हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

सर्वेक्षण आधारित रिपोर्ट तैयार करना।

1 5,350

कोरोना पर रिपोर्ट

सर्वे रिपोर्ट में खुलासा, हर लहर में कोरोना उनसे रहा दूर, जिन्होंने बनाई सामाजिक दूरी और मास्क पहना जरूर
एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग कोरोना से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। जिन लोगों ने इन दोनों का पालन किया वो कोरोना की तीनों लहर में इस खतरनाक वायरस से बचे रहे।
पिछले महीने कोरोना के मामले लगभग कम होने पर हर राज्य में स्कूल, कॉलेज और दफ्तर खोल दिए गए। कोरोना गाइडलाइंस को हटा दिया गया। मास्क पर लगने वाले जुर्माने को भी खत्म कर दिया गया। इसके बाद से लोग लापरवाही करने लगे और एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं। इन सबके बीच एक सर्वे रिपोर्ट में कई अहम जानकारी सामने आई है। इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग कोरोना से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। जिन लोगों ने इन दोनों का पालन किया वो कोरोना की तीनों लहर में इस खतरनाक वायरस से बचे रहे।

29 हजार लोगों पर हुआ सर्वे

रिपोर्ट के मुताबिक, यह सर्वे लोकल सर्कल ने देश के कुल 345 जिलों में करीब 29 हजार लोगों को लेकर यह सर्वे किया था। इसमें 61 प्रतिशत पुरुष तो 39 पर्सेट महिलाएं शामिल हुईं। इन सबसे सर्वे के बाद यह सामने आया कि इनमें से जिन लोगों ने भी शुरू से ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया और घर से बाहर निकलने पर मास्क लगाया तो उन्हें कोरोना संक्रमण नहीं हुआ। यही वजह है कि डॉक्टर भी कोरोना से बचाव के लिए इन्हीं दोनों चीजों पर जोर देते हैं।

