हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

भूषण कवित्त संख्या: 409, 411, 412

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(409)

गरुड को दावा जैसे नाग के समूह पर दावा नागजूह पर सिंहसिरताज को।
दावा पुरहूत को पहारन के कुल पर दावा सबै पच्छिन के गोल पर बाज को।
भूषण अखंड अखंड महिमंडल में तम पर दावा राबिकिरनसमाज को
पूरब पछाँह देस दच्छिन तें उत्तर लौं जहाँ पातसाही तहाँ सिवराज को।।409।।

(411)

साजि चतुरंग-सैन अंग में उमंग धारि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद-विहद नगारन के नदीनद मद गैबरन के रलत है।
ऐलफ़ैल खैलभैल खलक में गैलगैल गजन की ठैलपैल सैल उसलत है।
तर सो तरनि धूरिधारा में लगत जिमि थारा पर पारा पारावार यों हलत है।।411।।

(412)

बाने फहराने घहराने घंटा गजन के नाहीं ठहराने राचराने देसदेस के।
नग भहराने ग्राम नगर पराने सुनि बाजत निसाने सिवराजजू नरेस के।
हाथिन के हौदा उकसाने कुम्भ कुंजर के भौन के भजाने अलि छूटे लट केस के।
दल के दरारन तें कमठ करारे फूटे, फेरा के से पात बिहराने फन सेस के।।412।।

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