंच’ तभी सबसे प्रभावी तरीके से काम करता है जब वह संस्थागत रूप में राज्य और समाज की ताकतवर आर्थिक शक्तियों से स्वतंत्र होता है।
नवमाध्यमों का लोकविमर्श के लिए प्रयोग
सोशल मीडिया साइट्स ने वैश्विक स्तर पर लोगों को करीब आने का मौका दिया है तथा संवाद और संस्कृतियों के प्रसार का हमेशा से आधार रहा है । जिस तरह सामाजिक मीडिया का विस्तार हुआ है, लोगों के विचारों में खुलापन आ गया है। सोशल मीडिया ने पूरे विश्व में लोगों को आन्दोलित सा कर दिया है। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक मुद्दे सोशल मीडिया पर विमर्श के विषय बनते रहते हैं। मुख्य धारा की संस्थागत राजनीतिक प्रक्रिया की श्रेणीबद्ध और नौकरशाही की प्रवृत्तियों से मुक्त संवाद, बहस और मुद्दा आधारित चर्चाओं के नये अवसर पैदा करने में सोशल मीडिया की सम्भावनाओं को प्रायः सराहा गया है। यूरोप में इस सन्दर्भ में विशेषकर 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध और 2000 के दशक के पूर्वार्द्ध में अनेक प्रयोग किए गए हैं। पर्यावरणीय और नियोजन सम्बन्धी मुद्दों पर वेब आधारित पारस्परिक विमर्श की एक श्रृंखला का सूत्रपात किया गया था। ब्रिटिश संसद के लिए विशिष्ट नीतिगत विषयों पर समय-समय पर नागरिकों से ऑनलाइन विमर्श किया करता है।
भारत और विश्व के अन्य समसामयिक राजनीकि परिदृश्य पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि सोशल नेटवर्किंग, पूरे विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय
गतिविधि बनकर उभरी है। सामाजिक और राजनीतिक कार्यों के लिए सोशल मीडिया मंचों का उपयोग अब आम होता जा रहा है। भारत में इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के माध्यम से लोगों को जोड़कर जनलोकपाल बिल के समर्थन में काफी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दिया था। कई देशों में किसी विशेष प्रकार के जनमत तैयार करने में भी इसका प्रयोग हो चुका है। बांग्लादेश और मिस्र में हुए सत्ता परिवर्तन इसकी भूमिका सराहनीय रही।
सोशल मीडिया एक ऐसे मंच के रूप में देखा जा रहा है जिससे सरकारी विकास कार्यक्रमों में लोगों को जोड़ने में सहायता मिल सकती है और उनसे फीडबैक प्राप्त किया जा सकता है। यहीं कारण है कि योजना आयोग ने इसके प्रयोग की तैयारी शुरु कर दी है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के बारे में सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जानकारी देना इन्हीं प्रयासों का एक हिस्सा है। आयोग का मानना है कि सोशल मीडिया की पहुँच का इस्तेमाल कर सरकार की योजनाओं के बारे में लोगों की बेहतर तरीके से अवगत कराया जा सकता है। आयोग का यह भी मानना है कि सोशल मीडिया की ओर युवाओं के रुझान को देखते हुए सरकार को इस दिशा तेजी से कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
मीडिया द्वारा एजेण्डा सेटिंग
