हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

सोशल मीडिया से बनने वाली खबर पर रिपोर्ट तैयार करना

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‘जब भी बोलना वक्त पर बोलना, मुद्दतों सोचना मुख्तसर बोलना।’ वाचिक परम्परा की इस सीख के साथ पत्रकारिता के पहले संवाददाता नारद, आद्य संपादक वेद व्यास, सर्वप्रथम लाइव टेलीकास्ट करने वाले महाभारत के संजय आदि से प्रारंभ होकर पत्रकारिता ने एक लंबा रास्ता तय किया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मुगलकाल के वाक्यानवीस तथा प्रथम स्वातंत्र्य समर (1847) काल में रोटी व कमल .. प्रतीक के बाद राजकीय मुनादी और सुदूर देहाती क्षेत्रों में ठेठ हरकारों या संदियों से गुजरते हुए पत्रकारिता अपने वर्तमान अत्याधुनिक व क्रांतिकारी स्वरूप ‘ई जर्नलिज्म या वेब पत्रकारिता’ तक आ पहुंची है। नवीनतम तकनीकों पर आधारित अब तक के सबसे तेज और सर्वत्र उपलब्ध पत्रकारिता माध्यम का ही नाम है- वेब पत्रकारिता। वेब पत्रकारिता को सुविधानुसार वेब मीडिया, ई-जर्नलिज्म, नया मीडिया, सोशल मीडिया भी कहते हैं।

वेब पत्रकारिता क्या है?

वेब पत्रकारिता के नाम से स्पष्ट है कि यह कंप्यूटर और इंटरनेट के सहारे संचालित की जाने वाली पत्रकारिता है। इसकी पहुंच संपूर्ण विश्व तक है। इसके कंटेंट डिजिटल तंरगों के माध्यम से प्रकाशित-प्रसारित और प्रदर्शित किए जाते है ।
प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से अलग मीडिया के इस नए स्वरूप के पाठकों-दर्शकों-श्रोताओं की संख्या को परिसीमित नहीं किया जा सकता। इसके लिए इंटरनेट कनेक्शन के साथ कंप्यूटर, लैपटॉप, पॉमटॉप या अब स्मार्टफोन की आवश्यकता होती है। वेब पत्रकारिता इंटरनेट के माध्यम से अपने सर्वव्यापी स्वरूप को प्रदर्शित करती है। इसके कंटेंट 24X7 उपलब्ध रहते हैं। वेब पत्रकारिता की सबसे बड़ी विशेषता है कि वेब यानी तरंगों पर निर्भर होना। यहां अलग से अभिलेखागार या संदर्भ पुस्तकालय नहीं बनाना पड़ता। प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मुकाबले वेब पत्रकारिता की उम्र बहुत कम है। लेकिन उसका विस्तार इन दोनों ही माध्यमों से कई गुना तेज हुआ है। 5जी की गति से चलने वाले इंटरनेट की आगमन के बाद से इसके विस्तार की कल्पना करना भी कठिन होता जा रहा है।

वेब पत्रकारिता का असर

हम आज ऐसे समय में जी रहे हैं जब वेब का असर हमारे जीवन के हर पक्ष पर है और वेब पत्रकारिता का भी । वेब पत्रकारिता ने न केवल पारंपरिक माध्यमों को लोकप्रियता और सुलभता के स्तर पर चुनौती दी है। बल्कि उनकी संरचना और कार्यप्रणाली को भी नई दिशा की ओर देखने को मजबूर किया है। स्थापित दायरों और चरणों से आगे निकल चुकी वेब पत्रकारिता ने स्थापित पेशेवर पत्रकारों के लिए भी संकट की स्थिति पैदा की है। वेब पत्रकारिता ने मीडिया को संस्थानों के दायरे से बाहर निकाल कर और अधिक लोकतांत्रिक बना दिया है। वेब पत्रकारिता ने सिटिजन को नेटिजन बना दिया । आज कोई भी व्यक्ति घर बैठे कोई भी सूचना डिजिटल माध्यम द्वारा प्रसारित कर सकता है। चाहे वह यू-ट्यूब चैनल द्वारा हो, फेसबुक लाइव द्वारा हो या ट्विटर या इंस्टाग्राम द्वारा। पहले केवल पत्रकार ही खबरें लिखा करते थे। लेकिन अब कोई भी व्यक्ति ब्लॉग द्वारा अपने विचार हजारों-लाखों लोगों तक पहुंचा सकता है। यह एक प्रकार से मीडिया की मुक्ति है, जिसपर कोई