जरूरी है मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग

जरूरी है मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग
अब जबकि चौथी लहर खतरा मंडरा रहा है. चीन में हालात बुरे हैं और अब कोरोना का एक्सई वेरिएंट भारत में भी कुछ लोगों में मिला है, तो ऐसी स्थिति में एक बार फिर से सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाना ही लोगों को इस खतरनाक वायरस से बचा सकता है। डॉक्टर भी लगातार लोगों से घर से बाहर निकलने पर मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील कर रहे हैं।
यद्यपि कई टिप्पणीकारों ने वर्तमान कोविड-19 संकट के कारण प्रवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला है, परंतु शहरी झुग्गी झोंपडी बस्तियों में रह रहे कम आय वाले परिवारों के बारे में बहुत कम ज्ञात है। इस नोट में, अफरीदी, ढिल्लों एवं रॉय ने दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में 413 परिवारों के नमूनों के आधार पर उनकी आजीविका, एवं शारीरिक और भावनात्मक कल्याण पर प्रभाव के संबंध में फोन सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त निष्कर्षों पर चर्चा की है। वे इस संकट के लिंग आधारित अनुभव में भी कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया को भारी आर्थिक झटका लगा है। चीन से शुरू होकर, दुनिया के अधिकांश देशों ने सभी सामाजिक गतिविधियों के लॉकडाउन को किसी न किसी रूप में अपनाया है। भारत में, 24 मार्च 2020 को देश भर में लॉकडाउन शुरू हुआ और यह अभी भी जारी है। कई टिप्पणीकारों ने समाज के सबसे गरीब वर्गों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला है, विशेष रूप से प्रवासियों के बारे में, जो अपनी दैनिक रोजगार खो चुके हैं और अब भोजन या आश्रय के लिए सरकारी सहायता या निजी दान पर निर्भर हैं। ये प्रवासी अब घर वापस लौटने के लिए मीलों लंबा सफर तय कर रहे हैं। हालांकि शहरी झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में रह रहे कम आय वाले परिवारों की कठिनाइयों के बारे में बहुत कम ज्ञात (यदि कुछ हो भी) है। इस लॉकडाउन के कारण किस प्रकार उनकी कमाई और आय पर असर पड़ा है? भले राज्य और केंद्र सरकारों ने आर्थिक तंगी को कम करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं, जैसे कि भोजन हस्तांतरण या शिविर लगाना, और बैंक खातों में सीधे नकदी जमा करना, परंतु ये नीतिगत प्रक्रियाएं शहरी क्षेत्र में कम आय वाले परिवारों तक पहुंचने में कितनी प्रभावी रहीं हैं?
वर्तमान संकट के प्रभाव पर आंकड़ों के अभाव में, शहरी भारत में श्रमिकों की स्थिति को समझने के लिए हमारे पास उपाख्यान के रूप में केवल एक ही उपाय है। हालांकि, जमीनी हकीकत को अपेक्षाकृत बड़े पैमाने समझने के लिए पर फोन सर्वेक्षण एक संभावित विधि हैं। यद्यपि फोन सर्वेक्षण प्रतिनिधि प्रकार का होने के कारण विश्वसनीय तो है, परंतु भारत की मौजूदा स्थिति में यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य क्योंकि गरीबों के पास या तो फोन तक सुविधा सीमित है या वे बार-बार फोन नंबर बदल लेते हैं। उत्तरदाताओं का एक मौजूदा डेटाबेस फोन सर्वेक्षण की प्रतिनिधित्व क्षमता से संबंधित कुछ मुद्दों तक संभावित रूप से पहुंच सकता है।
कोविड-19 महामारी के बाद, लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के नियमों का | पालन करते हुए हम 6 अप्रैल 2020 से दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों के आस-पा आवासीय इलाकों में लगातार जमीनी हालात को जानने के लिए उत्तरदाताओं के दैनिक फोन सर्वेक्षण कर रहे हैं। यादृच्छिक विधि से चयनित इन उत्तरदाताओं का हमारे द्वारा साक्षात्कार, व्यक्तिगत रूप से, मई 2019 से उनके श्रम बाजार के परिणामों, रोजगार और आजीविका को समझने के लिए किया गया था। हमारे प्रतिदर्श में दिल्ली में फैले 10 औद्योगिक क्षेत्रों (उदाहरण के लिए, मंगोलपुरी, वजीरपुर और शाहदरा ) के लगभग 1,500 परिवार शामिल हैं जहाँ हम 18 से 45 वर्ष के प्रमुख कार्य समूह में जोड़ों (पति और पत्नी दोनों) का साक्षात्कार करते हैं। हमारे प्रतिदर्श में अधिकांश वही लोग हैं जो कारखानों एवं निर्माण कार्यों में दैनिक मजदूरी करते हैं, या अनौपचारिक क्षेत्र (उदाहरण के लिए, छोटे-मोटे व्यवसाय, छोटी खुदरा दुकानों) में स्व-नियोजित हैं – यही ऐसा जनसांख्यिकीय समूह है जो विशेष रूप से आर्थिक और स्वास्थ्य झटके के प्रति कमजोर है और जिसे | आजीविका के नुकसान के लिए सार्वजनिक स्थानान्तरण के माध्यम से बड़ी सहायता की आवश्यकता होगी। ये लोग घरों के समूहों में रहते हैं – जिसमें जेजे क्लस्टर 1 और पुनर्वास कालोनियां भी शामिल हैं जो बहुत अधिक घनी बसी हुई होती हैं। इस कारण इन इलाकों में सामाजिक दूरी का पालन करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है । इसके अलावा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आकलन बताते हैं कि ये क्लस्टर गंभीर रूप से प्रदूषित हैं और वायु, जल या मृदा प्रदूषण से संबंधित संरक्षा | मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं। कुछ हालिया अनुमानों में यह बताया गया है कि ऐसी बस्तियों के इसी वातावरण के कारण वहां के निवासियों का स्वास्थ्य इस वायरस के प्रति विशेष रूप से असुरक्षित है।
