सम्प्रेषण के प्रकार।

सम्प्रेषण के निम्नलिखित प्रकार हैं-
- अमौखिक सम्प्रेषण
- मौखिक सम्प्रेषण
- अशाब्दिक सम्प्रेषण
- शाब्दिक सम्प्रेषण
- लिखित सम्प्रेषण
1. अमौखिक सम्प्रेषण
अमौखिक सम्प्रेषण की प्रक्रिया में चिन्हों, संकेतों, प्रतीकों, हाव-भावों आदि का उपयोग किया जाता है। सभी ज्ञा तसंस्कृतियों में संकेतों, चिन्हों एवं प्रतीकों का अमौखिक सम्प्रेषण प्रक्रिया के लिए उपयोग किया जाना मिलता है।
(क) चिन्ह : इसका उपयोग दैनिक जीवन में चित्रों एवं रेखाचित्रों के रूप में मिलता है।
(ख) प्रतीक : प्रतीक को समझना एवं परिभाषित करना ज्यादा कठिन है । इसे इस तरह से परिभाषित कर सकते हैं- “वह विधि जिसमें कल्पनाशीलता का भाव हो।”
2. मौखिक सम्प्रेषण
यह एक ऐसा सम्प्रेषण है, जिसमें मानव स्वरतंत्री का उपयोग किया जाता है। इसमें चिल्लाने से लेकर भाषा के बोले गए शब्द तक होते हैं। मानव की स्वरतंत्री एक तरह से सम्प्रेषण की विधि है और यह बौद्धिक आविष्कारों का प्रतिनिधित्व करती है।
मौखिक सम्प्रेषण, सम्प्रेषण का एक शक्तिशाली माध्यम है। इसमें बोले गए शब्द अधीनस्थों को या जनमानस को किसी कार्य या उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रेरित करते हैं। कई बार यह देखने में आता है कि इस सम्प्रेषण के माध्यम से जनता को एक दिशा में कार्य करने के लिए संगठित किया है। ग्रंथालयों, सूचना केन्द्रों या अन्य संस्थाओं में मौखिक सम्प्रेषण मानवीय सम्बन्धों को विकसित करने में सहायक है। ग्रंथालयों में पाठक एवं ग्रंथालय कर्मचारियों के मध्य मौखिक सम्प्रेषण के द्वारा ही मार्ग दर्शन एवं वांछित सूचना प्रदान की जाती है। मौखिक सम्प्रेषण बहुत से उद्देश्यों को लेकर किया जाता है। इसमें उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थ को कार्य समझाता है। कार्य पूरा न करने पर चेतावनी देता है। अधीनस्थ अपने सहयोगियों के साथ कार्य को पूरा करने में आ रही कठिनाइयों को दूर करने के लिए संवाद करता है। इसी तरह अधीनस्थ व्यक्ति इसके माध्यम से अपने उच्चाधिकारी से मार्ग दर्शन प्राप्त करता है। सामान्यतया मौखिक सम्प्रेषण दो व्यक्तियों के मध्य होता है। मौखिक सम्प्रेषण एक प्रभावकारी माध्यम है।
मौखिक सम्प्रेषण की प्रभावशीलता – मौखिक सम्प्रेषण को और अधिक प्रभावी इस तरह बनाया जा सकता है:
(क) कथन की स्पष्टता और पूर्णता : जहाँ तक सम्भव हो सके सन्देश संक्षिप्त होना चाहिए। ध्यान यह रहे कि सन्देश संक्षिप्त अवश्य हो किन्तु पूर्ण होना चाहिए। बहुत ज्यादा संवाद करने से भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इसलिए सम्प्रेषण में स्पष्टता, सरलता, संक्षिप्तता और पूर्णता का गुण होना चाहिए।
(ख) उच्चारण : सम्प्रेषण उच्चारणदोष से मुक्त होना चाहिए। उच्चारण में भाषा का आरोह-अवरोह और स्पष्ट ध्वनि के साथ शब्द बोले जाने चाहिए।
(ग) शब्दावली : सम्प्रेषक का शब्द भण्डार पर्याप्त होना चाहिए । सम्प्रेषण में सही शब्दों का प्रयोग उचित अर्थ को सम्प्रेषित करेगा। यदि उचित शब्दों का चयन नहीं किया जाता है तो यह भ्रम पूर्ण स्थिति पैदा करता है।
(घ) स्वर और शैली : समय और स्थान के अनुरूप हमारे बोलने का स्वर और शैली होनी चाहिए। सन्देश ऐसा होना चाहिए कि वह लोगों के मस्तिष्क और हृदय को प्रिय लगे। सन्देश मात्र शब्दाडंबर होना चाहिए। परिस्थिति, अवसरानुकूल स्वर का प्रयोग करना चाहिए। संप्रेषक अपने बोलने के स्वर एवं शैली से ही विचारों में भाव पैदा कर सकता है।
(ङ) आत्म विश्वास : सम्प्रेषक आत्मविश्वास से परिपूर्ण होना चाहिए। यदि उसमें आत्मविश्वास की कमी होती है तो वह श्रोताओं को प्रभावित नहीं कर पाएगा। सम्प्रेषक को विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। बोलते समय तार्किक क्रम में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। बोलते समय विचारों में सुसंगति होनी चाहिए। विचार प्रकट करते समय उनकी श्रृंखला टूटनी नहीं चाहिए। इसलिए बोलने से पहले विचारों को एक सुनियोजित क्रम में व्यवस्थित करना चाहिए।
मौखिक सम्प्रेषण के लाभ
(क) मौखिक सम्प्रेषण का लाभ यह है कि वक्ता श्रोताओं से तुरन्त ही पुनर्निवेशन प्राप्त करता है। प्राप्तकर्ता ने सन्देश को पूर्णतः समझा है या नहीं या उसकी क्या प्रतिक्रिया है इसका ज्ञान तुरन्त सम्भव है। वक्ता को यदि यह लगता है कि उसके सन्देश को नहीं समझा गया है तो वह उसे पुनः सम्प्रेषित कर सकता है।
(ख) वक्ता अपने सन्देश के सम्बन्ध में भ्रम की स्थिति को तुरन्त स्पष्ट कर सकता है।
(ग) इसमें वक्ता सम्प्रेषित किए जा रहे व्यक्ति के मनोभावों को सझ कर उसको प्रभावित करने के लिए अपने शब्द और तर्क बदल सकता है और वह इससे सन्देश प्राप्तकर्त्ता के मनोभावों, भावनाओं, मतों और विश्वासों में बदलाव ला सकता है।
(घ) मौखिक सन्देश लिखित सन्देश की बजाय अल्प समय में प्रसारित किया जा सकता है। मौखिक सन्देश को आमने-सामने, टेलीफोन मोबाइल, वीडयो कान्फ्रेसिंग आदि के द्वारा त्वरित प्रसारित किया जा सकता है। जबकि लिखित सन्देश को प्रसारित करने में / भेजने में अधिक समय लगता है । जब भी त्वरित कार्यवाही करनी हो या निर्णय को त्वरित प्रसारित करना हो तो उसके लिए मौखिक सम्प्रेषण सबसे अच्छा माध्यम है।