सेंसरशिप या संपादकीय जोर नहीं है। पास में कंप्यूटर न हो, टेबलेट न हो केवल एक मोबाइल और इंटरनेट कनेक्शन हो काफी है। मोबाइल माध्यम पर वेब पत्रकारिता खास तौर पर इस लिए रोज मिल जाती है क्योंकि उसका फॉर्मेट कंटेंट को सहजता से समा लेता है ।
गांधी जी ने मीडिया को एक नदी की भांति बताया था जिसका अपने तटों के भीतर रहना जरूरी है। लेकिन आज वेब पर मीडिया का कोई तट अनंत है। यह अनिश्चितता अफवाह और प्रामाणिकता के अभाव जैसी चिंताएं भी साथ लाती है। हाल ही में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने सोशल मीडिया पर झूठी खबरें और अफवाहें फैलने पर अफसोस जाहिर किया और एक पत्र जारी कर कहा कि भविष्य में फेसबुक तत्थों की जांच के लिए अधिक उपाय करेगा। उन्होंने फेसबुक को समाज के प्रति और जिम्मेदार बनाने की बात कही । केवल फेसबुक ही नहीं, गूगल पर भी वेब पत्रकारिता का असर रहा है।

सोशल मीडिया से बनने वाली खबरों पर रिपोर्ट

सही मायनों में देखा जाए तो सोशल मीडिया के अस्तित्व में आने के बाद ही दो-तरफा संदेश संप्रेषण (Two way communication) संभव हो सका है। इस कम्युनिकेशन में ऑडिएन्स प्राप्तकर्ता (receiver) भी है और वह संदेश-प्रेषक (sender@source) भी हो सकता है। इन दोनों की भूमिका परस्पर बदलती रहती है। ऑडिएन्स की इसी सक्रियता की वजह से सोशल मीडिया जनसंचार का एक बहुत सशक्त माध्यम बन गया है। यह माध्यम ऑडिएन्स की सोच को सीधे प्रभावित करने की क्षमता रखता है। सच तो यह है कि नवमाध्यमों के युग में सोशल मीडिया एजेंडा-सेटर की भूमिका निभाने लगा है। जिस मीडिया को वैकल्पिक मीडिया कहा जा रहा था, वह दरअसल अब मुख्यधारा का मीडिया बन गया है और मुख्यधारा के मीडिया कहे जाने वाले प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अब खबरों के लिए सोशल मीडिया को फॉलो करने लगे हैं। आज के समय में यह नव-माध्यम इतना सशक्त हैं कि यह समाज में शांति स्थापित करने का माध्यम भी हो सकता है और समाज में नफरत, वैमनस्य और द्वेष फैलाने का हथियार भी।
भारत जैसे सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता वाले देश में कुछ असामाजिक तत्त्वों के लिए समाज में नफरत फैलाना बहुत आसान हो गया है। सोशल मीडिया . का उपयोग कर ये लोगों को गुमराह कर रहे हैं। बचपन से हम पढ़ते आ रहे हैं कि विज्ञान वरदान है या अभिशाप, लेकिन हम सब जानते हैं कि यह हमारे उपयोग पर निर्भर करता है कि हम उसका उपयोग फायदे के लिए करते हैं या फिर नुकसान करने के लिए। सोशल मीडिया के साथ भी कुछ ऐसा ही है। कुछ अवांछनीय तत्त्वों ने सोशल मीडिया का उपयोग अशांति, अफवाह, घृणा, हिंसा और असहिष्णुता फैलाने के लिए करना शुरू कर दिया है । ये धर्म, जाति, संप्रदायों, विभिन्न मतों और विचारधाराओं के नाम पर लोगों में उन्माद पैदा करते हैं और लोगों की भावनाएँ भड़काकर अपनी राजनीतिक व आर्थिक रोटियाँ सेंकते हैं। कुछ लोग तो तथ्यों के साथ इस तरह छेड़-छाड़ करते हैं कि सही और गलत के बीच फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
सोशल मीडिया का दुरुपयोग हमारे समाज के लिए बहुत ही घातक है। यह समाज की शांति व्यवस्था के लिए घातक तो है ही, साथ ही यह कानून-व्यवस्था के लिए भी चुनौती पैदा कर रहा है। हमें ऐसे असामाजिक तत्त्वों की स्वार्थपूर्ति का साधन बनने से बचना चाहिए। यहाँ ऐसे ही कुछ उदाहरणों का उल्लेख किया गया है जिससे सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता इस तरह की अफवाहों के खिलाफ जागरूक हो सकें।

