हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

सूरदास के पद सप्रसंग व्याख्या

0 766

पद

मैया! मैं नहिं माखन खायौ।
ख्याल पर ये सखा सबै मिलि मेरै मुख लपटायौ॥
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँच धरि लटकायौ।
हौं जु कहत नान्हे कर अपने मैं कैसें करि पायौ॥
मुख दधि पोंछि, बुद्धि इक कीन्ही, दोना पीठि दुरायौ।
डारि साँटि, मुसुकाइ जसोदा, स्यामहि कंठ लगायौ॥
बाल-बिनोद मोद मन मोह्यौ, भक्ति प्रताप दिखायौ।
सूरदास जसुमति को यह सुख, सिव बिरंचि नहिं पायौ॥

उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
सिथिल भई सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकि रही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ भन जगदीस॥

Leave A Reply

Your email address will not be published.