हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

व्यावसायिक हिन्दी

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प्रस्तावना

‘व्यावसायिक हिंदी’ किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में प्रयोग में ली जाने वाली हिंदी से हैं जिसके अंतर्गत वाणिज्यिक, पर्यटन, संस्कृति, जनसंचार आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं। इसका कार्य व्यापारिक संगठन का ऐसे किसी भी व्यापारिक संगठन, सरकारी प्रतिष्ठान या व्यापरिक उद्देश्य से संबंधित संस्थान अथवा व्यक्ति के बीच संपर्क के लिए किये जाने वाले पत्र-व्यवहार हैं जिसके द्वारा वे अपने उद्देश्य की प्रतिपूर्ति कर सकें।

कथ्य-पाठ

पिछले पाठ में ‘कार्यालयी हिंदी’ के संबंध में विचार करते हुए ‘हिंदी’ के विभिन्न प्रतिरूपों पर विचार किया गया था। जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि हिंदी के सभी प्रतिरूप पूर्ण रूप से एक होते हुए भी भिन्न हैं। जहाँ सामान्य-जन की हिंदी अनौपचारिकता से युक्त होती है और इसके अंतर्गत भाषिक संरचना के नियमों से कुछ छूट मिल जाती है। यह व्याकरण के नियमों से युक्त होकर भी उससे मुक्त रहती है क्योंकि इसमें इस हिंदी का प्रयोग करने वाला सामाजिक हिंदी `के ग्राम्य, देशज तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग भी सहज रूप से कर सकता है, वहीं ‘कार्यालयी हिंदी’ किसी भी कार्यालय के दैनिक कामकाज के प्रयोग में ली जानी वाली हिंदी है। लेकिन व्यावसायिक कार्यालयों की हिंदी इससे भिन्न प्रकार की होती है। ‘व्यावसायिक हिंदी’ से अभिप्राय औद्योगिक या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में प्रयोग में ली जाने वाली हिंदी से है। जिसके अंतर्गत वाणिज्यिक, पर्यटन, संस्कृति, जनसंचार आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं।