उदाहरण 1: जनवरी, 2017 में सोशल मीडिया पर एक संदेश काफी वायरल हुआ। इस संदेश में यह दावा किया गया कि मोदी सरकार ने स्कूलों में एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन भेजा है जो बच्चों को नपुंसक बना देता है । विशेषतौर पर मुस्लिम बच्चों को इसके लिए निशाना बनाया जा रहा है। इस मैसेज ने मुस्लिम समुदाय के लोगों में भय का वातावरण बना दिया। यह मैसेज इतना वायरल हुआ कि कर्नाटक और तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता ने स्कूलों में चलाए जा रहे टीकाकरण का विरोध करना शुरू कर दिया।
लोगों की प्रतिक्रिया को देखकर तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री ने इस मामले पर संज्ञान लिया। उन्होंने मीडिया को बताया कि यह इंजेक्शन पूरी तरह सुरक्षित हैं। सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही खबरें मनगढ़ंत हैं। साथ ही, उन्होंने यह आशंका भी व्यक्त की कि ऐसा सरकार के फरवरी में चलाए जाने वाले टीकाकरण अभियान में रुकावट पैदा करने के लिए नहीं किया गया।

फेक न्यूज सम्बन्धी जानकारी

फेक न्यूज की प्रॉब्लम इतनी ज्यादा बढ़ गयी है की पता ही नहीं चलता है। की सच्चाई क्या है और फेक न्यूज क्या है और लोग किसी भी बात को बिना जांचे परखे मान लेते हैं और इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है।

