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मॉडल प्रश्न उत्तर, हिन्दी कविता सेमेस्टर-2, इकाई-4 घनानंद-2

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निम्नलिखित मॉडल प्रश्नोत्तर बी.ए.(ऑनर्स) हिन्दी के सेमेस्टर-2 के पेपर हिन्दी कविता: सगुण भक्तिकाव्य एवं रीतिकालीन काव्य के हैं।

इकाई-4: घनानंद

प्रश्न-2. ‘प्रेम की पीर’ के कवि घनानंद। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- रीतिमुक्त काव्यधारा में घनानंद का स्थान सर्वोच्च है। वे हिन्दी-साहित्य में ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में स्थापित है। इन्होंने लगभग 39 रचनाएँ लिखी जिनमें ‘सुजानहित’, ‘ब्रज-विलास’, ‘विरह लीला’ प्रधान है।         

यहाँ चर्चा का विषय यह है कि प्रेम व शृंगार पर तो सभी रीतिकालीन कवियों ने रचनाएँ की हैं, किन्तु घनानंद को ‘प्रेम की पीर’ का कवि क्यों कहा जाता है। इस संबंध में यदि उनके शृंगार वर्णन की विशिष्टताओं पर गौर किया जाए तो निश्चित ही वे ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में दिखाई पड़ते हैं। उपरोक्त चर्चा के संदर्भ में पहला प्रमाण यह है कि घनांनद मूलतः वियोग के कवि हैं। उन्होंने अपने साहित्य में बिहारी आदि की तरह संयोग व मिलन के चित्र नहीं खींचे है बल्कि प्रेम की पीड़ा को व्यक्त किया है। शुक्ल लिखते हैं कि “ये वियोग शृंगार के मुक्तक कवि है।” इसी प्रकार, यह भी कहा जा सकता है कि इनका साहित्य स्वानुभूति का साहित्य है न कि सहानुभूति का। अपनी प्रेमिका सुजान के विरह में कविताएँ रचने वाले घनानंद के बारे में रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी लिखते हैं- “दूसरों के लिये किराए पर आँसू बहाने वालों के बीच यह एक ऐसा कवि है जो सचमुच अपनी पीड़ा में रो रहा है। ‘प्रेम की पीर’ का कवि कहलाने के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि इनका प्रेम वर्णन वैधानिकता, अति-भावुकता व अपने साथी के प्रति एकनिष्ठता से युक्त है-

“अति सूधो सनेह को मारग है
जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।”         

घनानन्द के यहाँ विरह की पीड़ा इतनी तीव्र है कि यह प्रतीक रूप में उनके साहित्य में सर्वत्र दिखाई देती है। सुजान के प्रति जो लौकिक प्रेम था, बाद में वही कृष्ण-राधा भक्ति के प्रसंग में भी सुजान के विरह को व्यक्त करते रहे-

“ऐसी रूप अगाधे राधे, राधे, राधे, राधे तेरी मिलिवे को ब्रजमोहन, बहुत जतन है साधे।”

इस प्रकार विरह की गहरी अनुभूति, वैयक्तिकता एकनिष्ठता तीव्र भावुकता व स्वानुभूति जैसे तत्त्व घनानंद को ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में स्थापित करते हैं।

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