व्यावसायिक पत्र-लेखन

प्रस्तावना
‘पत्राचार’ व्यक्ति-जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन चुका है। व्यावसायिक क्षेत्र में तो पत्र लेखन की योग्यता को सफलता की कुंजी ही माना जाता है। यहाँ विभिन्न प्रकार का पत्राचार (Correspondence) वह ‘पुल’ है जो वाणिज्य- व्यवसाय के विशाल सागर को पार करने का प्रमुख माध्यम बनता है। व्यवसाय आरम्भ करना हो तो उसके उद्घाटन का निमंत्रण-पत्र तैयार कीजिए। जिस प्रकार का व्यवसाय हो, उसी के अनुसार लाइसैंस कोटा आदि पाने के लिए आवेदन कीजिए। फिर अपना व्यवसाय चमकाने के लिए समाचारपत्रों, आकाशवाणी या दूरदर्शन पर विज्ञापन देने की आवश्यकता भी पड़ सकती है। उसके लिए अलग प्रकार का पत्र-व्यवहार करना होगा। व्यवसाय का हिसाब-किताब सही रखने के लिए बैंक में खाता खोलने, बैंक से ऋण प्राप्त करने, चैक ड्राफ्ट आदि के संबंध में पूछताछ करने, भुगतान शीघ्र करने या रोकने आदि से संबंधित अनेक प्रकार के पत्राचार की प्रिक्रया पूरी करनी पड़ती है। दिन-प्रति-दिन की व्यावसायिक गतिविधियों से परिचित रहने के लिए भी पत्राचार से सहायता मिलती है। विभिन्न उत्पादनों या वस्तुओं के भाव-दर जानना या भेजना, क्रयादेश (Purchase order) भेजना या पाना, संस्थान, दुकान या पदार्थ विशेष का बीमा कराना, आवश्यक वस्तुओं या योजनाओं की आपूर्ति के लिए निविदा सूचना प्रकाशित करना या किसी अन्य संस्था की जारी की गई निविदा सूचना के अनुसार कोई अनुबंध (Contract) लेने के लिए पत्राचार करना आदि व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता पाने के अनिवार्य सोपान हैं। इसी से व्यावसायिक पत्रों का महत्त्व स्पष्ट है।
व्यावसायिक पत्र-लेखन
‘पत्र – लेखन’ एक कला है। विविध कलाओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(1) ललित कलाएँ- साहित्य, संगीत, नृत्य, चित्र, वास्तुकला आदि,
(2) उपयोगी कलाएँ- बुनाई, रंगाई, छपाई, कढ़ाई, टंकण इत्यादि।
‘व्यावसायिक पत्र-लेखन की कला’ में दोनों प्रकार की कलाओं का समन्वय है। भाषा-शैली की रोचकता और प्रभविष्णुता की दृष्टि से वह ‘उपयोगी’ कला है। अन्य कलाओं का आप भले ही जीवन-भर ज्ञान प्राप्त न करें किंतु पत्र- लेखन-कला’ के बिना आपका अधूरा माना जाएगा। आपके सामान्य ज्ञान, विवेक, कर्म- कौशल और विश्वसनीय अनुभव की एकमात्र कसौटी ‘पत्र-लेखन कला’ है। इसलिए व्यावसायिक पत्र – लेखन की प्रमुख विशेषताओं को संक्षेप में जान लेना उपयुक्त होगा।
व्यावसायिक पत्र-लेखन की प्रमुख विशेषताएँ
व्यावसायिक पत्र-लेखन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- स्पष्टता- व्यावसायिक पत्र-लेखन की सर्वप्रमुख विशेषता है- स्पष्टता। आप ‘पत्र’ द्वारा जो कहना या जानना चाहते हैं उसका अभिप्राय भली-भाँति स्पष्ट हो जाना चाहिए। यह ‘विषयवस्तु’ की स्पष्टता होगी। पत्र पाने वाला यह समझ जाए कि आप किसी वस्तु (उत्पाद आदि) का केवल ‘भाव-दर’ जानना चाहते हैं कि उसकी एजेंसी लेने की शर्तें पूछ रहे हैं या ‘क्रयादेश’ भेजना चाह रहे हैं। आपका पत्र पाकर यदि कोई यह कह कर उसे रद्दी में डाल दे कि ‘पता नहीं, क्या कहना चाहते हैं?” तो आपको व्यावसायिक स्तर पर परेशानी और क्षति उठानी पड़ सकती है।