(ङ) मूल्य की दृष्टि से विचार करें तो मौखिक सम्प्रेषण लिखित सम्प्रेषण की तुलना में सस्ता है।
(च) मौखिक सम्प्रेषण की एक विशेषता यह है कि इसमें एक बड़े समूह के साथ मीटिंग, सेमीनार, कान्फ्रेंस आदि में संवाद किया जा सकता है और लोगों के साथ किसी विषय पर परिचर्चा की जा सकती है।
दोष
(क) मौखिक सम्प्रेषण का प्रमुख दोष यह है कि इसका कोई स्थायी अभिलेख नहीं होता। कई बार विवाद या न्यायालयीन प्रकरणों में इसे कानूनी साक्ष्य के रूप में मान्यता नहीं है।
(ख) यदि वक्ता बोलने में कुशल नहीं है तो वह उचित प्रभाव पैदा नहीं कर पाएगा। इसलिए सम्प्रेषक को वक्तृत्व कला में परिपूर्ण होना चाहिए।
(ग) कई बार मौखिक सम्प्रेषण कार्यालयीन दृष्टि से उचित नहीं माना जाता है।
(घ) मौखिक सम्प्रेषण में कई बार यह देखने में आता है कि श्रोता द्वारा न समझने के कारण अर्थ का अनर्थ कर दिया जाता है और बातों को तोड़-मरोड़कर अर्थ प्रस्तुत कर दिया जाता है। इससे भ्रम की स्थिति पैदा / उत्पन्न होती है। मौखिक अभिव्यक्ति भाषायी चार कौशलों में से एक कौशल है। साधारण भाषा में इसे ‘बोलचाल’ कहा जाता है। समाज में हम अपने अधिकांश कार्य-व्यवहार बोलचाल द्वारा ही सम्पन्न करते हैं। यह विचारों के आदान-प्रदान का सरलतम माध्यम है। लिपि के आविष्कार से पूर्व समस्त ज्ञान बोलकर ही दिया जाता था और वह सिलसिला पीढ़ियों तक चलता रहता था। आज भी जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने का एक साधन मौखिक अभिव्यक्ति में कुशलता है। इस दृष्टि से विद्यालय के हर स्तर पर मौखिक अभिव्यक्ति का विकास महत्त्वपूर्ण है।
मौखिक अभिव्यक्ति कौशल के महत्त्व को देखते हुए प्रस्तुत मॉड्यूल में निम्नलिखित दो कैप्सूल सम्मिलित किए गए हैं :
मौखिक अभिव्यक्ति के विविध पक्ष तथा रूप
- मौखिक अभिव्यक्ति के विविध पक्षों का वर्णन कर सकेंगे।
- मौखिक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों – अनौपचारिक तथा औपचारिक में भेद कर सकेंगे।
- औपचारिक मौखिक अभिव्यक्ति के साहित्यिक तथा व्यावहारिक दोनों रूपों की विशेषताओं को समझकर उन्हें व्यवहार में ला सकेंगे।
- मौखिक अभिव्यक्ति के विकास के साधनों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे तथा कक्षा शिक्षण में उनका प्रयोग कर सकेंगे।
- मौखिक अभिव्यक्ति के दोष तथा उनके कारण बता सकेंगे तथा दोषों को सुधारने के लिए उचित उपाय अपना सकेंगे।
मौखिक अभिव्यक्ति के विविध पक्ष
अपने भावों और विचारों को प्रभावी ढंग से सार्थक शब्दों में बोलकर व्यक्त करने को ‘मौखिक अभिव्यक्ति’ कहते हैं। इसमें वक्ता तथा श्रोता दोनों का होना आवश्यक होता है। प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक कक्षा में पहुँचते-पहुँचते बालकों में मौखिक अभिव्यक्ति सम्बन्धी योग्यता का उचित विकास होने से उनके व्यवहार में कुछ परिवर्तन आ जाते हैं। यहाँ हम मौखिक अभिव्यक्ति को प्रभावी बनाने के निम्नांकित पक्षों पर आपका ध्यान आकर्षित करेंगे :
- शुद्ध उच्चारण : शुद्ध उच्चारण शिक्षित व्यक्ति का लक्षण है । वक्ता के शुद्ध उच्चारण का श्रोता पर प्रभाव पड़ता है। श-स, न-ण, छ-क्ष, व-ब, त्र, द्य, प्र आदि । ऐसी ध्वनियाँ या व्यंजन गुच्छ हैं जिनका अशुद्ध उच्चारण उपहास का कारण बनता है। यह ध्यान रहे कि उच्चारण के समय एक-एक वर्ण या शब्द स्पष्ट रूप से व्यक्त होना चाहिए।
- निस्संकोच भावाभिव्यक्ति : आरम्भ से ही बच्चों को बिना झिझके बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। यदि किसी कारणवश में अपनी बात प्रकट करने में झिझकते हैं तो उस कारण का पता लगाकर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। कक्षा में विद्यार्थियों को समय-समय पर बोलने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए।
- उचित गति, बलाघात तथा अनुतान : बोलने की गति तेज, मन्द या सामान्य होती है। यदि वक्ता तेज गति से भावाभिव्यक्ति करता है तो श्रोता को भाव ग्रहण करने में कठिनाई होती है। बहुत धीमे बोलने से भी विचारों का तारतम्यं टूट जाता है। अतः भावाभिव्यक्ति की गति सामान्य होनी चाहिए।
अपने किसी कथ्य को प्रमुखता देने के लिए वक्ता एक वाक्य में किसी अक्षर/शब्द पर बल देता है ताकि श्रोता को भाव विशेष की गम्भीरता या विशेषता का पता लग जाए। अक्षर/शब्द विशेष पर बल देने की प्रक्रिया बलाघात है । उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्य पढ़ें और मोटे अक्षर वाले शब्दों से बलाघात के महत्त्व को समझें :
(क) आप को आना ही पड़ेगा।
(ख) आप कैसे नहीं आएँगे।
वाक्य का उच्चारण करते समय भावों के अनुसार होने वाले /सुर का उतार-चढ़ाव अनुतान कहलाता है। इससे शब्दार्थ अथवा वाक्यार्थ में परिवर्तन आ जाता है। उदाहरण के लिए “अब ” शब्द को लें । “अब ” शब्द को सामान्य, आश्चर्यबोधक और प्रश्न वाचक भाव में उच्चरित करें तो इसके अर्थ में भिन्नता प्रकट होने लगेगी, यथा-
सामान्य कथन – अब।
आश्चर्यबोधक – अब !