यद्यपि कई टिप्पणीकारों ने वर्तमान कोविड- 19 संकट के कारण प्रवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला है, परंतु शहरी झुग्गी झोंपडी बस्तियों में रह रहे कम आय वाले परिवारों के बारे में बहुत कम ज्ञात है। इस नोट में, अफरीदी, ढिल्लों एवं रॉय ने दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में 413 परिवारों के नमूनों के आधार पर उनकी आजीविका, एवं शारीरिक और भावनात्मक कल्याण पर प्रभाव के संबंध में फोन सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त निष्कर्षों पर चर्चा की है। वे इस संकट के लिंग आधारित अनुभव में भी कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया को भारी आर्थिक झटका लगा । चीन से शुरू होकर, दुनिया के अधिकांश देशों ने सभी सामाजिक गतिविधियों के लॉकडाउन को किसी न किसी रूप में अपनाया है। भारत में, 24 मार्च 2020 को देश भर में लॉकडाउन शुरू हुआ और यह अभी भी जारी है। कई टिप्पणीकारों ने समाज के सबसे गरीब वर्गों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला है, विशेष रूप से प्रवासियों के बारे में, जो अपनी दैनिक रोजगार खो चुके हैं और अब भोजन या आश्रय के लिए सरकारी सहायता या निजी दान पर निर्भर हैं। ये प्रवासी अब घर वापस लौटने के लिए मीलों लंबा सफर तय कर रहे हैं। हालांकि शहरी झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों में रह रहे कम आय वाले परिवारों की कठिनाइयों के बारे में बहुत कम ज्ञात (यदि कुछ हो भी) है। इस लॉकडाउन के कारण किस प्रकार उनकी कमाई और आय पर असर पड़ा है? भले राज्य और केंद्र सरकारों ने आर्थिक तंगी को कम करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं, जैसे कि भोजन हस्तांतरण या शिविर लगाना, और बैंक खातों में सीधे नकदी जमा करना, परंतु ये नीतिगत प्रक्रियाएं शहरी क्षेत्रों में कम आय वाले परिवारों तक पहुंचने में कितनी प्रभावी रहीं हैं?
वर्तमान संकट के प्रभाव पर आंकड़ों के अभाव में, शहरी भारत में श्रमिकों की स्थिति को समझने के लिए हमारे पास उपाख्यान के रूप में केवल एक ही उपाय है। हालांकि, जमीनी हकीकत को अपेक्षाकृत बड़े पैमाने समझने के लिए पर फोन सर्वेक्षण एक संभावित विधि हैं। यद्यपि फोन सर्वेक्षण प्रतिनिधि प्रकार का होने के कारण विश्वसनीय तो है, परंतु भारत की मौजूदा स्थिति में यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि गरीबों के पास या तो फोन तक सुविधा सीमित है या वे बार-बार फोन नंबर बदल लेते हैं। उत्तरदाताओं का एक मौजूदा डेटाबेस फोन सर्वेक्षण की प्रतिनिधित्व क्षमता से संबंधित कुछ मुद्दों तक संभावित रूप से पहुंच सकता है।
कोविड-19 महामारी के बाद, लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए हम 6 अप्रैल 2020 से दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों के आस-पास आवासीय इलाकों में लगातार जमीनी हालात को जानने के लिए उत्तरदाताओं के दैनिक फोन सर्वेक्षण कर रहे हैं । यादृच्छिक विधि से चयनित इन उत्तरदाताओं का हमारे द्वारा साक्षात्कार, व्यक्तिगत रूप से, मई- 2019 से उनके श्रम बाजार के परिणामों, रोजगार और आजीविका को समझने के लिए किया गया था। हमारे प्रतिदर्श में दिल्ली में फैले 10 औद्योगिक क्षेत्रों (उदाहरण के लिए, मंगोलपुरी, वजीरपुर और शाहदरा) के लगभग 1,500 परिवार शामिल हैं जहाँ हम 18 से 45 वर्ष के प्रमुख कार्य समूह में जोड़ों (पति और पत्नी दोनों) का साक्षात्कार करते हैं। हमारे प्रतिदर्श में अधिकांश वही लोग हैं जो कारखानों एवं निर्माण कार्यों में दैनिक-मजदूरी करते हैं, या अनौपचारिक क्षेत्र (उदाहरण के लिए, छोटे-मोटे व्यवसाय, छोटी खुदरा दुकानों) में स्व-नियोजित हैं – यही ऐसा जनसांख्यिकीय समूह है जो विशेष रूप से आर्थिक और स्वास्थ्य झटके के प्रति कमजोर है और जिसे आजीविका के नुकसान के लिए सार्वजनिक स्थानान्तरण के माध्यम से बड़ी सहायता की आवश्यकता होगी। ये लोग घरों के समूहों में रहते हैं – जिसमें जेजे क्लस्टर और पुनर्वास कालोनियां भी शामिल हैं जो बहुत अधिक घनी बसी हुई होती हैं। इस कारण इन इलाकों में सामाजिक दूरी का पालन करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आकलन बताते हैं कि ये क्लस्टर गंभीर रूप से प्रदूषित हैं और वायु, जल या मृदा प्रदूषण से संबंधित संरक्षा मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं। कुछ हालिया अनुमानों में यह बताया गया है कि ऐसी बस्तियों के इसी वातावरण के कारण वहां के निवासियों का स्वास्थ्य इस वायरस के प्रति विशेष रूप से असुरक्षित है।
हालांकि हमारे उत्तरदाता अल्पकालिक या मौसमी प्रवासी नहीं हैं, बल्कि औसतन 28 वर्षों से दिल्ली में रह रहे हैं, उनमें से 65% से अधिक लोगों का मूल निवास दिल्ली के बाहर का है – मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश ( यूपी ) ( 40% से अधिक) और बिहार (9%)। इन परिवारों की कमाई और आय का न केवल अपने कल्याण पर, बल्कि यूपी और बिहार के ग्रामीण इलाकों में अपने रिश्तेदारों के माध्यम से दूर तक प्रभाव पड़ सकता है।
20 अप्रैल से लॉकडाउन प्रतिबंधों को कम किए जाने से पहले 18 अप्रैल 2020 तक के सर्वेक्षण के आंकड़ों में, हमारे प्रारंभिक प्रतिदर्श के 413 परिवारों के एक सबसेट हेतु उनकी आजीविका, शारीरिक और भावनात्मक कल्याण पर उनकी प्रतिक्रियाएं प्राप्त की गईं हैं। यद्यपि जारी फोन सर्वेक्षणों में मुख्य उत्तरदाता पुरुष हैं, लेकिन हमने सीधे पलियों से भी सर्वेक्षण के कुछ सवाल पूछे, जिससे हमें इस संकट के लिंग आधारित अनुभवों के बारे में भी जानकारी प्राप्त हुई।