‘स्पष्टता’ का एक दूसरा पहलू ‘सुवाच्यता’ है जिसका संबंध पत्र की भाषा, आपकी लिखावट या वाक्य रचना से है। जगह-जगह की गई काट-छाँट, किसी शब्द के स्थान पर दूसरा शब्द (विशेष रूप से आंकड़ा) उसी के ऊपर लिख देना, पहले लिखे गये वाक्य को बदलते समय आगे-पीछे के तारतम्य का ध्यान न रखना आदि कई सावधानियाँ ऐसी हैं जो पत्र की स्पष्टता में बाधक बन सकती है। इनसे बचना आवश्यक है। - एकान्विति- व्यावसायिक पत्र में ‘विषय-वस्तु’ की एकान्विति आवश्यक है। ‘पूछताछ ‘ वाले ‘पूछताछ’ ही हो, अन्य कोई बात नहीं| किसी व्यापारिक संस्थान से मँगवाए गए माल में कुछ घटियापन, टूट-फूट या निर्धारित मूल्य से अधिक का बिल होने की ‘शिकायत’ करने के लिए लिखे गए पत्र में ‘समाज में भ्रष्टाचार’, ‘मिलावट’ या ‘नैतिक पतन’ का भाषण प्रस्तुत करना असंगत होगा। केवल ‘मतलब’ की बात, विषयनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ स्तर पर दी जानी चाहिए। यदि किसी व्यावसायिक उपयोग, संस्थान आदि से कई बातें कहनी, पूछनी या उसे बतानी आवश्यक हैं तो हर बात के लिए अलग पत्र लिखा जाए इस विशेषता को ध्यान में रखकर ही, प्रत्येक व्यावसायिक पत्र के आरंभ में (संबोधन के बाद) ‘विषय’ या ‘ के रूप में वह मुद्दा स्पष्ट कर दिया जाता है जिसके संबंध में पत्र लिखा जा रहा है। ‘एक पत्र विषय’ का सिद्धांत याद रखें।
- सहजता – व्यावसायिक पत्र की भाषा-शैली सीधी-सपाट होनी चाहिए। वह स्वभाविक हो। उसमें बनावटीपन की गंध न हो। ‘व्यावसायिक पत्र’ में आपकी विद्वता, साहित्यिकता या कल्पनाशीलता के लिए कोई स्थान नहीं। ऐसा न हो कि आपका ‘व्यावसायिक पत्र’ पढ़कर कोई व्यापारिक मुद्दे को भूलकर आपकी लेखन-प्रतिभा का अर्थ ही पूछता फिरे। ‘व्यावसायिक’ पत्रों की भाषा ‘अभिधात्मक’ अर्थात् मुख्य प्रसिद्ध और प्रचलित अर्थों वाली होती है। उसका एक निश्चित ढाँचा प्रचलित होता है उससे इधर-उधर होना ठीक नहीं।
- यथार्थता- यह व्यावसायिक पत्र-लेखन का एक प्रमुख गुण है। ‘तथ्य’ और ‘आंकड़े’ (Fact and Figures) पत्र के ‘प्राणतत्त्व’ हैं। उसमें, संबद्ध विषय के विभिन्न पहलुओं या तथ्यों की वास्तविक, सही जानकारी न होने के कारण, आपके उद्देश्य की पूर्ति में विलम्ब हो सकता है, बना-बनाया सौदा बिगड़ सकता है, मिलता हुआ क्रयादेश (Purchase Order) रूक जाता है।
- संक्षिप्तता- व्यावसायिक पत्र जितना छोटा होगा, उतनी ही जल्दी उस पर कार्यवाही हो सकेगी। एक प्रसिद्ध औद्योगिक संस्थान के उपप्रबंधक महोदय को आए हुए अनेक पत्रों को फाड़-फाड़ कर रद्दी की टोकरी में डालते देखकर जब कारण पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया- ये पत्र हैं या लेख ! इन्हें पढ़ने की फुर्सत किसे है? आपके पत्र साथ भी ऐसा व्यवहार न हो, इसके लिए आवश्यक है कि मूल ‘विषय’ या ‘संदर्भ’ से सम्बन्धित बातों को आप कम से कम शब्दों में प्रस्तुत कर दें। किसी विशेष स्थिति में, विस्तृत स्पष्टीकरण देना जरूरी हो तो उसे अलग कागज पर लिखकर, उसके ऊपर एक छोटा सा ‘मुखपत्र ‘ या ‘आवरण-पत्र’ (कवरिंग लेटर Covering Letter) नत्थी कर दें, जिसमें प्रेषक-संस्थान के नाम-पते, संबोधन और संदर्भ-संकेत आदि के बाद यह लिखा जाये कि “आपके द्वारा उठाये गये मुद्दों (पूछी गई बातों) का स्पष्टीकरण संलग्न है।”
- मौलिकता- व्यावसायिक पत्र-लेखन के संदर्भ में ‘मौलिकता’ का तात्पर्य है- ‘नयापन’ या ‘ताजगी’। इन पत्रों में तथ्यात्मक विवरण तो प्राय: एक से होते हैं, उनमें किसी प्रकार का नयापन आप नहीं ला सकते, किन्तु उन्हें प्रस्तुत करने की शैली में आपके या आपके व्यावसायिक अथवा ओद्योगिक संस्थान के व्यक्तित्व की विशेष झलक मिल सकती है। जैसे किसी ‘केश तेल’ की ‘एजेंसी’ लेने के लिए निर्माता को पत्र लिखते समय आप अपनी ‘विक्रय-क्षमता’ का विश्वास दिलाना चाहते हैं, तो आप लिख सकते हैं- ‘हमें एजेंसी देने के एक वर्ष बाद ही आप देखेंगे कि हमारे नगर की हर गृहिणी बाजार में केवल इसी केश तेल की माँग करेगी’ या ‘हमारे नगर में आपकी एजेंसी खुलते ही लोग अन्य केश तेलों के नाम तक भूल पाएँगे’ इत्यादि। यही शैली आपकी मौलिकता होगी। परंपरागत बात भी यदि नये ढंग से कही जाए तो पत्र पाने वाले के मन को छू लेगी।
- स्वत: सम्पूर्णता- व्यावसायिक पत्र हर दृष्टि से अपने-आप में इस प्रकार पूर्ण होना चाहिए कि उसे पाने वाला तत्काल उस पर, समुचित कार्यवाही आरम्भ कर सके, उसे प्राप्त पत्र के सम्बन्ध में आप से कोई स्पष्टीकरण माँगने की आवश्यकता न पड़े। उदाहरण के लिए ‘निविदा पत्र’ में प्रस्तावित कार्य की ‘अवधि’ या ‘मात्रा’ का पूरा विवरण न हो, ‘अंतिम तिथि’ या ‘अनुमानित व्यय’ का उल्लेख न हो तो वह पत्र रद्द हो जाएगा। बैंक को लिखे गये पत्र में ‘खाता संख्या’ या ‘खातादार का नाम-पता’ सही नहीं होगा तो उस पर कोई भी कार्यवाही नहीं होगी। एजेंसी लेने के लिए गये पत्र में, अपने क्षेत्र का पूर्ण परिचय, क्षेत्रफल, जनसंख्या, समाज के वर्गों या समुदायों का विवरण, आप की पहले की विक्रय क्षमता, अन्य किसी की एजेंसी की प्रगति आदि का विस्तृत उल्लेख ‘अपने आप में एक पूरे मसविदे’ या ‘वास्तविक रिपोर्ट’ का काम करेगा। इस प्रकार, विषय या संदर्भ- विशेष से सम्बन्धित हर पहलू की सही जानकारी पत्र को ‘स्वत: सम्पूर्ण’ बना देती है।
- शालीनता- व्यावसायिक पत्र, भेजने वाले व्यक्ति, उसके प्रतिष्ठान, पद, उद्योग, संस्थान आदि के स्तर और व्यक्तित्व का दर्पण होते हैं। उनकी प्रतिष्ठा, गरिमा, कार्य कुशलता और सबसे अधिक जन-संपर्क-संबंधी योग्यता व्यावसायिक पत्रों के स्वरूप से ही झलकती है। उदाहरणतया आपके संस्थान में किसी ने सहायक प्रबन्धक के पद के लिए आवेदन किया, आप उसे नियुक्त नहीं कर पाए, क्योंकि आपको उससे अधिक योग्य, कुशल और अनुभवी प्रत्याशी मिल गया। अब यदि आप उसे यह लिखें कि “आप जैसे अयोग्य या