व्यावसायिक हिंदी का अभिप्राय

कार्यालयी हिंदी की अपेक्षाकृत ‘व्यावसायिक हिंदी’ का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसका अभिप्राय रोजगार तथा जीवन के अभिप्रेत लक्ष्यों से सम्बद्ध क्षेत्रों तथा राजनीति, कृषि, व्यापार, उद्योग, विधि, ज्योतिष, दर्शन, चिकित्सा, पत्रकारिता आदि क्षेत्रों के लिए चिंतन, मनन एवं अभिव्यक्ति की हिंदी है। सरकारी कार्यालयों के अतिरिक्त ऐसे अन्य संस्थानों के कार्यालयों में, जिसका संबंध व्यावसायिक कार्यकलापों से है, व्यावसायिक हिंदी का उपयोग किया जाता है। (प्रेमचंद पातंजलि, व्यावसायिक हिंदी, वाणी प्रकाशन, 200 अनेक स्थलों पर इसे प्रयोजनमूलक हिंदी या व्यावहारिक हिंदी के नाम से भी जाना जाता है लेकिन सुविधा तथा भ्रम की स्थिति से बचने के लिए इसे व्यावसायिक हिंदी ही कहा जाए तो उचित होगा।
वर्तमान समय वैश्वीकरण का युग है। इस युग में बाजार केंद्रित नीतियों के कारण सम्पूर्ण विश्व में मुक्त व्यापार की अवधारणा का चलन बढ़ गया है। प्रत्येक व्यावसायिक प्रतिष्ठान अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने उद्योगों को विस्तार दे रहे हैं। इन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को अपने संगठनों से सम्बद्ध अन्य औद्योगिक संस्थानों के साथ संपर्क के लिए पत्र-व्यवहार की आवश्यकता पड़ती ही हैं। भारत की अधिकांश जनता की संपर्क भाषा हिंदी होने के कारण राजभाषा से मुक्त यह समाज के साथ संपर्क और बाजार के लिए उपयोगी भाषा होने के कारण इसका प्रयोग व्यापारिक संगठनों द्वारा भी क्या जा रहा है। अपने व्यापार को सुचारु रूप से चलाने के लिए हिंदी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग इन संगठनों की आवश्यकता है।
यदि भारत के प्राचीन इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो यहाँ व्यापार का एक लंबा इतिहास रहा है। भारत के व्यापारी विश्व के अनेक राष्ट्रों में व्यापार के लिए यात्राएँ भी किया करते थे लेकिन तकनीकी के आगमन ने वैश्विक व्यापार को गति प्रदान की। किन्तु वैश्विक संदर्भों में देखा जाए तो अंग्रेजी के प्रचार-प्रसार और प्रभाव के कारण वहाँ हिंदी भाषा में पत्र-व्यवहार संभव नहीं है। इसलिए विदेशों को छोड़कर यदि व्यावसायिक संगठनों का भारत के विभिन्न व्यापारिक संगठनों से पत्र-व्यवहार हिंदी में होना सहज ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है। इन व्यापारिक संगठनों द्वारा अन्य व्यापारिक संगठनों के अतिरिक्त बैंकों से किया जाने वाला संपर्क भी व्यावसायिक हिंदी के द्वारा ही किया जाता है।
व्यावसायिक हिंदी की सबसे प्रमुख विशेषता उसकी सहजता होने के कारण इसमें किया जाने वाला पत्र व्यवहार आसानी से संप्रेषित हो पाता है। इतना ही नहीं वर्तमान समय में पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में व्यापार की माँग अधिक होने के कारण इस क्षेत्र में भी व्यावसायिक हिंदी का आगमन हो चुका है। वह अलग बात है कि पत्रकारिता की अपनी पारिभाषिक शब्दावली होने के कारण उसका उपयोग सीमित रूप से ही होता है लेकिन ऐसा केवल इसी क्षेत्र तक ही नहीं है व्यापार जगत के साथ जिन-जिन संगठनों का संपर्क होता है उनके अपने क्षेत्र की शब्दावली पारिभाषिक शब्दावली के अंतर्गत ही आती है। लेकिन उन व्यापारिक संगठनों के बीच इस शब्दावली का ज्ञान और इसके सम्प्रेषण प्रक्रिया की सरलता के चलते व्यावसायिक हिंदी सहजता से उपयोग में लाई जा रही है।
वर्तमान दौर में तकनीकी के आगमन के बाद जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हिंदी का वर्चस्व तेज़ी से बढ़ने लगा है। जनसंचार के इन माध्यमों की हिंदी सामान्य बोलचाल के निकट होती है। लेकिन मानकता की दृष्टि से वह भी निर्धारित मापदण्ड पर सही नहीं ठहरती । इसका कारण है कि जनसंचार का मुख्य उद्देश्य समाज के विशाल वर्ग तक सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की सूचना को सम्प्रेषण करना है और भारत जैसे विशाल राष्ट्र में सरल और सुबोध भाषा के द्वारा ही विशाल जनसमुदाय तक अभिव्यक्ति सम्भव हो सकती है। इसीलिए जनसंचार के माध्यमों में हिंदी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के शब्दों का व्यावहारिक प्रयोग उसे मानकता से परे करता है।
इन रूपों के अतिरिक्त व्यापार, वाणिज्य, विधि, खेल आदि अनेक क्षेत्रों में हिंदी के रूप पारिभाषिक के साथ- साथ स्वतंत्र भी हैं। इन क्षेत्रों की अपनी विशिष्ट भाषा के कारण इसका प्रयोग सीमित रूप में ही किया जा सकता था। क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों में ही इस भाषा के अर्थ को समझने की क्षमता होती है। लेकिन इन क्षेत्रों में हिंदी का मानकीकृत रूप ही स्वीकार्य होता है। हिंदी के इन विभिन्न रूपों और अनेक अन्य रूपों में भाषा का जो स्वरूप होता है वह कार्यालयी हिंदी में प्रयुक्त नहीं होता। कार्यालयी हिंदी इससे भिन्न पूर्णतः मानक एवं पारिभाषिक शब्दों को ग्रहण करके चलती है। इसलिए यहाँ व्यावसायिक उद्देश्य को केंद्र में रखते हुए व्यावसायिक हिंदी का प्रयोग इन कार्यालयों के दैनिक कामकाज में व्यवहार में लिया जाता है।
मूल रूप से ‘व्यावसायिक हिंदी’ का उपयोग एक व्यवसायी द्वारा उसके व्यवसाय के हितों के आधार पर दूसरे व्यवसाय अथवा उसके व्यवसाय से संबंधित किसी व्यक्ति को पत्र लिखना आदि के अंतर्गत आता है। इसमें अपने माल के संबंध में पूछताछ करना, समय पर आदेश देना, खराब माल की शिकायत करना, माल प्राप्ति की सूचना भेजना, माल के भुगतान अथवा बकाये के संबंध लिखना, अपने माल का प्रचार करना आदि से सम्बन्धित जो पत्र एक व्यवसायी द्वारा किसी अन्य को हिंदी भाषा में लिखा जाता है वह व्यावसायिक हिंदी के अन्तर्गत आता है। जिनका उद्देश्य व्यावसायिक संगठन द्वारा अपने व्यवसाय में वृद्धि करना, ग्राहकों में वृद्धि करना, अपनी साख को बढ़ाना, पुराने ग्राहकों में अपनी पैठ बनाये रखना, ग्राहकों की शिकायतों पर तुरन्त ध्यान देना, ग्राहकों का नया बाजार ढूँढना, ऋण की वसूली करना, पारस्परिक मतभेदों को दूर करना और अपने संगठन तथा ग्राहकों के बीच समन्वय स्थापित करना है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि किसी भी व्यासवसायिक संगठन या उद्यम द्वारा अपने व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने व्यवसाय के कार्य से संबंधित लोगों, संगठनों, सरकारी प्रतिष्ठानों आदि के साथ किये जाने वाला ऐसा पत्र-व्यवहार, जो हिंदी में किया जाता है वह ‘व्यावसायिक हिंदी’ का पत्र-व्यवहार कहलाता है।

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