आजीविका और रोजगार

हमारा मुख्य सर्वेक्षण इन परिवारों की आजीविका और मजदूरी की कमाई पर बड़े पैमाने के झटके का संकेत देता है। जैसा कि अपेक्षित है, इन आवासीय क्षेत्रों में श्रमिकों का विशाल हिस्सा ( 91% पुरुष) अब काम नहीं कर पा रहा है। लॉकडाउन से पहले नियोजित लगभग 85% उत्तरदाताओं ने अपने मुख्य व्यवसाय से कुछ भी नहीं कमाया है जबकि ऐसे उत्तरदाता जो 24 मार्च से पहले नियोजित थे उनमें से आधे से अधिक ( 53%) लोगों को मार्च महीने का अपना पूरा वेतन भी नहीं मिला।
अधिकांश ऐसे लोग जिन्होंने लॉकडाउन के बाद से कोई काम न करने या कोई आय अर्जित नहीं करने की रिपोर्ट की है जिनमें स्वनियोजित ( 32%) और कारखानों या निर्माण कार्य संबंधी नौकरियों ( 30%) में और मजदूरी करने वाले मजदूर हैं। उन लोगों में से जिन्हें 24 मार्च से पहले नियोजित किया गया था और जिन्होंने लॉकडाउन के बाद कुछ दिनों का काम किया था, उनकी दैनिक आय में 87% की गिरावट आई है – प्रति दिन औसत रु. 365 से रु. 46।

% की गिरावट आई है – प्रति दिन औसत रु. 365 से रु. 46 ।
लॉकडाउन समाप्त होने के बाद क्या ये कर्मचारी अपना रोजगार हासिल कर पाएंगे, क्या आय में आई गिरावट अस्थायी है? हमारे उत्तरदाताओं में से 81% ने बताया कि उनकी नौकरी स्थायी या अस्थायी रूप से चली गई है। हालांकि, अधिकांश उत्तरदाता नौकरी के जाने को अस्थायी मानते हैं। ऐसी ही स्थिति उनके करीबी परिवार और दोस्तों की थी उनके परिवार में 74% सदस्यों ने और उनके सामाजिक नेटवर्क के भीतर 63% से अधिक लोगों ने नौकरी गंवाने की रिपोर्ट की। अधिकांश उत्तरदाताओं ने अपने स्वयं की या परिवार की और अपने दोस्तों या पड़ोसियों की नौकरी जाने को अस्थायी के रूप में माना है। इस बिंदु पर हम यह नहीं समझ सकते हैं कि क्या यह इन श्रमिकों का जन्मजात आशावाद है कि वे अपने रोजगार को फिर से प्राप्त करने में सक्षम होंगे, या क्या वास्तव में उनकी नौकरी अस्थायी रूप से गई है। जैसा कि हम इन श्रमिकों को लगातार देखते रहेंगे, हम लॉकडाउन के बाद उनकी नौकरी जाने की स्थिति के बारे में बेहतर अंतर्दृष्टि प्राप्त करेंगे, और बहुत कुछ आर्थिक स्थिति के सुधरने के दौरान समष्टि अर्थशास्त्रीय कारकों और नीति समर्थन पर भी निर्भर करेगा।