प्रश्नबोधक – अब ? - उचित हाव-भाव : श्रोता पर वक्ता के उचित हाव-भाव या अंग संचालन का भी प्रभाव पड़ता है। हाव-भाव या अंग संचालन से अभिप्राय है गर्दन घुमा कर दाएँ और बाएँ बैठे श्रोताओं को निहारना ताकि वे वक्ता से निकटता का सम्बन्ध अनुभव कर सकें, मुखाकृति पर भावानुकूल हर्ष, उत्साह, करुणा, क्रोध आदि भाव लाना, हाथ की मुद्राओं द्वारा अपनी बात को प्रभावोत्पादक बनाना। अंग संचालन के समय यह ध्यान रहे कि उसमें किसी प्रकार का बनावटीपन न आए। इसी प्रकार हाव-भाव उचित सीमा तक रहने चाहिए।
- विचारों में क्रमबद्धता : शुद्ध उच्चारण के साथ अपने भावों व विचारों को सुव्यवस्थित तथा क्रमबद्ध रूप में प्रकट करना मौखिक अभिव्यक्ति को प्रभावी बनाता है।
मौखिक अभिव्यक्ति के रूप
मौखिक अभिव्यक्ति के मोटे तौर पर दो रूप हैं- अनौपचारिक तथा औपचारिक । घर-परिवार, हाट-बाजार, यात्राकाल तथा खेल-कूद आदि स्थानों पर व्यक्तियों के बीच जो बातचीत होती है वह अनौपचारिक वार्ता कहलाती है। अनौपचारिक अभिव्यक्ति की शब्दावली, वाक्य विन्यास तथा विषय बहुत अधिक व्यवस्थित नहीं होते । औपचारिक अभिव्यक्ति का विषय सीमाबद्ध होता है। विचारों में श्रृंखलाबद्ध व्यवस्था होती है तथा शब्दावली और वाक्य विन्यास में शुद्धता पर ध्यान रखा जाता है।
औपचारिक, मौखिक अभिव्यक्ति को दो उप भागों में बाँटा जा सकता है – साहित्यिक तथा व्यावहारिक।
साहित्यिक मौखिक अभिव्यक्ति से अभिप्राय है- साहित्यिक विधाओं के रूप में अपने विचारों को श्रोताओं के सामने प्रस्तुत करना, जैसे – कहानी, नाटक, कविता-पाठ, भाषण, वाद-विवाद आदि।
हम समाज में अनेक व्यक्तियों से मिलते हैं, उनका स्वागत करते हैं, उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापन करते हैं तथा परिचय अथवा विदाई के समय शिष्टाचार के कुछ शब्दों का प्रयोग करते हैं। यह औपचारिक मौखिक अभिव्यक्ति का व्यावहारिक पक्ष है।
मौखिक अभिव्यक्ति के इन रूपों को नीचे दिए गए आरेख में स्पष्ट किया गया है।
आइए, औपचारिक मौखिक अभिव्यक्ति के दोनों रूपों – साहित्यिक तथा व्यावहारिक पर कुछ अधिक जानकारी प्राप्त करें।

(क) मौखिक अभिव्यक्ति के साहित्यिक रूप
- वर्णन : वर्णन से अभिप्राय है कि व्यक्ति, वस्तु, स्थान घटना आदि का यथातथ्य वर्णन करना अथवा उसके मुख्य गुण, विशेषता, तथ्य आदि को ब्यौरेवार प्रस्तुत करना। इस विधि के विकास से विद्यार्थियों में अवलोकन शक्ति का भी विकास होता है।
विद्यार्थी प्रातः से सायं तक अनेक व्यक्तियों के सम्पर्क में आते हैं, अनेक वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, अनेक स्थानों पर जाते हैं तथा अनेक घटनाओं को देखते हैं। विद्यार्थियों से कहिए कि वे सावधानीपूर्वक पर्यावरण का अवलोकन करें तथा देखी गई वस्तुओं का मौखिक विवरण प्रस्तत करें। - कहानी : मौखिक अभिव्यक्ति के विकास में कहानी की महत्वपूर्ण भूमिका है। बच्चों को कहानी सुनना और सुनाना बहुत अच्छा लगता है। इन कहानियों के विषय आयु के साथ बदलते रहते हैं। जैसे आरम्भ में पशु-पक्षियों तथा परियों की कहानी रुचिकर लगती है किन्तु धीरे-धीरे, साहस, संघर्ष, युद्ध आदि की कहानियों में रुचि होने लगती है। किशोरावस्था में कहानियों के माध्यम से समस्या समाधान बहुत अच्छा लगता है। अतः विद्यार्थियों की रुचि, अवस्था एवं स्तर के अनुरूप कहानी का चयन किया जाना चाहिए। साथ-ही-साथ चयन में विविधता का भी ध्यान रखना चाहिए, जैसे—साहस कथाएँ, हास्य कथाएँ, बोध कथाएँ, कल्पनाशील कथाएँ आदि। किन्तु इन सभी प्रकार की कहानियों का कथानक सरल अर्था ऐसी कहानियाँ हो जिन्हें बच्चे याद करके स्वयं सुना सकें। अन्ततः हमारा उद्देश्य तो कहानी के माध्यम से मौखिक अभिव्यक्ति का विकास है। कहानी चुनते समय यह भी ध्यान रखा जाए कि उसमें हाव-भाव एवं स्वर के उतार-चढ़ाव की पर्याप्त संभावना हो।
- संवाद -एकांकी, नाटक : विद्यार्थियों के मनोरंजन के लिए पहली कक्षा से ही कुछ पाठ संवादात्मक रूप में दिए जाते हैं। कक्षा आठ तक आते-आते यही संवादात्मक पाठ एकांकी का रूप धारण कर लेते हैं। बच्चों में भावानुरूप बोलने एवं पढ़ने की क्षमता के विकास, आत्माभिव्यक्ति के प्रदर्शन तथा व्यक्ति स्थिति के अनुरूप भाषा व्यवहार करने की योग्यता के विकास का यह सशक्त साधन है। आप स्वयं भी इन पाठों के पात्रानुकूल तथा भावानुकूल वाचन का आदर्श विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत करें। पाठों के व्यक्तिगत वाचन कराएँ तथा फिर विभिन्न पात्रों की भूमिका के आधार पर विद्यार्थियों द्वारा कक्षाभिनय के रूप में प्रदर्शित कराएँ। मौखिक अभिव्यक्ति के विकास के लिए यह विधा अधिक सशक्त है।
- कविता पाठ : छन्दबद्ध तथा उन्दमुक्त कविता का सस्वर पाठ मौखिक अभिव्यक्ति की क्षमता के विकास में सहायक होता है। प्राथमिक स्तर की पाठ्यपुस्तकों में प्रायः बालगीतों तथा नाद सौन्दर्य वाली कविताएँ दी जाती हैं। आप स्वयं इन कविताओं को उचित गति, लय और भाव के अनुसार पढ़ें तथा विद्यार्थियों को इसी प्रकार सस्वर पाठ के लिए कहें। इन कविताओं को विद्यार्थियों को कंठस्थ करने के लिए भी प्रोत्साहित करें।
