हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

रेखाचित्र : उद्भव और विकास

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1940 के बाद हिंदी साहित्य में प्रयोग का दौर शुरू हुआ। प्रयोग मात्र कविता में ही नहीं किए गए। प्रयोग का असर साहित्य की विविध विधाओं पर भी हुआ। 1940 के बाद साहित्यिक विधाओं के नए-नए रूप सामने आए। उपन्यास जो अभी तक वर्णनात्मक विधा थी। उसे जीवनी की शक्ल में पेश किया गया। अज्ञेय का ‘शेखर एक जीवनी’ इसका उदाहरण है। कविता और नाटक के संयोग से काव्य नाटक का जन्म हुआ। ‘अंधायुग’ काव्य नाटक का प्रत्यक्ष प्रमाण है। विधाओं के मिश्रण में हमारे जीवनानुभव के प्रतिबिम्ब मिलते हैं। वस्तुतः समाज की जटिलता के बीच हमारे अनुभव की गति सीधी नहीं रह सकी सामाजिक अनुभव से ऐसी संवेदनाएँ पैदा हुई जो मिली-जुली थीं। इसलिए शिल्प के ढाँचे को भी नवीन रूप देना पडत्रा । कहानी के कथानक की संवेदनशीलता, चित्रकला के रंग रेखाओं की सूक्ष्मता और सांकेतिकता तथा संस्मरण के स्मृति तत्त्व के मिश्रण से रेखाचित्र का स्वरूप निर्मित हुआ। रेखाचित्र गद्य की एक नवीन विधा है। अपनी व्यापक संवेदनशीलता और सुन्दर कलात्मक शैली के कारण आज हिन्दी की समस्त आधुनिक विधाओं में रेखाचित्र ने अपना एक निश्चित और विशिष्ट स्थान बना लिया है।

          रेखाचित्र की स्मृति में पीड़ा का बोध होता है। इस पीड़ा में बिछुड़ने की संवेदना होती है। रेखाचित्रकार जिसका वर्णन कर रहा होता है। उससे अलग होने की पीड़ा और दर्द ही उसे रेखाचित्र निर्मित करने को प्रेरित करता है। श्रेष्ठ रेखाचित्रकार की कृतियों को पढ़ने पर यह अहसास और भी तीव्र हो जाता है। महादेवी ने अपने रेखाचित्र के संग्रह का नाम ही ‘अतीत के चलचित्र’ रखा है। इसमें अतीत के प्रति सम्मोहन है, उससे अलग होने की घनी पीड़ा भी है। वस्तुतः रेखाचित्र की साहित्यिक विधा के रूप में चर्चा ही महादेवी की रचनाओं से आरंभ होती है। समाज में निम्नस्तर पर रहने वाले लोगों के प्रति महोदवी में करुणा और सहानुभूति है। लेखिका ने जिन पात्रों को अपने रेखाचित्र में स्थान दिया है उन सभी के जीवन में कुछ न कुछ अभाव है। यह अभाव उन पात्रों के प्रति सहानुभूति को जन्म देते हैं। महादेवी के रेखाचित्रों में ‘अतीत के चलचित्र’ (1941) और ‘स्मृति की रेखाएँ’ (1947) उनकी प्रतिनिधि कृतियाँ हैं। महादेवी के पूर्व के रेखाचित्रकारों में श्रीराम शर्मा की कृति ‘बोलती प्रतिमा’ (1937), ‘जंगल के जीव’ (1947) आदि के नाम भी उल्लेखनीय है। महादेवी के बाद रेखाचित्र लेखकों में रामवृक्ष बेनीपुरी का स्थान महत्त्वपूर्ण है। बेनीपुरी का ‘लालतारा’ और ‘माटी की मूरतें’ प्रसिद्ध रेखाचित्र हैं। लेखक ने ग्रामीण परिवेश को पात्रों के माध्यम से रेखाचित्र में साकार कर दिया है। अपनी धरती के लोगों के प्रति उनमें स्वाभाविक और सच्चा स्नेह झलकता है। सामान्य जन की जिंदगी के प्रति सम्मान और आत्मीयता का भाव लेखक में भरा हुआ है। प्रकाशचन्द्र गुप्त का ‘रेखाचित्र’ भी रेखाचित्रों में उल्लेखनीय है। राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का ‘टूटा तारा’ रेखाचित्र का बेजोड़ उदाहरण है। उनकी शैली में जमत्कारिक शक्ति है। शिवपूजन सहाय के रेखाचित्र ‘वे दिन वे लोग’ व्यंग्य प्रधान रेखाचित्र के उदाहरण हैं। देवेन्द्र सत्यार्थी की ‘रेखाएँ बोल उठी’ रेखाचित्र विधा की उल्लेखनीय रचना है। विष्णु प्रभाकर के ‘कुछ शब्द कुछ रेखाएँ सामाजिक विसंगति को उभारने वाले रेखाचित्र है।

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