सूरदास के पद हिन्दी-‘ग’

पद
मैया! मैं नहिं माखन खायौ।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायी॥
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँच धरि लटकायी।
हौं जु कहत नान्हे कर अपने मैं कैसें करि पायौ॥
मुख दधि पछि, बुद्धि इक कीन्ही, दोना पीठि दुरायौ।
डारि साँटि, मुसुकाइ जसोदा, स्यामहि कंठ लगायौ॥
बाल-बिनोद मोद मन मोह्यौ, भक्ति-प्रताप दिखायी।
सूरदास जसुमति को यह सुख, सिव बिरंचि नहिं पायौ॥
उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
सिथिल भई सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकि रही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