- भाषण : दिए गए किसी विषय पर कक्षा या सभा में अपने विचारों को क्रमबद्ध रूप में व्यक्त करना भाषण है। इसे निश्चित समय में पूरा करना होता है। भाषण श्रोताओं के भावों और विचारों को उत्प्रेरित तथा प्रभावित करने का साधन है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में तो भाषण का विशेष महत्व होता है।
आप अपने प्रशिक्षण काल में तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता तथा समसामयिक विषयों पर आयोजित भाषण कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर भाग लें तथा शिक्षण अभ्यास के समय इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करें । भाषण को प्रभावशाली बनाने के लिए उस विषय का व्यापक अध्ययन करना वांछनीय है क्योंकि सफल वक्ता बनने के लिए विषय का ज्ञाता होना आवश्यक है। - वाद-विवाद : वाद-विवाद के माध्यम से विद्यार्थियों में तर्कशक्ति, हाजिर जवाबी, हास्य-व्यंग्य, विनोद – प्रियता, विचारों को संक्षिप्त रूप से अवसर के अनुकूल कहने तथा दूसरे के विचारों को धैर्यपूर्वक सुनने और समझने जैसे गुणों का विकास होता है। पूर्ववक्ता के विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की क्षमता भी विकसित होती है। इसमें भाग लेने से वक्ता में आत्मविश्वास उत्पन्न होता है।
वाद-विवाद के विषयों का सावधानीपूर्वक चुनाव करते हुए प्रतियोगिताएँ आयोजित करें। वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए स्पष्ट नियम निर्धारित करें और उनका पूरी तरह पालन करें।
(ख) मौखिक अभिव्यक्ति का व्यवहारिक रूप
साहित्यिक पक्ष के अतिरिक्त मौखिक अभिव्यक्ति का व्यावहारिक रूप भी है जिसका अभ्यास घर में माता-पिता और परिवार जनों के बीच छोटी आयु में ही आरम्भ हो जाता है। बच्चा बहुत-सा व्यवहार परिवार और आस-पास के परिवेश से सीखता है। यहाँ इसी व्यावहारिक पक्ष के कुछ महत्वपूर्ण रूपों – धन्यवाद ज्ञापन, स्वागत तथा परिचय पर चर्चा की जाएगी।
- धन्यवाद ज्ञापन : किसी सेवा, सहायता, कृतज्ञता आदि के प्रतिदान स्वरूप कहे गए शब्द धन्यवाद ज्ञापन कहलाते हैं। धन्यवाद ज्ञापन शिष्टाचार और शिष्टता का द्योतक है। हमारा प्रयत्न होना चाहिए कि हम उचित अवसर पर धन्यवाद ज्ञापन करने में चूक न करें। विद्यार्थियों में भी इस गुण का विकास करें। विद्यार्थियों से कहें कि वे धन्यवाद ज्ञापन में सामान्यतः प्रयुक्त औपचारिककथनों को सीखें। कुछ कथन इस प्रकार हो सकते हैं- धन्यवाद, आपके सहयोग के लिए मैं आभारी हूँ, आपका एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा, आदि।
- स्वागत : किसी अतिथि, पदाधिकारी, सम्मानित व्यक्ति के आगमन, सभा उपस्थित आदि के समय उसके सम्मानार्थ या कृतज्ञता ज्ञापन में जो प्रशंसापरक कथन प्रयोग में लाए जाते हैं वे स्वागत के शब्द कहलाते हैं। इस प्रकार के कथनों का प्रयोग शिष्टाचार का लक्षण है। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि हम स्वागत के लिए कार्यक्रम तथा सम्मानित अतिथि के अनुकूल यथोचित शब्दों का प्रयोग करें। सभा में सम्मिलित प्रधान, मुख्य अतिथि आदि के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों के लिए भी स्वागत के कुछ शब्दों का प्रयोग करना न भूलें।
- परिचय: किसी सभा या समारोह में आमन्त्रित मुख्य अतिथि तथा विशिष्ट व्यक्तियों के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवरण देना परिचय कहलाता है। परिचय देते समय व्यक्ति का नाम, पद, व्यवसाय, अनुभव आदि के विषय में जानकारी दी जाती है। इससे व्यक्ति अपने आपको सम्मानित अनुभव करता है तथा उपस्थित व्यक्तियों को भी उसकी महत्ता का बोध होता है। आरम्भ में विद्यार्थी कक्षा में एक-दूसरे का परिचय कराने का अभ्यास करें।
- संवेदना प्रकटकीकरण : किसी के दुख में शोकपूर्ण घटना पर सहानुभूति प्रकट करना शिष्टाचार का लक्षण है। अतः हमारा प्रयत्न रहनाचाहिए कि ऐसे अवसरों पर हम अपनी सहानुभूति के द्वारा शोक पीड़ित व्यक्ति को ढाढ़स बँधाएँ। विद्यार्थियों को ऐसे अवसरों पर प्रयुक्त किए जाने वाले शब्दों / प्रयोगों से परिचित कराएँ।
मौखिक अभिव्यक्ति विकास के साधन
मौखिक अभिव्यक्ति के औपचारिक तथा अनौपचारिक विविध रूपों की चर्चा की जा चुकी है। उनके विकास के लिए निम्नलिखित साधनों का प्रयोग किया जाता है :
कक्षा तथा कक्षा के बाहर सहशैक्षिक कार्यक्रमों में औपचारिक तथा अनौपचारिक माध्यमों से मौखिक अभिव्यक्ति को किस प्रकार विकसित किया जा सकता है इनकी विस्तृत चर्चा पहले की जा चुकी है।
अनौपचारिक रूप में बातचीत करने से भी बालक विचारों को प्रकट करना सीखता है। विभिन्न स्थितियों – खेलकूद के मैदान में, रेलवे स्टेशन पर मेलम प्रदर्शनी में वह बातचीत में भाग लेता है और अभिव्यक्ति की नई-नई शब्दावली सीखता है।

प्रौद्योगिकी के इस युग में मौखिक अभिव्यक्ति को विकसित करने के लिए ध्वनियंत्रों की सहायता ली जा सकती है।
बाल सभा के समय ध्वनि ग्राहक यंत्र (माइक्रोफोन) पर बुलवाने का अभ्यास करवाना चाहिए। आजकल कहानियों तथा कविताओं को कैसेट पर प्रस्तुत करने का प्रचलन हो गया है। सुनी हुई कहानी या कविता को टेपरिकार्डर पर टेप करवाया जा सकता है। विद्यार्थी आदर्श वाचन भी सुन सकते हैं और अपना वाचन भी। इसी प्रकार अपने पठन का आदर्श वाचन से मिलान कर अपनी कमियों का पता लगा सकते हैं और अपने वाचन में स्वयं सुधार कर सकते हैं।