सार्वजनिक स्थानान्तरण और अन्य सहायता

यह सुनिश्चित करना कि खाद्य पदार्थ और आवश्यक वस्तु जैसे कि दवाएँ, जरूरतमंदों तक पहुँचे, इस समय में एक चुनौती रही है। हमने अपने उत्तरदाताओं से पूछा कि क्या लॉकडाउन के बाद से उनको भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की पर्याप्त रूप से आपूर्ति हुई थी। उनमें से पैंतीस प्रतिशत ने बताया कि पर्याप्त भोजन और आवश्यक वस्तुएं उन तक नहीं पहुंचे थे। इसी तरह, 30% ने कहा कि उन्हें जरूरत पड़ने पर पर्याप्त चिकित्सा सहायता नहीं मिली।
47 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें किसी-न-किसी प्रकार की सहायता या सहयोग प्राप्त हुआ है- 89% उत्तरदाताओं को सरकार से सहायता प्राप्त हुई, 12% को मित्रों और रिश्तेदारों से सहायता मिली, और 4% को अन्य स्रोतों जैसे कि स्थानीय राजनीतिक नेता, गैर सरकारी संगठन आदि से सहायता प्राप्त हुई। सरकार से मिलने वाली सहायता मुख्य रूप से वित्तीय सहायता, भोजन और अन्य राशन के सामान की व्यवस्था के रूप में थी। कुछ व्यक्तियों ने विशेष रूप से सरकार से पका हुआ भोजन प्राप्त करने का उल्लेख किया है। हालांकि, उत्तरदाताओं में से 71% का मानना था कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की मदद अपर्याप्त थी।

भावनात्मक कल्याण

उपलब्ध सबूत यह बताते हैं कि महामारी के परिणामस्वरूप दुनिया भर में अत्यधिक भावनात्मक तनाव पैदा हुआ है- कुछ विशुद्ध रूप से शारीरिक अलगाव के कारण और कुछ सीधे-सीधे शारीरिक एवं वित्तीय कल्याण के बारे में मूलभूत चिंताओं के कारण।
हमारे प्रतिदर्श में 81% पुरुषों की तुलना में लगभग 85% महिलाएं अपने परिवारों के शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में चिंतित महसूस करती हैं। 63% पुरुष अपनी स्थिति के बारे में अवसाद महसूस करते हैं जबकि ऐसी महिलाएं 65% हैं। आश्चर्यजनक रूप से, पुरुष और महिलाएं दोनों को अपने स्वास्थ्य के बजाय अपने परिवार की वित्तीय पर्याप्तता के बारे में अधिक अवसाद है। हालांकि यह अंतर अधिक नहीं है। 61% पुरुषों की तुलना में लगभग 75% महिलाओं ने मौजूदा स्थिति के बारे में चिंता या घबराहट महसूस की, और महिलाओं और पुरुषों दोनों के 1/3 से अधिक ने पर्याप्त नींद न हो पाने के बारे में बताया है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक तनावग्रस्त दिखाई देती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि ये परिवार अपने रोजगार को फिर से हासिल करने के बारे में आशावान हैं क्योंकि वे आय और नौकरियों के जाने को अस्थायी मान हैं। इस आशा के बावजूद, इनके मनोवैज्ञानिक दबाव बहुत अधिक हैं और यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि यदि सुधार की अवधि के बाद कार्य और रोजगार के पुनः प्राप्त होने की उम्मीदें पैदा न हों तो यह स्थिति और बिगड़ सकती है। इससे यह संकेत भी मिल सकता है कि स्वास्थ्य के बारे में चिंता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, और शायद आवश्यक जरूरी वस्तुओं तथा चिकित्सा देखभाल तक पहुंच को लेकर भी तनाव है। इसी प्रकार की अन्य चिंताएं भी हैं।