एजेण्डा सेटिंग की परिकल्पना का व्यवस्थित अध्ययन सर्वप्रथम मैक्सवेल ई. मैकाम्ब एवं डोनाल्ड एलशॉ ने 1972 में किया। उन्होंने अमेरिका में हुए राष्ट्रपति के चुनाव के सम्बन्ध में एक अध्ययन किया। इस अध्ययन के अनुसार किसी राजनीतिक व्यवस्था में तीन प्रकार के एजेण्डे का जिक्र किया। इनमें पब्लिक एजेण्डा, मीडिया एजेण्डा और पॉलिसी एजेण्डा शामिल हैं । एक आदर्श स्थिति में पब्लिक एजेण्डा और लोगों की विभिन्न परिस्थितियों से जुड़ा है, जिसे वह मीडि एजेण्डे के जरिए राज्य तक पहुँचाना चाहते हैं, ताकि उसे पॉलिसी एजेण्डे का अंग बनाया जा सकें। मीडिया एजेण्डा एक माध्यम है, जो लोगों के मुद्दे को राज्य तक पहुँचाता है और राज्य का ध्यान उस ओर आकर्षित करता है। वही पॉलिसी एजेंडा राज्य द्वारा तय किया जाता है, जो पब्लिक को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए, लेकिन तीनो एजेण्डे में तालमेल व्यावहारिकता के धरातल पर कम ही दिखाई पड़ता है। ज्यादातर मीडिया और राज्य का एजेण्डा एक साथ काम करते हैं और पब्लिक एजेण्डा हशिए पर चला जाता है। यहाँ यह उल्लेख करना जरुरी है कि जहाँ इन तीनो में तालमेल होता है, वहाँ समाज, मीडिया और राज्य अपने अधिकारों का भरपूर दोहन करते हुए सुखद स्थिति में होते हैं। पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में यह देखने को मिलता है, जहाँ मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इसकी खास बात यह है कि उस व्यवस्था के सबल और दुर्बल पक्षों को सामने रखने के लिए मीडिया स्वतंत्र है और लोकहित तीनों एजेण्डों में सर्वप्रमुख है। इससे अलग कई देशों में जहाँ लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए कोई स्थान नहीं है, वहाँ मीडिया के लिए राज्य का एजेण्डा पहला और अन्तिम विकल्प है । किसी भी स्थिति में राज्य के एजेण्डे को चुनौती नहीं दी जा सकती।
एजेण्डा सेटिंग सिद्धान्त के अनुसार मीडिया जनमत के ऊपर एक विशेष प्रभाव छोड़ता है। लोगों को मुद्दों की जानकारी मीडिया द्वारा ही होता है। मीडिया नमत निर्माण एवं जनमत परिवर्तन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता। आज हर चैनल अपने प्राइम टाइम में किसी खास मुद्दे को उठाने की कोशिश करता है, यह एजेण्डा सेटिंग का एक प्रमुख रूप है।
एजेण्डा सेटिंग सिद्धान्त को और अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए इसे ज्यादा प्रासंगिक, सामाजिक और ज्ञान ग्रहण की प्रक्रिया के साथ-साथ सूचना स्त्रोत की विशेषज्ञता को देना जरूरी होगा। राजनीतिक और सामाजिक रूप से मीडिया की धारणा को हम यह कह सकते हैं कि मीडिया एजेण्डे तय करने के विभिन्न मुद्दा देने का कार्य करता है अब उनमें से कौन प्रमुख मुद्दा एजेण्डा सेटिंग सिद्धान्त पर प्रभावी हो सकता है वह समय और समाज सापेक्षता पर भी निर्भर करता है।
सोशल मीडिया और गुड गवर्नेस
सोशल मीडिया के जरिए गुड गवर्नेस यानि बेहतर प्रशासन के रिश्ते को स्थापित करने की कोशिश दिखती है। ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट के प्रो. विलियम एच. डटन सोशल मीडिया को ‘फिफ्थ स्टेट’ यानि लोकतंत्र के पाँचवें खम्भे के तौर पर देखते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से सरकारी विभाग जनता तक सीधे पहुँच सकेंगे और लोग भी उस विभाग से सम्बन्धित अपनी समस्याएँ सीधे सरकारी अधिकारियों तक पहुँचा सकेंगे। सरकार और वहाँ के विभाग तेजी से खुद को सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय कर रहे हैं। इससे भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगी। वर्तमान सरकार का लगभग हर विभाग अब सोशल मीडिया पर सक्रिय है। सोशल मीडिया को ‘गुड गवर्नेस’ के माध्यम के तौर पर पेश किया जा रहा है।