विशेष आवश्यकता वाले बालकों के मौखिक अभिव्यक्ति दोष, कारण, निदान तथा उपचार
विद्यालयों में ऐसे बच्चे भी प्रवेश पाते हैं जो शारीरिक अथवा मानसिक रूप से बाधित हों। शारीरिक रूप से बाधित बच्चों में प्रायः तीन प्रकार की असमर्थताएँ पाई जाती हैं-दृष्टि सम्बन्धी, श्रवण तथा वाक् सम्बन्धी और अस्थि सम्बन्धी। मानसिक रूप से बाधित बच्चे मंदबुद्धि होते हैं। ऐसे बच्चों की सुनना, बोलना, पढ़ना तथा लिखना सीखने सम्बन्धी विशेष आवश्यकताएँ होती हैं। इसीलिए उन्हें ‘विशेष आवश्यकता वाले बालक’ कहा जाता है। यहाँ पर हम इन विशेष आवश्यकता वाले बच्चों विशेषकर श्रवणेन्द्रिय, वागेन्द्रिय तथा मानसिक विकार वाले बच्चों को मौखिक अभिव्यक्ति सम्बन्धी दोष, उनके कारण, निदान तथा उपचार पर चर्चा करेंगे।
मौखिक अभिव्यक्ति दोष : बोलते समय तथा सस्वर पठन करते समय तुतलाना, हकलाना, नकियाना, शब्दों का चबाना आदि मौखिक अभिव्यक्ति दोष कहलाते हैं।
कारण : मौखिक अभिव्यक्ति सम्बन्धी दोषों के मुख्यतः तीन कारण होते हैं : 1. शारीरिक विकार, 2. भय और आतंक का वातावरण और 3. मानि अवरुद्धता।
- शारीरिक विकार : मौखिक अभिव्यक्ति का सीधा सम्बन्ध वागेन्द्रियों अथवा उच्चारण अवयवों-जिह्वा, कंठ, दाँत, नाक, कौवा, तालू आदि से है। इनमें किसी प्रकार का विकार उत्पन्न होने से उच्चारण स्पष्ट नहीं हो पाता। मौखिक अभिव्यक्ति के अधिकांश दोष उच्चारण सम्बन्धी होते हैं, जैसे – तुतलाना, भारी आवाज होना, अतिरिक्त अनुनासिकता, शब्दों को चबाना आदि । श्रवणेन्द्रियों (कान) में दोष भी मौखिक अभिव्यक्ति में आड़े जाता है, जिसके कारण उच्चारण दोष आ जाता है। जो बच्चे ठीक से सुन नहीं पाते उन्हें बोलने में भी कठिनाई होती है।
- भय और आतंक का वातावरण : चाहे घर हो या विद्यालय, भय और आतंक का वातावरण बच्चे का सांवेगिक सन्तुलन बिगाड़ देता है। क्रोधी माता-पिता के बच्चे हकलाने लगते हैं। अध्यापक की निरन्तर डाँट फटकार से बच्चे में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, जो उसकी मौखिक अभिव्यक्ति को दोषपूर्ण बना देती है।
- मानसिक अवरुद्धता : बालक की मानसिक अवरुद्धता उसकी मौखिक अभिव्यक्ति में बाधक होती है । ऐसे बालक की बुद्धिलब्धि का स्तर सामान्य बच्चों की तुलना में दो वर्ष पीछे होता है तथा वे अपेक्षाकृत देर से बोलना सीखते हैं।
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान : अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि मौखिक अभिव्यक्ति सम्बन्धी दोषों से ग्रस्त विशेष आवश्यकता वाले बालकों की आरंभिक अवस्था में ही पहचान करें । वागेन्द्रिय दोष वाले बच्चों को निम्नलिखित लक्षणों से पहचाना जा सकता है :
(क) ऐसे बच्चे समान ध्वनि वाले वर्णों के उच्चारण में विभेद नहीं कर पाते और एक ही समान उनका उच्चारण करके पढ़ते हैं, जैसे- श, व, स। वे अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों में भी ठीक से विभेद नहीं कर पाते, जैसे- क, ख, ट ठ आदि
(ख) ऐसे बच्चे बोलते तथा पढ़ते समय हकलाते हैं, कभी एक वर्ण और कभी एक शब्द पर ही उनकी वाणी रुक जाती है। फलतः अगला वर्ण या अगला शब्द देर में मुखरित होता है। इस कारण उनकी मौखिक अभिव्यक्ति में प्रवाह नहीं रह पाता और श्रोता उनके कथन या सस्वर पठन का ठीक से अनुसरण नहीं कर पाते।
(ग) ऐसे बच्चे बोलते समय तुतलाते हैं जिससे श्रोता को उनका कथन समझने में कठिनाई होती है। फलतः उनमें हीनता की भावना घर कर जाती है और वे दूसरों के साथ बोलने या सस्वर वाचन करने से घबराने लगते हैं।
(घ) ऐसे बच्चों में अलिजिह्व (कौवा) की स्थिति ठीक न होने के कारण ध्वनियों के उच्चारण में नकियाने का दोष पाया जाता है, जैसे- “ राजा” को “रांजां” कहना।
मानसिक रूप से बाधित बालकों के मौखिक अभिव्यक्ति संबंधी व्यवहार में निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं :
(क) ऐसे बालकों की अवधान शक्ति की परिधि बहुत छोटी तथा स्मरण शक्ति कमजोर होती है। इस कारण वे सुनी हुई ध्वनियों का सम्प्रेषण करने, सस्वर वाचन करने से और प्रश्नों का उत्तर देने में झिझकते हैं।
(ख) ऐसे बच्चे आत्म विश्वास की कमी के कारण रुक-रुक कर बोलते हैं तथा उच्चारण सम्बन्धी बहुत अशुद्धियाँ करते हैं। कथन में क्रमबद्धता का अभाव होने के कारण श्रोता को उसकी बात को समझने में कठिनाई होती है।
उपचारात्मक सहायता हेतु मार्गदर्शक निर्देश :
मौखिक अभिव्यक्ति सम्बन्धी दोषों तथा उनके कारणों का पता लगा लेने के पश्चात् अध्यापक उन्हें सुधारने के लिए निम्नलिखित उपचारात्मक सहायता कर सकते हैं :
- तुतलाने तथा नकियाने वो बच्चों को ध्वनियों का निरन्तर उच्चारण अभ्यास कराएँ। यदि अनेक बार अभ्यास करने के पश्चात् भी उनके ये दोष दूर न हों तो उनकी शारीरिक जाँच के लिए विद्यालय के अथवा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक के पास भेजने की व्यवस्था करें। सम्भव है उनके उच्चारण अवयवों, जैसे- मुखविवयर, नासिका – विवर, कौए की स्थिति, तालू आदि में गंभीर दोष हो जिससे किसी ध्वनि का उच्चारण सम्भव ही न हो। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी के माता-पिता के तुरंत सूचित करें ताकि वे किसी वाक् चिकित्सक से उसका सही इलाज कराएँ।