स्वास्थ्य और स्वास्थ्य प्रक्रियाएं

प्रतिदर्श के केवल 10% लोगों ने लॉकडाउन के बाद मुख्य रूप से केवल बुखार, बुखार एवं खांसी, तथा केवल खांसी के लक्षणों के संयोजन के साथ बीमार पड़ने के बारे में बताया है। कुछ मुट्ठी भर कोविड- 19 पॉजिटिव मामले थे जिनके बारे में उन्हें पता था (केवल चार उत्तरदाताओं ने उत्तर दिया कि वे किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं जिसकी जांच पॉजिटिव आई थी)। हालांकि, हमारे कुछ प्रतिदर्श क्षेत्र को कोविड-19 के लिए कंटेइनमेंट (रोकथाम ) जोन के रूप में नामित किया गया है।
जबकि हमारे प्रतिदर्श के बीच कोविड-19 के कथित शारीरिक प्रभाव अब तक काफी कम (10%) दिखाई देते हैं, मनोवैज्ञानिक प्रभाव, जिनमें स्वास्थ्य और वित्त के कारण तनाव शामिल है, बहुत अधिक (70-80%) हैं।
व्यक्तिगत स्वच्छता और सामाजिक दूरी के मानदंडों के पालन के संदर्भ में, दोनों लिंग के 60% से अधिक लोग इस कथन से दृढ़ता से सहमत हैं कि उनके आस-पास रहने वाले लोग सामाजिक समारोहों में भाग नहीं ले रहे हैं, सामाजिक दूरी अपना रहे हैं, और बार-बार हाथ धो रहे हैं । फिर भी, उत्तरदाताओं में से 82% ने यह सूचना दी है कि वे पिछले सप्ताह अपने घर के बाहर निकले। घर से निकलने का मुख्य कारण ( 93%) किराने का सामान और अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी करनी था।
इस तथ्य के बावजूद कि हमारे सर्वेक्षण के अधिकांश उत्तरदाता दिल्ली के निवासी हैं, उनमें से कुछ (7%) वर्तमान में दिल्ली में स्थित नहीं हैं । वे या तो अपने पैतृक गांव में हैं या अपने मूल राज्य में जाने के लिए राजमार्ग पर किसी परिवहन साधन की प्रतीक्षा कर रहे हैं – मुख्य रूप से वे आकस्मिक मजदूर या विनिर्माण क्षेत्र में स्व-नियोजित हैं। हालांकि, उनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने पहले निजी क्षेत्र में एक वेतनभोगी नौकरी की थी। इस प्रकार यह धारणा कि यह केवल मौसमी या अल्पकालिक प्रवासी ही अपने गांवों में वापस जा रहे हैं, पूरी तरह से सही नहीं हो सकती है। यह उस सीमा को प्रतिबिंबित करती हैं जिसके अंतर्गत शहरी गरीबों को आर्थिक नुकसान हुआ है।
यह उभरती तस्वीर परेशान करने वाली है, और इस बात को रेखांकित करती है कि जैसे-जैसे हम सुधार प्रक्रिया में आगे बढ़ते हैं इस मानवीय संकट को दूर करने के लिए नकदी और वस्तु रूप दोनों प्रकार से सार्वजनिक खर्च और स्थानान्तरण की एक बड़ी सहायता की जरूरत है। हालांकि शहरी श्रमिकों का नौकरी खोना अब तक अस्थायी है, लेकिन अधिकांश लोगों को अपना पूरा वेतन नहीं मिला है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि भविष्य में सामाजिक दूरी के मानदंड उनकी कमाई को प्रभावित करने की क्षमता को कैसे प्रभावित करते रहेंगे। शहरी रोजगार और कमाई पर दीर्घकालिक प्रभाव निजी क्षेत्र में कारोबार शुरू करने और विनिर्माण में सरकारी उपायों पर काफी हद तक निर्भर करेगा।

मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता संबंधी अभियान पर रिपोर्ट