  1. फेक न्यूज को एक परिभाषा की तरह समझे तो ये एक तरह की फैब्रिकेटेड स्टोरी होती हैं जिन्हें सिर्फ क्रिएट किया जाता है गलत जानकारी देने के लिए और जिनका उद्देश्य सिर्फ यही होता है ।
  2. इस तरह की खबरे सिर्फ लोगों को भटकाने के लिए होती है जिनका मकसद सिर्फ अशांति फैलाना होता है इस तरह की खबरे जल्दी से वायरल भी हो जाती है और जब तक इसका प्रमाण मिले तब तक बहुत देर हो जाती है।
  3. आज के समय में हमारे देश में फेक न्यूज की समस्या बहुत ही ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है बल्कि बढ़ चुका है और फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर और whatsapp जैसे सोशल मीडिया साइट्स के माध्यम से ये फेक न्यूज सबसे ज्यादा फैल रही है और इन्ही साइट्स का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है ।
  4. ये समस्या भी इसीलिए इतनी ज्यादा बढ़ रही है क्योंकि जब से हमारे देश में इन्टरनेट का ज्यादा इस्तेमाल हुआ है तब से इसका ज्यादा इस्तेमाल हुआ है और इन्टरनेट को इस्तेमाल करने वाले भी हमारे देश में लगातार बढ़ रहे हैं ।
  5. वैसे भी अभी हमारे देश में लगभग 30 प्रतिशत लोग इन्टरनेट का प्रयोग करने वाले हैं और चीन के बाद ही भारत सबसे ज्यादा इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाला देश है और इसी कारण से सोशल मीडिया भारत में काफी ज्यादा यूज होता है और भारत इनके लिए एक बढ़ा मार्किट हो चुका है।
  6. अगर भारत में सोशल मीडिया यूज करने वाले लोगों की बात करे तो whattsapp के कुल मासिक यूजर्स में से 16 करोड़ भारत के यूजर्स हैं और वही ट्विटर की बात करें तो भारत में कुल 2.2 करोड़ ट्विटर यूजर्स है और इसी तरह फेसबुक में 14.8 करोड़ यूजर्स हैं।
  7. इतने ज्यादा यूजर्स होने के कारण फेक न्यूज फैलने की सम्भावना बहुत ज्यादा हो जाती है जिसके चलते हर कोई बिना सत्यता की जांच किये इस तरह के न्यूज को लाइक, शेयर और कमेंट कर देता है और इसके बारे में एक मिनट भी नहीं सोचता है।
  8. इस तरह की गलत सूचनाएँ भाईचारे की भावना को भी प्रभावित करती है और इससे असहिष्णुता को भी बढ़ावा मिलता है। हमेशा ऐसे फेक न्यूज से बेकसूर लोगो का उत्पीड़न होता है और उनकी मर्यादा के साथ खिलवाड़ होता है।
  9. इस तरह की घटनाओ से मौते भी होती हैं जैसे बच्चो की चोरी या फिर जानवरों की चोरी करने वालो के बारे में अफवाह फैलने से पूरे इलाके में दंगे और मौत जैसे हालात हो जाते हैं जिससे इसका नतीजा बुरा होता है।
  10. आज के समय में आपने जो भी दंगे देखे और सुने होंगे उनका सबसे बड़ा कारण इस तरह की फेक न्यूज ही होती है और इस बात से भी सभी वाकिफ होंगे की अभी तक हाल ही में जो भी ऐसी घटनाएं हुई हैं वो ज्यादातर ऐसी फेक न्यूज से ही हुई है।

फेक न्यूज कैसे चेक करें?

है तो उस पर बिना किसी क्रॉस चेक के भरोसा कर लेते हैं क्योकि किसी आज के समय में हर कोई कही भी कोई विडियो या फिर आर्टिकल पोस्ट हुआ देखना भी एक सोर्स पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए। फेक न्यूज की इस समस्या को जांचने के लिए भारत सरकार की एक ऐसी संस्था जिसका नाम Press Information Bureau (PIB) है जो भारत सरकार के द्वारा संचालित की जाती है और इस संस्था का काम सरकार की सूचनाओं को अलग अलग न्यूज चैनलों, अखबारों और न्यूज एजेंसी तक पहुचाना होता है। PIB ने पिछले साल 2019 में फेसबुक, इन्स्ताग्राम और ट्विटर पर PIB fact check नाम से अकाउंट बनाया है जहाँ पर आप फेक न्यूज को चेक कर सकते है और ईमेल या फिर फोन नंबर से रिपोर्ट कर सकते हैं ।
बड़े बड़े मीडिया हाउस जैसे India today, print media, the Hindu, quint, economics times जैसे मीडिया कंपनी पर जाकर आप फैक्ट चेक कर सकते हैं और भी ऐसी बहुत सारी वेबसाइट हैं जहाँ पर जाकर आप फेक न्यूज के फैक्ट को चेक कर सकते हैं इनकी लिस्ट आप नीचे चेक कर सकते हैं :

निष्कर्ष

फेक न्यूज की समस्या को हमे रोकना है और समाज में एक अच्छा सन्देश देना है क्योकि अगर इस समस्या पर काबू नहीं पा सके तो ये बहुत बड़ा रूप ले सकता है। इसीलिए जब भी कोई खबर पढ़ते हैं जो काफी सेंसिटिव होती हैं तो फैक्ट चेक करके ही पढना चाहिए अपनी पूरी जांच पड़ताल के बाद ही हमे उस खबर को स्वीकार करना चाहिए की यही खबर सच्ची है।

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