वाक्य रचना के आधार और भेद

प्र. वाक्य रचना के आधार और भेद।
उ. भाषा की महत्तम व अर्थवान इकाई के साथ-साथ भावों एवं विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने का कार्य वाक्य करता है। भाषा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाला वाक्य दरअसल परस्पर संबद्ध शब्दों के प्रयोग सम्मत अनुक्रम का ही नाम है। वाक्य रचना मुख्यतः दो घटकों पर टिका रहता है जिसमें प्रथमतः है अनिवार्य घटक तथा तत्पश्चात् ऐच्छिक घटक। वाक्य में क्रिया का प्रयोग किया जाना प्रधान होने के साथ-साथ अनिवार्य घटक है। क्रिया के इस्तेमाल करने के लिए जिन तत्त्वों की अनिवार्य भूमिका होती है उसे भी अनिवार्य घटक कहा जाता है। उदाहरण के लिए-
“राम सेब खा रहा है।”
इस वाक्य में खाना क्रिया की पूर्णता को संभव बनाने में खाने वाला व्यक्ति ‘राम’ तथा खाया जाये वाला सेब यानि वस्तु की भूमिका अनिवार्य है जिसे व्याकरण में क्रमशः कर्त्ता और कर्म कहा जाता है। इस वाक्य में ‘खाना’ क्रिया से बने वाक्य में क्रिया किस स्थान पर किस काल में या किस तरीके से संपादित होती है यह वाक्य के ऐच्छिक या फिर सूचक घटक होते हैं। क्रिया वाक्य के ऐच्छिक घटक होते हैं।
रचना के आधार पर वाक्य के भेद
रचना के आधार पर वाक्य को सरल वाक्य, संयुक्त वाक्य तथा मित्र वाक्य में बांटा जाता है। इन्हें क्रमशः साधारण, यौगिक तथा जटिल वाक्य भी कहा जाता है।
सरल या साधारण वाक्य- ऐसा वाक्य जिसमें एक उद्देश्य और साथ ही एक विधेय भी हो, उसे ही सरल वाक्य या साधारण वाक्य कहा जा सकता है। सरल वाक्य का उदाहरण है-
राम सेब खाता है।
रीना खाना खा रही है।
संयुक्त या यौगिक वाक्य- ऐसा वाक्य जिसमें दो या दो से अधिक सरल अथवा मिश्र वाक्य प्रयुक्त होते हैं तथा वाक्य योजकों के माध्यम से जुड़े होते हैं तो संयुक्त या यौगिक वाक्य कहलाते हैं। योजकों के माध्यम से जुड़ने के पश्चात् भी इसमें एक मुख्य तथा स्वतंत्र उपवाक्य होता है। या, और, तथा, फिर, अथवा, किंतु, लेकिन, परंतु, इसलिए आदि योजकों के माध्यम से संयुक्त वाक्य जुड़े होते हैं। निम्नलिखित वाक्य में मुख्य वाक्य ‘बरसात थोड़ी देर के लिए आई है’ तथा ‘और’ योजक शब्द होने के साथ ‘वह बंद हो गयी’ उपवाक्य है-
“बारिश थोड़ी देर के लिए आई और वह बंद हो गयी।”
मिश्र या जटिल वाक्य- इस तरह के वाक्य में जहाँ एक मुख्य उपवाक्य हो तो तथा एक या फिर अधिक गौण या आश्रित उपवाक्य होता है। गौण उपवाक्य मुख्य उपवाक्य पर आश्रित रहता है। यह जो-वह, जब-तब, जैसा-वैसा जैसे व्याधिकरण योजकों से जुड़े हुए थे। उदाहरण के लिए देखे तो-
“शिक्षक ने बताया कि कल स्कूल में छुट्टी होगी।” ‘मैं जैसा कहूँगा, तुम वैसा करो’।
अर्थ के आधार पर वाक्य भेद- व्याकरणशास्त्रियों ने अर्थ के आधार पर वाक्य के 8 भेद स्वीकारे हैं। वह निम्न है-
(i) विधानवाचक वाक्य- इस तरह का वाक्य किसी कार्य के पूर्ण होने या फिर बात के पूरी होने का बोध कराता है। उदाहरण के लिए-
“श्याम आया था”
“रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोह किया था।”
(ii) निषेधवाचक या नकारात्मक वाक्य- इस तरह के वाक्य में कार्य के बात के अपूर्ण रह जाने का भाव उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए-
“श्याम नहीं आया”
“इस समय धूप नहीं निकली है।”
(iii) आज्ञावाचक वाक्य- कार्य के लिए आज्ञाभाव, प्रार्थना या उपदेश के होने पर इस तरह के वाक्य को आज्ञावाचक वाक्य कहलाता है। उदाहरण है-
“अभी मत खाओ”
“तुम स्कूल जाओ”
(iv) प्रश्नवाचक वाक्य- ऐसा वाक्य जिसमें प्रश्न पूछा जाता है। उदाहरण देखें तो-
“पुस्तक कहा पर है?”
“तुम घर क्यों नहीं गए?”
(v) विस्मयादिबोधक वाक्य- इस तरह का वाक्य जिसमें हर्ष, शोक, घृणा जैसे भाव का बोध होता है तथा व्यक्त किया जाता है। उदाहरण-
“हे भगवान!“
“अहा! यह फूल खूबसूरत है!”
(iv) इच्छाबोधक वाक्य- नाम से ही स्पष्ट है कि ऐसा वाक्य जिसमें इच्छा, शुभ कामना या मन मुताबिक कार्य का भाव प्रकट हो वह इच्छाबोधक वाक्य कहलाता है। उदाहरण के लिए-
“तुम्हारा कल्याण हो”
(vii) संदेहबोधक वाक्य- इस तरह का वाक्य जिसमें संदेह या फिर संभावना जैसे भावों का बोध होता है। उदाहरण के लिए-
“शायद आज वर्षा हो”
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि वाक्य किसी भी भाषा की महत्तम व्याकरणिक इकाई होती है। व्याकरणशास्त्रियों ने रचना तथा अर्थ के आधार पर हिंदी में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न वाक्यों को अधिक सुस्पष्टता प्रदान किया गया है।