सोशल मंच पर होने वाले विमर्श की प्रकृति अस्थायी होती है अर्थात् इस प्रकार के विमर्श में स्थायित्व की कमी होती है। इस मंच पर होने वाले विमर्श में विश्वसनीयता का भी अभाव होता है । यद्यपि अधिकांश लोग इस मंच सार्वजनिक मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा भी कर रहे हैं और ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। परन्तु अभी भी इस मंच पर बहुत अधिक गम्भीर प्रकृति के एवं सार्थक विमर्श कम हो रहे हैं। जनमत निर्माण में सोशल मीडिया की भूमिका तेजी से बढ़ी है और यह जनमत बनाने में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
सोशल मीडिया पर विमर्श का एजेण्डा कभी-कभी पूर्व नियोजित होता है तो अक्सर अनियोजित एवं स्वतः स्फूर्त ही होता है। यद्यपि विमर्श के विषयों को पहले से निर्धारित जरूर किया जाता है, परन्तु ऐसा भी नहीं है कि सभी विषय पूर्व निर्धारित ही होते हैं। नीति निर्धारण एवं निर्माण प्रक्रिया में सोशल मीडिया पर होने वाले विमर्श का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है और इस प्रभाव की प्रकृति सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार की होती है।
सोशल मीडिया पर होने वाले विमर्श का राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इस प्रकार के विमर्श राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया को प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
सोशल मीडिया और शिक्षा (ई-लर्निंग)
समाज और शिक्षा एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं तथा शिक्षा किसी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की प्रगति के साथ-साथ सभ्यता और संस्कृति के विकास के लिए भी आवश्यक है। आज बदलते परिवेश में इंटरनेट से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति आ गयी है, जिसने पुरानी तकनीक को हटा कर नयी शिक्षा प्रणाली को उजागर किया है जिसे ई-लर्निंग के नाम से जाना जाता है। आज लगभग हर हाथ में तेजी से पहुँच रहे स्मार्टफोन और मुफ्त इंटरनेट सेवाओं ने मनुष्य की आदतों में बदलाव की प्रक्रिया तेज कर दी है। आज गूगल हमारी जरूरतों में शुमार हो चुका है और इंटरनेट ने ज्ञान के नये भंडार खोले हैं। शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार में निश्चित ही तकनीक का बड़ा योगदान है। आधुनिक समय की जीवन शैली और आवश्यकताओं और उम्मीदों को देखते हुए आज शिक्षा को तकनीक से जोड़ना जरूरी हो गया है। पूर्व समय से लेकर अब तक रेडियो और टेलीविजन जैसे संचार माध्यम मनोरंजन के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। रेडियो पर एन.सी.ई.आर.टी. तथा इग्नू के अनेक शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। उसके माध्यम से साहित्य, इतिहास, विज्ञान आदि से संबंधित कार्यक्रम विद्यार्थियों के लिए प्रसारित किये जाते हैं। केवल श्रव्य माध्यम की सुविधा होने के बावजूद रेडियो निरक्षरों के लिए वरदान बन कर आया, जिसके द्वारा जन-जागरूकता के लिए कृषि, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, यातायात संबंधी जानकारियों का प्रसारण किया जाता है। दूरदर्शन के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में नये प्रयोग किये गये।
