सप्रसंग व्याख्या, बिहारी
1. मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।।
संकेत- मेरी भव बाधा ………………… हरित-दुति होई।।
संदर्भ- प्रस्तुत पद हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सतसई से लिया गया है। बिहारी के 713 छंदों का संकलन आधुनिक काल में पंडित जगन्नाथदास रत्नाकर ने किया है। ये दोहे (पद) ‘बिहारी सतसई’ नामक उसी संकलन से लिये गये हैं।
प्रसंग- इस पद में कवि बिहारी जी राधा से आग्रह करते हैं कि वे उनके सारे दुखों, कष्टों को हर दे, उन्हें उनके जीवन से खत्म कर दे।
व्याख्या- प्रस्तुत पद में कवि बिहारी लाल राधा जी से प्रार्थना करते हैं कि मेरी जिंदगी की जितनी भी सांसारिक बाधाएँ हैं उन्हें दूर करके मुझे सुख प्रदान करो। बिहारी जी कहते हैं कि राधा ऐसी चमत्कारिक स्त्री है जिसके बदन की एक झलक पड़ने से श्री कृष्ण के जीवन में सभी खुशियाँ आ गई। वे प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे राधा जी मेरी भी सभी पीड़ा, दुख दूर कर दो। मेरे जीवन में सुख भर दो। जीवन में जितनी भी मुश्किले हैं आप उन सब को हर लो।
विशेष-
- राधा की आराधना की गई है।
- श्लेष अलंकार का प्रयोग
- सरल भाषा का प्रयोग