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा ‘मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान सप्ताह’ का शुभारंभ श्री मनसुख मांडविया ने मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व को बताया जो शारीरिक स्वास्थ्य और कल्याण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री मनसुख मांडविया ने आज नई दिल्ली में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर सभा को संबोधित किया, जो शारीरिक स्वास्थ्य और कल्याण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय आज से शुरूआत करके विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर खत्म होने वाले मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान सप्ताह को मना रहा है। मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करने के प्रयासों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 10 अक्टूबर को दुनिया भर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस साल विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ऐसे समय में आ रहा है जब कोविड-19 महामारी ने हर किसी के दैनिक जीवन को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया है। इस महामारी ने लोगों में कई तरह के मानसिक स्वास्थ्य विकारों को जन्म दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के मार्गदर्शन में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान सप्ताह मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य मानसिक विकृतियों से संबंधित विकृतियों को खत्म करने के लिए लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान सप्ताह के लिए परिकल्पित गतिविधियों के हिस्से के रूप में, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और रसायन एवं उवर्रक मंत्री श्री मनसुख मांडविया ने आज यूनिसेफ की स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रन रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट 21वीं सदी में बच्चों, किशोरों और देखभाल करने वालों के मानसिक स्वास्थ्य पर एक व्यापक दृष्टि डालती है। जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया है, कोविड-19 महामारी का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर विशिष्ट प्रभाव पड़ा है।
मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान सप्ताह के तहत अन्य गतिविधियों में शैक्षणिक संस्थानों और अन्य उपयुक्त संगठन की सहभागिता से बेंगलुरू स्थित महांस की वर्चुअल जागरूकता कार्यशालाएं शामिल हैं। इसके अलावा दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में साइकिल रैली, ग्रीन टेप अभियान, क्षेत्रीय भाषाओं में शॉर्ट फिल्मों की रिलीज, हैशटेग अभियान और मानसिक स्वास्थ्य पर क्विज/स्लोगन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा।
एमजी / एएम / एचकेपी/डीवी
नयी दिल्ली, आठ दिसंबर ( भाषा) भारतीयों के बीच मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता में काफी वृद्धि हुई है। एक नए सर्वेक्षण में यह दावा करते हुए कहा गया है कि 2018 में 54 प्रतिशत के मुकाबले उत्तरदाताओं में से 92 प्रतिशत उपचार कराने के लिए सहमत हुए।
अभिनेत्री दीपिका पादुकोण द्वारा स्थापित एक परोपकारी ट्रस्ट, लाइव लाफ फाउंडेशन (एलएलएल) के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य 2018 में एलएलएल के पहले अध्ययन के बाद से मानसिक स्वास्थ्य के प्रति ज्ञान, दृष्टिकोण और व्यवहार के संबंध में स्थिति परिवर्तन को समझना था।
शोध के लिए एलएलएल ने सत्त्व कंसल्टिंग को इस साल पांच अगस्त से नौ सितंबर के बीच नौ शहरों बेंगलुरु, दिल्ली, गुवाहाटी, हैदराबाद, कानपुर, कोलकाता, मुंबई, पटना और पुणे के 3,497 उत्तरदाताओं का सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी सौंपी। शोध में कहा गया, “मानसिक स्वास्थ्य को लेकर उपचार कराने की धारणा को बढ़ावा देने के लिए, सर्वेक्षण में शामिल 92 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे इलाज कराएंगे और मानसिक बीमारी के इलाज कराने के इच्छुक लोगों की मदद करेंगे। जबकि, 2018 में 54 प्रतिशत लोगों ने ही इसके लिए सहमति जताई थी।”
एलएलएल की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अनीशा पादुकोण ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता अधिक स्वीकृति और संवाद कायम करने की कुंजी है। स्थापना के बाद से एलएलएल मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिए स्वीकार्यता बढ़ाने को लेकर काम कर रहा है। हमें यह देखकर खुशी हो रही है कि धीरे-धीरे बदलाव शुरू हो गया है।”

कूड़ा निस्तारण योजना की रिपोर्ट तैयार करना

दिल्ली नगर निगम ने कूड़ा निस्तारण को लेकर एक अहम मुहिम की शुरुआत की है। इस अनोखी पहल के तहत दिल्ली के तमाम कार्यालयों को निगम की तरफ से सूखे कूड़े के बदले स्टेशनरी देने की योजना तैयार की गई है। इस मुहि के पीछे जीरो वेस्ट योजना की सोच है। निगम के अधिकार क्षेत्र में आने वाले तमाम दफ्तरों में इस योजना को लागू किया जाएगा। जिसके तहत तमाम दफ्तरों से सूखा कूड़ा इकट्ठा किया जाएगा और इसके बदले में दफ्तरों को दिल्ली नगर निगम की तरफ से स्टेशनरी मुहैया करवाई जाएगी।