- हकलाने तथा मानसिक रूप से बाधित बच्चों को यथासम्भव बोलने तथा सस्वर पठन के अतिरिक्त अवसर दें। उनका मनोबल ऊँचा करने के लिए उन पर व्यक्तिगत ध्यान दें। उनके साथ प्रेम एवं सहानुभूति का व्यवह करें। इस बात का भी ध्यान रखें कि इन बच्चों के उच्चारण का कक्षा के अन्य बच्चे मज़ाक न उड़ाएँ।
- इन बच्चों के सहपाठियों को प्रोत्साहित करें कि वे इनके साथ घुल-मिल जाएँ और उनका उच्चारण तथा सस्वर पठन ठीक करने में हर प्रकार से उनकी सहायता करें।
- मौखिक अभिव्यक्ति सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के मनोरंजक कार्यकलाप कराएँ।
- कक्षा में उनके प्रति उदारतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाएँ। यदि कोई बच्चा किसी विशेष शब्द का उच्चारण नहीं कर सकता या किसी वाक्यांश को सही नहीं बोल सकता, लेकिन उसका अर्थ समझता है एवं लिखित वाक्यों में उनका सही-सही प्रयोग कर सकता है, ऐसी स्थिति में उस शब्द या वाक्यांश का सही उच्चारण करने के लिए उस बच्चे को बाध्य न करें।
- कठिन ध्वनियों का शुद्ध उच्चारण सिखाने के लिए टेप रिकार्डर, ग्रामोफोन, रेडियो, टेलीविजन, आदि दृश्य-श्रवय साधनों का प्रयोग करें।
- पता लगाएँ कि कहीं घर पर माता-पिता की निरन्तर प्रताड़ना के कारण तो उसका सांवेगिक सन्तुलन नहीं बिगड़ गया है। ऐसी स्थिति में उन्हें तथा उनके माता-पिता को वैज्ञानिक ढंग से परामर्श तथा निर्देशन देने का प्रयास करें।
3. अशाब्दिक सम्प्रेषण
इसमें सम्मिलित है-शारीरिक हाव-भाव, उच्चारण, चेहरे के भाव-भंगिमाएँ एवं अन्य व्यवहार । अशाब्दिक सम्प्रेषण सात प्रकार का हो सकता है :
पराभाषिक : यह एक प्रकार का भाषा का अनुपूरक है, जिसमें सम्मिलित है – बोलने में ऊँचे स्वर, संकोच आदि के द्वारा लाई गई वैविध्यपूर्ण विविधता । अंगविक्षेपगतः इसमें सम्मिलित हैं- चेहरे के हाव-भाव, आँखों का संचालन आदि।
स्पर्श : इसमें सम्प्रेषण के लिए स्पर्श का उपयोग किया जाता है जैसे – हाथ मिलाना, हाथ पकड़ना, थपथपाना आदि।
सामीप्यसूचक : यह सम्प्रेषण कर रहे व्यक्तियों के मध्य दूरी से सम्बन्धित है जैसे- कोई व्यक्ति दूसरे से कितनी दूरी पर खड़ा है, यह एक अलग अर्थ को सम्प्रेषित करेगा।
पहनावा और प्रकटन : इसमें पहनावा, केश सज्जा, शृंगार, आभूषण आदि भी अमौखिक सम्प्रेषण के अन्तर्गत आते हैं।
कालसूचक : अमौखिक सम्प्रेषण के स्वरूप में कई बार बोलने / प्रत्युत्तर में कितना समय लिया जा रहा है। यह भी अपने आप में एक सन्देश होता है।
अनुसंकेतक : कुछ पदार्थों अथवा वस्तुओं में प्रतीकात्मक व्याख अन्तर्निहित होती है। इसलिए यह भी सम्प्रेषण का प्रकार है जैसे- अन्तर्राष्ट्रीय यातायात चिन्ह आदि।
अशाब्दिक सम्प्रेषण अपनी भावनाएँ, संवेदनाएँ और इच्छाएँ अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। चार्ली चैपलिन, हैरी लॉगडन, बस्टर कीटन आदि अभिनेताओं ने अपनी मूक फिल्मों में इस विद्या का भरपूर उपयोग किया है। आज भी कई अभिनेता अपने शारीरिक हाव-भावों, शारीरिक चेष्टाओं के माध्यम से हास्य पैदा करते हैं और दर्शकों को बिना कुछ बोले ही कई विषय स्पष्ट कर देते हैं। अशाब्दिक सम्प्रेषण भावनात्मक सन्देशों के सम्प्रेषण के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम है।
Jurgen Rhesch और Weddon Kees ने अशाब्दिक सम्प्रेषण को सम्प्रेषित करने के लिए तीन भाषाएँ बताई हैं :
- प्रतीक भाषा
- अभिनय भाषा
- पदार्थ भाषा
- प्रतीक भाषा में अक्षरों, अंको अथवा विराम चिन्हों को अभिव्यक्त करने के लिए संकेतों या इशारों का प्रयोग किया जाता है।
- अभिनय भाषा में सारी गतिविधियाँ जैसे चलना, दौड़ना, भोजन करना आदि आती हैं।
- पदार्थ भाषा में पदार्थों जैसे वस्त्र, आभूषण, कलात्मक पदार्थों आदि का प्रदर्शन आता है।
अशाब्दिक सम्प्रेषण के प्रकारों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :
पराभाषिक
केन्द्रित करता है। आवाज की गुणवत्ता जैसे स्वर-लय का ढंग, स्वर अन्तराल, शली, ताल, उच्चारण नियन्त्रण, गूँज और कुछ शाब्दिक जैसे आह भरना, चीखना, हँसना, फुरफुराना, चिल्लाना, ही-ही करना आदि का अध्ययन इसमें किया जाता है। प्रत्येक’ मानव की आवाज में एक विशिष्टता होती है। पराभाषिक मौखिक विशेषताओं का संयोजन कई लोगों को दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझने में सहायता करता है। हम इसके माध्यम से कई प्रकरणों में लोगों के व्यक्तित्व का सटीक अनुमान लगा सकते हैं। व्यक्ति के बोलने, सांस लेने एवं उसके द्वारा बोले गए शब्दों के आरोह-अवरोह के आधार पर उसके व्यक्तितव का अनुमान लगाया जा सकता है। बोलने के ढंग से व्यक्ति के गमीर अध्ययन और उसकी परिपक्वता का अनुमान हो जाता है। जो लोग नाक के सुर से बोलते हैं उन महिला और पुरुषों का व्यक्तित्व अप्रीतिकर होता है। जो व्यक्ति नीरस या एक स्वर में बोलते हैं, ऐसे लोग वे होते हैं जिनकी जीवन में रुचि नहीं होती। अर्थात् बोलने के स्वर में लाई गई वैविध्यपूर्ण विविधताओं से व्यक्ति के व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता है।