नयी तकनीक और इंटरनेट से ज्ञान के नये भंडार तो अवश्य खुल गये हैं, पर उसका लाभ उठाने के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं में से सही-गलत का चुनाव करने लायक समझ और विवेक विकसित करना होगा, क्योंकि तभी उसकी सार्थकता सिद्ध हो पाएगी । वस्तुतः भारत के हर क्षेत्र तक शिक्षा पहुँचाना एक बहुत बड़ी समस्या है। निःसंदेह डिजिटलीकरण ने शिक्षा और ज्ञान को हर क्षेत्र तक पहुँचाने की चुनौती को काफी हद तक कम किया है। प्रयास अभी जारी है, और जहाँ तक शिक्षा की गुणवता की बात है तो अभी का बहुत सी चुनौतियों से पार पाना बाकी है।
सोशल मीडिया और मनोरंजन
मनोरंजन का अर्थ है-मन का रंजन, अर्थात् मन को मिलने वाला सुख या आनंद आरंभ से ही व्यक्ति अपने दिनभर के संघर्ष, तनाव और थकान को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजन का सहारा लेता रहा है। मनोरंजन प्रत्येक उम्र और वर्ग के व्यक्तियों के लिए आवश्यक है और हर अवस्था के व्यक्ति अपनी-अपनी रुचि के अनुसार मनोरंजन के विविध माध्यमों का प्रयोग कर अपने को सुकून देते हैं। मनोरंजन के प्राचीन माध्यमों में शिकार करना, घुड़सवारी, चौसर और शतरंज • आदि शामिल थे। समय और समाज का स्वरूप बदलने के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों में बदलाव आता गया। मनोरंजन के पारंपरिक माध्यमों में मनबहलाव के लिए घर के भीतर indoor और बाहर outdoor अनेक खेल खेले जाते थे। लूडो, कैरम, ताश, कंचे, गुल्ली-डंडा, पतंगबाजी, कबड्डी, क्रिकेट आदि खेलों से बच्चों और युवाओं का शारीरिक और बौद्धिक विकास प्रबल होता था। आमतौर पर लड़कियाँ कर भी आनंद पाया जा सकता है। अब तो विभिन्न टीवी चैनल भी स्मार्टफोन पर उपलब्ध हैं।
इंटरनेट के जरिये यूट्यूब पर कोई भी फिल्म डाउनलोड कर देखी जा सकती है। कमर्शियल फिल्मों के साथ-साथ कला फिल्म, लघु फिल्में भी यहाँ उपलब्ध हैं । इसी श्रृंखला में दुनिया का अग्रणी ऐप Netflix है, जो देशी-विदेशी फिल्में, शोज और अनेक वेब सीरिज उपलब्ध कराता है। यह एक ऑन डिमांड वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस है, जिसमें बेसिक, स्टैण्डर्ड और प्रीमियम प्लॉन के अंतर्गत अनलिमिटेड वीडियो देखे जा सकते हैं। रीड हैंस्टिंग्स द्वारा 1997 में शुरू हुई यह सेवा आज दुनिया के 10 से अधिक देशों में उपलब्ध है, जिसने मनोरंजन के नये आयाम उपस्थित किये। Amazon prime video service एक भारतीय ऐप है, जहाँ भारतीय भाषाओं की फिल्मों और वेब सीरीज का आनंद लिया जा सकता है। परंतु इतनी सुलभता से मिलने वाले मनोरंजन के साथ तमाम खतरे भी जुड़े हैं। अश्लील फिल्मों, तस्वीरों और खतरनाक हिंसक खेलों की बहुतायत को देखते हुए सावधान रहने की भी आवश्यकता है। यह सही है कि मनोरंजन की पूर्ति न होने से जीवन में नीरसता, शुष्कता और कुंठाओं का संचार होने लगता है, पर वर्तमान परिदृश्य में यह देखना होगा कि सोशल मीडिया के बहाने ये ऐप समाज में दूषित प्रवृत्तियों को जन्म न दें।
सोशल मीडिया और स्त्री
सोशल मीडिया ने स्त्री की बनी-बनायी छवि, स्त्री के बारे में प्रचलित रूढ़िगत एवं मिथकीय अवधारणाओं को तोड़ा है। आज की स्त्री के सम्मुख पश्चिम का नया ग्लोबल मॉडल आया है जिससे स्त्री के विचारों की संकीर्णता टूटी है और उसकी पारंपरिक छवि के बजाय उसकी एक नयी छवि निर्मित हुई है। उसका सारा संघर्ष उसे औरत, देह और देवीकरण से मंडित करने के विरुद्ध व्यक्ति और मानवी होने का रहा है। 