अनुभवहीन व्यक्ति के लिए हमारे संस्थान में कोई स्थान नहीं है” या “आपको सूचित किया जाता है कि चयन समिति (Selection Committee) ने आपका आवेदन अस्वीकार कर दिया है” तो उसके मन को गहरी ठेस पहुँचेगी। इसके विपरीत यही बात (सूचना) एक शालीन ढंग से इस प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है- “हमें खेद है कि हम आपकी सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाएँगे” अथवा “आपकी सेवाओं से लाभ न उठा पाने का हमें हार्दिक खेद है।”
इसी प्रकार, अन्य पत्रों में भी, प्राप्तकर्ता के प्रति सम्मानजनक, शालीन और शिष्ट भाषा का प्रयोग किसी व्यावसायिक संस्था की गरिमा तथा ख्याति बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
व्यावसायिक पत्रों के विविध रूप (प्रकार)
आप जानते हैं कि व्यावसायिक पत्र ‘औपचारिक’ कोटि के होते हैं। (निजी, व्यक्तिगत या पारिवारिक पत्र ‘अनौपचारिक’ कहलाते हैं।) इन औपचारिक (व्यावसायिक) पत्रों को उनके विषय के अनुसार विभिन्न रूपों में बाँटा जा सकता है। ‘बैंक’ संबंधी पत्रों के वर्ग, ‘बीमा’ सम्बन्धी पत्रों से अलग प्रकार के होंगे तो इसी प्रकार किसी बहुत बड़े उद्योग या सरकारी उपक्रम (Government Undertaking) के पत्रों का रूप किसी ‘रोजगार एजेंसी’ अथवा ‘पुस्तक प्रकाशन- संस्थान’ के पत्रों से अलग कोटि का होगा। वाणिज्य-व्यवसाय का क्षेत्र बहुत विस्तृत, व्यापक और विविधतापूर्ण है, अत: उसके रूप, प्रकार, वर्ग या भेद भी असंख्य हो सकते हैं । यहाँ, केवल सामान्य जानकारी के लिए कुछ प्रमुख प्रकार के व्यावसायिक पत्रों का उल्लेख किया जा सकता है, जैसे
(1) पूछताछ पत्र,
(2) अनुरोध पत्र,
(3) स्वीकृति-पत्र,
(4) शिकायती-पत्र,
(5) विज्ञापन-संबंधी पत्र,
(6) दर-भाव- मूल्य संबंधी पत्र,
(7) मूल्यसूची (Price List) या सूची-पत्र मँगवाने के लिए पत्र,
(8) वस्तु- विशेष का नमूना मँगाने के लिए पत्र,
(9) विक्रय-प्रस्ताव (Sale Proposal) संबंधी पत्र,
(10) क्रयादेश (Purchase order) संबंधी पत्र,
(11) व्यापारिक संदर्भ पत्र,
(12) एजेंसी संबंधी पत्र,
(13) निविदा पत्र,
(14) भुगतान (Payment) संबंधी पत्र,
(15) बैंक-पत्र,
(16) बीमा-पत्र,
(17) अनुस्मारक (Reminder) इत्यादि।
इन सभी प्रकार के अथवा अन्य भी किसी प्रकार के व्यावसायिक पत्रों के उत्तर-रूप लिखे जाने वाले विविध पत्र भी विविध प्रकार के हो सकते हैं। आपको उन सभी की सामान्य जानकारी होनी चाहिए।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि दफ्तरी कार्यवाही को सम्यक रूप से सम्पन्न करने और विभिन्न सरकारी-गैरसरकारी संस्थाओं को समाज के साथ जोड़े रखने के लिए व्यावसायिक पत्रों का प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा ही सरकारी, गैरसरकारी दफ्तरों में आपसी मतों का मिलान और सामंजस्य बना रहता है। इस तरह से हम देख सकते हैं कि व्यावसायिक पत्रों का व्यक्ति जीवन में बहुत महत्व होता है।
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