अंगविक्षेपगत सम्प्रेषण
इसमें सम्मिलित है-
अंग संचालन
आँख संचालन
भंगिमाएँ
चेहरे के हाव-भाव
संकेत
अंग संचालन : अंग संचालन से आशय है कि जब भी हमारे अन्दर एक विशिष्ट मनोभाव की गहराई बढ़ती है तो हम शरीर का संचालन विशेष प्रकार से करते हैं।
आँख संचालन : हिन्दी के कवि बिहारी ने कहा है- “भरी सभा में करत है नैनन सों ही बात” यह आँख संचालन के द्वारा अभिव्यक्त किए जाने वाले भावों का मार्मिक वर्णन है। संस्कृत में अभिनय के पाँच अंग हैं। इनमें प्रथम नेत्र है नृत्यांगना नृत्य में अपनी आँखों से अनेक भावों को प्रकट करती है। चेहरे का सबसे प्रमुख हिस्सा आँख है और यही भाव प्रदर्शित करने का एक सशक्त माध्यम है। व्यक्ति की आँखें उसके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालती हैं। किसी व्यक्ति की आँखें देखकर उसकी मनोदशा का अनुमान लगा सकते हैं। आज समूह वार्तालाप में व्यक्ति की आँखों का संचालन महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जब हम किसी व्यक्ति को पुनः-पुनः देखते हैं तो इससे आशय यह होता है कि हम उससे स्नेह या प्यार करते हैं। आँखों का सम्पर्क सामान्यतया ईमानदारी, रुचि, आत्मविश्वास और मित्रता का संकेत करता है। सामान्यतया आशंकित और अधीर व्यक्ति आँखों के सम्पर्क से बचता है। पढ़ाते समय शिक्षक बच्चों/छात्रों की आँखों के हाव-भाव से ही उनकी मनोदशा का अनुमान लगा लेते हैं।
भंगिमाएँ : सम्प्रेषक की प्रक्रिया में सम्मिलित व्यक्तियों की भंगिमाएँ उनके आपसी सम्बन्धों को प्रकट करती हैं। अगर हम बहुत आराम के हाव-भाव में हैं तो यह दूसरे व्यक्ति के प्रति असम्मान, नापंसदगी और अरुचि को बताता है। व्यक्ति की भंगिमाएँ देखकर उसके पद, स्तर, आत्मविश्वास और आक्रामकता का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति के बैठने के ढंग और उसके पैरों के रखने के/पसारने के ढंग से उसके आत्मविश्वास का पता लग जाता है। कुछ हाव-भाव जैसे नीचे की ओर देखना, भद्देपन से खड़ा होना अथवा अपने नाखून काटना आदि यह बताते हैं कि वह व्यक्ति असुरक्षित महसूस कर रहा है, घबराया है हुआ है या चिन्ताग्रस्त है। व्यक्ति अपने हाव-भावों से अपनी मनोदशा का संकेत कर देता है। व्यक्ति के हाव-भाव उसके प्रभावकारी या अप्रभावकारी व्यक्तित्व का संकेत कर देते हैं। जब व्यक्ति अपना पूरा वजन एक ही पैर पर डाल देता है तो यह इस बात का संकेत करता है कि वह थका हुआ है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि हाव-भाव पूरे तथ्य का वर्णन नहीं करते हैं।
चेहरे के हाव-भाव : चेहरा अमौखिक सम्प्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम है। चेहरा व्यक्ति का दर्पण होता है। व्यक्ति के अन्दर जो कुछ भी घटित हो रहा होता है, चेहरे के हाव-भाव उसका वर्णन कर देते हैं। चेहरे को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है :
(अ) ऊपरी हिस्सा जिसमें सम्मिलित हैं भोएँ और मस्तिष्क
(ब) मध्य का हिस्सा। इसमें आँखें, पलकें और नाक आती है।
(स) चेहरे के निचले हिस्से में मुँह और ठोड़ी आती है।
(द) चौथे में पार्श्व का हिस्सा। जिसमें गाल आते हैं। चेहरे के हाव-भावों के द्वारा एक व्यक्ति खुशी, गुस्सा, भय, दुख, क्षमा, पसन्द, नापसन्द, व्याकुलता आदि का सम्प्रेषण कर सकता है। आधी मुँदी आँखें ऊब को प्रकट करती है। ऊँचा उठा हुआ चेहरा / मुँह खुशी को जाहिर करता है जबकि नीचे की ओर झुका हुआ मुँह दुःख को प्रकट करता है। मस्तिष्क, भोएँ, आँखें, होंठ और गाल आदि मिलकर एक विशिष्ट मनोभावों को प्रकट करते हैं।
संकेत : व्यक्ति में जिन-जिन मनोभावों की अधिकता होती है, उनका प्रकटन उसके शारीरिक क्रियाकलापों में दिखता है। व्यक्ति अनेक प्रकार से अपनी शारीरिक चेष्टाओं के द्वारा भावों को प्रकट करता है । विशेष रूप से हाथ सम्प्रेषण में अत्यधिक उपयोगी हैं। व्यक्ति जब सम्प्रेषण करता है या गुस्से में बोलता है तो अपने हाथों का प्रयोग विशेष रूप से करता है। कई बार हम बोलने की बजाय हस्त संचालन से ही सम्प्रेष्ण कर देते हैं। वक्ता मंच पर हाथी के हिलाने, पटकने और उठाने की विविध मुद्राओं से अपनी अभिव्यक्ति को और मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ श्रोताओं को आकर्षित भी करता है। वे लोग जो बोलने में हस्त संचालन के महत्त्व को नहीं समझते वे श्रोताओं पर प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में हाथों के विशेष प्रकार के संचालन के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं और वे भिन्न-भिन्न सन्देश का सम्प्रेषण करते हैं। आज के युग में शारीरिक हाव-भावों का बड़ा महत्व है। मीडिया बड़े नेताओं के शारीरिक हाव-भाव की भाषा की मीमांसा करने लगा है। ग्रंथालय एवं सूचना वैज्ञानिकों के लिए पाठकों की विभिनन मनोदशाओं और मनोभावों को समझने के लिए शारीरिक संकेतों को समझना अत्यन्त जरूरी है। पाठक की बहुत-सी समस्याएँ उसके शारीरिक अंगों का संचालन से समझी जा सकती हैं।