1792 में मेरी वोल्सटन क्राफ्ट ने अपनी पुस्तक ‘विंडिकेशन ऑफ द राइट्स ऑफ वीमेन’ में नारी समाज के अधिकारों और जीवन निर्वाह के क्षेत्र में उनके अपने स्वतंत्र निर्णय लेने के बारे में विचारों को प्रतिपादित किया। परंपरागत समाज में स्त्री को घरेलू चारदिवारी के भीतर धकेल दिया जाता था और उसकी सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका नगण्य थी उसे घर में भी समान अधिकार नहीं दिये जाते थे। परिवार और समाज में श्रम विभाजन किया गया। पुरुषों को बाहरी एवं स्त्रियों को घरेलू काम बाँट दिये गये, जिससे भेदभाव स्थापित हुआ। ऐसे में संपत्ति पर पुरुष का निजी वर्चस्व स्थापित हुआ और उसे ही निर्णय का अधिकार मिला। मुक्ति को परिभाषित करते हुए फ्रायड ने कहा था कि ‘चयन और निर्णय की स्वतंत्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व और मनोविज्ञान के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती है।’
आज समाज में स्त्री की भूमिका में आधारभूत परिवर्तन हो चुका है। इंटरनेट के इस युग में जब संबंधों से लेकर व्यापार तक ऑनलाइन हो चुका है तो व्यक्ति की भूमिकाएँ भी बदल रही हैं। औरत की एक नयी पहचान बनाने और स्थापित करने में मीडिया की बड़ी भूमिका रही है। टेलीविजन की क्रांति ने स्त्री को अधिक स्वतंत्र और मुक्त तो बनाया पर वहाँ अपने को अभिव्यक्त करने की सीमाएँ थीं। ऐसे में सोशल मीडिया के रूप में उसे अभिव्यक्ति का एक ऐसा मंच मिला है, जहाँ उसका सदियों का मौन बेरोकटोक मुखरित हो रहा है। यह प्लेटफॉर्म उसके अंतर्मन के सुख-दुख, निराशा, क्षोभ और प्रतिरोध को व्यक्त करने का साझा मंच है। पड़ोस की सखी-सहेलियों से अपनी हँसी और आँसू बाँटती एक घुटती हुई स्त्री आज केवल अपने बारे में ही नहीं बल्कि सामाजिक-राजनैतिक विषयों पर भी बेखौफ और बेबाक होकर अपनी राय रख रही है। सोशल मीडिया ने उसके सम्मुख नये जगत् के द्वार खोले हैं और चौखटे में जड़ दी गयी तस्वीर वाली भूमिका को नकार उसने रूढ़िवादी समाज को चुनौती देते हुए अपने लिए ‘स्पेस’ बनाया है। याद कीजिए फिल्म ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ की वह किशोर लड़की जो अपने स्वप्नों और अपनी आकांक्षाओं को पंख देना चाहती है और उसमें उसका सहयोगी बनते हैं सोशल मीडिया के माध्यम | वह किशोरी अपने कट्टर पिता के विरोध के बावजूद दृढ़ संकल्प के साथ गुमनाम रूप से अपने गाने इंटरनेट पर पोस्ट करके अपना जुनून कायम रखती है।
सोशल मीडिया और युवा
बदलते समय और नये दौर के सांस्कृतिक संकट के संदर्भ में चर्चा करते हुए किसी भी राष्ट्र की युवा पीढ़ी केंद्र में होती है, क्योंकि युवा ही देश की आशाओं, आकांक्षाओं और सुनहरे भविष्य का प्रतिबिंब होता है। युवाओं की स्वस्थ सोच, संयम, बौद्धिक क्षमता और लगन देश के विकास में अग्रणी भूमिका निभाती है। युवा वर्ग नये मूल्यों, नयी सोच और जीवन जीने के नये तरीकों का प्रतिनिधित्व करता है। परिस्थितियों की माँग के अनुसार नये विचारों को अपनाने और पुरातन मूल्यों को समयानुसार परिवर्तित कर उन्हें युगानुकूल बनाने का दायित्व भी इसी पीढ़ी पर है। सामाजिक, राजनैतिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनने और शिक्षित होने के साथ-साथ उन समस्याओं के उन्मूलन में उनके योगदान की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े इस देश में विद्रोह व आंदोलन के सूत्रधार युवा ही थे, जिनके अनथक जोश और क्रांतिकारी सोच के कारण ही स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई अपने चरम पर पहुँची। ब्रिटिश शासन की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ युवा नेतृत्व की जागरूक सोच, प्रबल विचारों और दमदार लेखनी ने देश से अँग्रेजी सत्ता की जड़ें हिला दीं और तब जागरूक युवा शक्ति एक मिसाल बनी।