सर्वे टीम में 31 ऑफिस को किया चिन्हित

दिल्ली नगर निगम ने आईटी वाऊ के साथ इस मुहिम को शुरू किया है । साथ ही पश्चिमी दिल्ली क्षेत्र से इस योजना पर काम शुरू करने का फैसला किया गया है। बाद में धीरे-धीरे इसे निगम पूरी दिल्ली में लागू करने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए पश्चिमी क्षेत्र में मौजूद तमाम दफ्तरों का सर्वे का काम शुरू कर दिया गया है। जहां से अभी कूड़ा सीधे लैंडफिल साइट्स पर जा रहा है। पश्चिमी क्षेत्र में अभी ऐसे 31 दफ्तरों को निगम की सर्वे टीम ने चिन्हित किया है। इनमें निगम, जिलाधीश, बैंक, पुलिस स्टेशन के अलावा दूसरे सरकारी दफ्तर भी शामिल हैं।

ग्राम पंचायतों में ही होगा कूड़े निस्तारण

सहारनपुर। स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब जिले की ग्राम पंचायतों में ही गीला और सूखे कूड़े का निस्तारण होगा। इसके तहत गांव में कूड़ा अपशिष्ट प्रबंधन केंद्र बनाया जाएगा, जहां ग्राम पंचायत से एकत्र कूड़े का निस्तारण कराया जाएगा।
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छता को प्रत्येक व्यक्ति की आदत में शामिल कराने के लिए अब ग्राम पंचायतें को ओडीएफ प्लस-प्लस बनाने की कवायद होगी। इसके तहत ग्राम पंचायतों के धार्मिक स्थलों, स्कूलों, पंचायत भवनों, ग्राम सचिवालय, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्रों, गलियों, चौराहों सफाई को लेकर विशेष अभियान चलेगा। ग्रामीणों को एक ही जगह पर कूड़ा डालने के लिए प्रेरित किया जाएगा, जहां से गीले और सूखे कूड़े को अलग किया जाएगा। इसके लिए एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन केंद्र बनेगा, जिसका निर्माण पंचायत राज विभाग कराएगा। शासन की ओर से प्रथम चरण में 100 ग्राम पंचायतों के लिए 250 करोड़ रुपये भी इसके लिए जारी किए जाएंगे।

एक ही जगह पर डाला जाएगा कूड़ा

ग्राम पंचायतों में एक ही स्थान पर बड़े कूड़ाघर बनेंगे, जहां से सफाई कर्मचारी कूड़ा उठाएंगे और उसके निस्तारण की व्यवस्था की जाएगी। विभाग के मुताबिक कचरा प्रबंधन के तहत गांवों में कूड़ा एकत्र कर कंपोस्ट व जैविक खाद बनाई जाएगी, जिसमें लोगों का भी सहयोग लिया जाएगा।

सामुदायिक शौचालय का कार्य दो माह में होगा पूरा

स्वच्छ भारत मिशन के तहत जनपद की 884 ग्राम पंचायतों में सामुदायिक शौचालय बनाए गए हैं। इनमें 830 सामुदायिक शौचालय पूरी तरह बनकर तैयार हो गए हैं, जिनमें से 273 को देखरेख के लिए स्वयं सहायता समूहों को हैंडओवर भी कर दिया गया है। इसके तहत स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को मानदेय भी मिल रहा है।

व्यक्तिगत शौचालयों का होगा निर्माण

बेस लाइन सर्वे में चिह्नित किए 1056 परिवार के घरों पर व्यक्तिगत शौचालयों का भी निर्माण कराया जाएगा। कूड़ा प्रबंधन को लेकर जारी आदेश के अनुसार दो माह के अंदर शौचालय बनाए जाने के निर्देश दिए गए हैं।

इन बातों पर दिया जाएगा विशेष ध्यान

  • गांव की गलियों में कूड़ा नहीं डाला जाएगा। लापरवाही बरतने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
  • निर्धारित स्थान पर भी कूड़ा डाला जाएगा।
  • ना और नालियों को प्रतिदिन साफ कराया जाएगा।
  • जलभराव की समस्या का निस्तारण होगा।
  • नालियों में गोबर बहाने पर कार्रवाई होगी।

ग्राम पंचायतों में ही कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था की जाएगी। इसको लेकर शासन ने गाइडलाइन जारी की है, जिस पर कार्य शुरू किया जाएगा। गीले और सूखे कूड़े को अलग कर जैविक और कंपोस्ट खाद बनाने का भी प्लान है।

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