स्पर्श सम्प्रेषण : स्पर्श सम्प्रेषण भी अमौखिक सम्प्रेषण का एक माध्यम है। इसमें शारीरिक सम्पर्क या स्पर्श की भावनाओं और विचारों के सम्प्रेषण हेतु उपयोग किया जाता है। कई बार हाथ मिलाने, हाथ पकड़ने, थपथपाने के द्वारा हम अपनी भावनाओं को दूसरों तक सम्प्रेषित कर सकते हैं।
4. शाब्दिक सम्प्रेषण
इसमें शब्दों का उपयोग किया जाता है। शाब्दिक सम्प्रेषण का प्रारम्भ भाषा के विकास के साथ हुआ। इसमें स्तर के सम्बन्ध में सम्प्रेषण को श्रेणीबद्ध किया जा सकता है।
सम्प्रेषण के विभिन्न स्तर इस प्रकार हैं-
(अ) अन्तः वैयक्तिक : इसमें एक व्यक्ति स्वयं में सम्प्रेषण करता है। यह अपने आप से बातचीत, पढ़ना आदि के रूप में होता है। इस प्रकार के सम्प्रेषण में सूचना का स्रोत एवं प्राप्तकर्ता एक व्यक्ति एक ही सीमित होता है।
(ब) अन्तरवैयक्तिक : इसमें सम्प्रेषण दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य होता है। अन्तरवैयक्तिक सम्प्रेषण आमने-सामने अथवा दूरस्थ व्यक्ति से दूरभाष पत्र आदि के माध्यम से किया जाता है ।
(स) समूह सम्प्रेषण : यह सम्प्रेषण का वह स्वरूप है जिसमें बहुत सारे व्यक्ति सम्मिलित होते हैं और वक्ता एवं श्रोता की भूमिका प्रतिभागियों के मध्य बदलती रहती है । समूह सम्प्रेषण को छोटा समूह एवं बड़े समूह में विभाजित किया जा सकता है । लघु समूह में दो या अधिक व्यक्ति, सामान्यतः 25 से अधिक नहीं होते हैं। बड़े समूह में सम्प्रेषण एक अथवा बहुत से व्यक्तियों द्वारा 25 या उससे अधिक श्रोताओं से किया जाता है।
(द) जन सम्प्रेषण : इसमें एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के द्वारा विशेष माध्यम की सहायता से विशाल श्रोताओं से सम्प्रेषण किया जाता है। मुद्रित माध्यम, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म अथवा नए इलैक्ट्रोनिक नेटवर्क के द्वारा बड़े समूह के साथ बड़े पैमाने पर सम्प्रेषण किया जाता है । उसे जन सम्प्रेषण या संचार कहते हैं।
5. लिखित सम्प्रेषण
बेकन ने लिखा है कि- “अध्ययन से पूर्ण मानव, सम्भाषण से निपुण मानव और लेखन से सटीक मानव बनता है।”
लिखित सम्प्रेषण ज्ञान और शोध को व्यवस्थित करने में सहायता करते हैं । किसी भी व्यवस्था में लिखित सम्प्रेषण अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कोई भी संगठन चाहे वह ग्रन्थालय हो, शैक्षणिक संस्था हो, सभी को लिखित सम्प्रेषण की आश्ययकता क्रियाकलापों के समुचित व्यवस्थापन के लिए पड़ती है। संस्था में विभिन्न दायित्वों और क्रियाकलापों के सुचारू संचालन के लिए लिखित सम्प्रेषण जरूरी है।
लिखना एक कला है। इस कौशल का विकास व्यक्ति में अभ्यास से शनैः शनैः होता है। कुछ लोग मौखिक सम्प्रेषण में सिद्धहस्त होते हैं लेकिन वे अप विचारों को लेखनीबद्ध करने में असमर्थ होते हैं। ऐसे लोगों को लेखन का अभ्यास करना चाहिए। उच्चाधिकारियों को लेखन कौशल में पारंगत होना चाहिए। लेखन कौशल के विकास के लिए यह जरूरी है कि आपकी स्मरण शक्ति तीव्र हो, कल्पनाशीलता हो, पदार्थों और वस्तुओं को समझने की क्षमता हो, भाषा पर असीमित अधिकार हो और तर्कयुक्त चिन्तन का भाव विकसित हुआ हो।
लिखित सम्प्रेषण के लाभ
- लिखित सन्देश को स्थायी अभिलेख के रूप में सुरक्षित किया जा सकता है। यह लिखित सम्प्रेषण भविष्य में सन्दर्भ हेतु एवं साक्ष्य के रूप मे काम आता है। विवाद की स्थिति में यह साक्ष्य के रूप में कार्य करता है।
- जब भी हम लिखित सम्प्रेषण करते हैं तो शब्दों का चयन बहुत ध्यान से किया जाता है। लिखित सम्प्रेषण में स्तरीय भाषा एवं स्पष्ट अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिससे हम अपना मत स्पष्ट रूप से व्यक्त कर पाते हैं। मौखिक सम्प्रेषण की बजाय लिखित सम्प्रेषण व्याकरण की दृष्टि से भी परिशुद्ध होता है जिससे लाभ यह होता है कि कथन भ्रमपूर्ण और गलत फहमी पैदा नहीं करता है।
- लिखित सम्प्रेषण को सम्प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक डाक द्वारा इन्टरनेट द्वारा या एस एम एस द्वारा भेजा जा सकता है।
- लिखित सम्प्रेषण जटिल एवं लम्बे सन्देशों के लिए उपयुक्त होता है। क्योंकि प्राप्तकर्ता इसे पुनः पुनः पढ़कर समझ सकता है।
लिखित सम्प्रेषण के दोष
- लिखित सम्प्रेषण महंगा होने के साथ-साथ समय अधिक लेता है । डाक द्वारा लिखित सम्प्रेषण भेजने में कई दिन लगते हैं और सुनिश्चिचता का भी अभाव होता है। इसके विपरीत मौखिक सम्प्रेषण तत्क्षण किया जा सकता है। लिखित सम्प्रेषण की प्रक्रिया में सूचना संग्रहण करने, तैयार करने, टाइप करने और जाँचने में काफी समय व्यय होता है।
- लिखित सम्प्रेषण का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसकी पहुँच शिक्षित लोगों तक है। अशिक्षित लोग इस माध्यम का उपयोग नहीं कर सकते। अतः अशिक्षित व्यक्तियों तक सूचना पहुँचाने में यह माध्यम काम नहीं आता है।
- लिखित सम्प्रेषण बहुत औपचारिक और जटिल होता है।
- इसमें सन्देश प्राप्तकर्ता से त्वरित पुनर्निवेशन नहीं मिल पाता है। जबकि मौखिक सम्प्रेषण में यह तुरन्त सम्भव है।
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