युवाओं में और विचाराभिव्यक्ति को नया आयाम देने का पूरा श्रेय इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स को जाता है। वास्तव में ‘हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं, जब एक ओर आदमी के भीतर का अकेलापन लगातार बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर उसके भीतर नये-नये संबंधों को खोजने और पाने की ललक भी है। एक अधिक व्यापक सूचना से भरी हुई अधिक ऊष्मा और अधिक मानवीय संबंधों वाली दुनिया की लाश मनुष्य के भीतर सदा से रही है…..’ (लेख – कहाँ पहुँचा रहे हैं अंतरंगता के नये पुल- विजय कुमार)
सोशल मीडिया की ओर आकर्षित होने वाले कारक
सोशल मीडिया राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों को सम्भावित मतदाताओं के साथ निजी संवाद कायम करने का अवसर देता है। ये राजनीतिज्ञों को नागरिकों के नजदीक अत्यन्त तेजी से और लक्षित तरीके से मास मीडिया के किसी माध्यम और हस्तक्षेप के बगैर सीधी पहुँच का अवसर देता है और ऐसे ही मतदाताओं को भी दलों और नेताओं के समीप लाता है और मतदाता और राजनीतिज्ञों के बीच नया आधार बनाता है। ऑनलाइन प्रतिक्रियाएँ, फीडबैक, वार्ता और विमर्श तो होते ही हैं। वे ऑफलाइन गतिविधियों और घटनाओं के लिए भी आधार प्रदान करते हैं। निजी नेटवर्क पर पोस्ट किये गये संदेश गुणात्मक रूप से मूल्यवान हो जाते हैं जब उन्हें साझा किया जाता है।
राजनीतिक दल और नेता अब अपनी बात रखने के लिए मुख्यधारा के मीडिया के गेटकीपरों और उनके न्यूज लॉजिक का मोहताज नहीं रह गये थे। मुख्यधारा मीडिया के एजेण्डा और जिस मीडिया पर्यावरण को अब संदिग्ध और पूर्वाग्रहग्रस्त माना जाने लगा है उसमें सोशल मीडिया एक ताजा लहर के समान था जिसके जरिए वो टेक प्रेमी उस युवा मतदाता तक पहुँचने लगा जो पुराने अनुभवों के बोझ तले नहीं दबा हुआ था।
निष्कर्ष
इंटरनेट के प्रयोग से निर्मित उन मंचों के समूह को सोशल मीडिया कहा जाता है जिसके जरिए आम आदमी अपने विचारों को समाज के सामने रख सकता है। इन मंचों का प्रयोग करने वाला हर व्यक्ति वहाँ एक ‘प्रोफाइल’ के रूप में मौजूद रहता है । इन ‘प्रोफाइलों’ के जरिए लोग अपनी बातों को लिखित सामग्री, तस्वीरों, ऑडियो और वीडियो सामग्री के रूप में इन मंचों पर प्रस्तुत करते हैं।
पारंपरिक मीडिया (जैसे कि समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविजन इत्यादि) के विपरीत सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जो आपकी बात को प्रकाशित व प्रसारित करने के लिए सदैव तत्पर रहता है । पारंपरिक मीडिया में अपनी जगह बना पाना और उसके जरिए अपनी बात कह पाना सबके लिए संभव नहीं था ( और न ही अब है !); लेकिन सोशल मीडिया लोगों का अपना मीडिया है। आपकी फेसबुक वॉल आपका अपना अखबार है; आपका यूट्यूब अकाउंट आपका अपना निजी टीवी चैनल है; आपका ब्लॉग आपकी अपनी पत्रिका है। सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को अपनी बात प्रसारित करने के लिए वे सभी औजार दे दिए हैं जो किसी जमाने में केवल चुनिंदा लोगों को ही उपलब्ध होते थे।