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भाषा सर्वेक्षण : स्वरूप और प्रविधि

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सर्वेक्षण को अंग्रेजी में Survey कहा जाता है। सर्वेक्षण से तात्पर्य है किसी विषय के सही तथ्यों की जानकारी प्राप्त करके पूरी जांच पड़ताल के साथ निरीक्षण करके किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की क्रिया । उदाहरण के लिए हमारे देश में पोलियो उन्मूलन अभियान चल रहा है। पोलियो की दवा कितने बच्चों ने पी, कितने बच्चे पोलियो से ग्रस्त हैं उन्हें कब-कब पोलियो की दवा, कितने अंतराल के बाद पिलाई गई आदि के संबंध में जितनी जानकारी एकत्र करनी है उसके बाद उस रिपोर्ट का जो निरीक्षण किया जाता है। उसे सर्वेक्षण कहते हैं। परन्तु यहाँ हम भाषा सर्वेक्षण की बात कर रहे हैं तो हमें यह देखना होगा कि किसी भाषा अथवा किसी क्षेत्र विशेष की भाषा के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए जब तथ्यों को एकत्र कर उनका निरीक्षण किया जाए तब वह भाषा सर्वेक्षण कहलाता है।

भारतीय भाषा सर्वेक्षण का इतिहास

भारतीय भाषा सर्वेक्षण के इतिहास के विषय में डॉ. राजमणि शर्मा का कहना है कि भारतवर्ष में सर्वप्रथम इस कार्य को विलियम जोन्स की प्रेरणा से 1816 ई. में डब्ल्यू कैरे ने जे. मार्शमैन, डब्लू वार्ड की सहायता से सम्पन्न किया। जिसमें तैंतीस भारतीय भाषाओं के उपनमूने थे। द्रविड़ भाषाओं को अलग वर्ग में रखने की ओर बी. एच. हागसन ने ध्यान आकर्षित किया। सन् 1856 ई. में काल्डवेल ने इन भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया । ‘मुण्डा’ भाषाओं को समुदाय के रूप में प्रस्तुत कर नामकरण का श्रेय मैक्समूलर को है। भाषायी उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सर्वेक्षणों का सूत्रपात सर टामस एरस्किन पैरी ने किया। इन्होंने भारतीय भाषाओं को उत्तरी और दक्षिणी दो वर्गों में बांटकर उनके भौगोलिक विवरण प्रस्तुत किये। इन्होंने एक मानचित्र भी दिया। भौगोलिक के आधार पर यह पहला प्रयास था।

भारतवर्ष के प्रारम्भिक कार्यों में बीम्स, ग्रियर्सन ब्लाक एवं हार्नले के शोधों का महत्व है। द्रविड़ परिवार की ‘तमिल’ में भाषा सर्वेक्षण की दृष्टि से सभी क्षेत्रों की बोलियों पर कार्य हुआ। राम सुब्बैया ने निम्न पेराक (मलाया) की तमिल बोलियों का अध्ययन किया। डॉ. सुब्रह्मण्यम के निर्देशन में केरल विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान के तत्वावधान में ‘बोली सर्वेक्षण योजना’ को चला गया। इस कार्य का आधार भौगोलिक एवं जानीय दोनों था। यह पहला कार्य है जिसमें ‘एटलस’ का निर्माण किया गया।

कन्नड़ तथा तेलुगु बोलियों पर कार्य किया गया । तेलुगु भाषा के सर्वेक्षण का कार्य प्रो. भाद्रिराज कृष्णमूर्ति के निर्देशन में 1962 ई. में प्रकाशित हुआ था । भाषा – भूगोल के सिद्धान्त पर बड़ी निपुणता से सुप्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. कृष्णमूर्ति ने व्यापक सर्वेक्षण के आधार पुष्ट किए। यह कार्य ‘ए सर्वे ऑफ तेलुगु डायलैक्ट वोकेबुलरी’ शीर्षक से आन्ध्रप्रदेश साहित्य अकादमी से प्रकाशित हुआ जिसमें तैंतीस मानचित्र हैं। 28 मानचित्रों के आधार पर पांच मानचित्र समभाषांश रेखाओं के हैं।

डॉ. घटके ने ‘मराठी बोलियों के सर्वेक्षण के अन्तर्गत कई बोलियों के अध्ययन को सम्पादित किया। गुजरात की बोलियों पर हुए कार्यों को सम्बन्ध में प्रो. दबे, के. का. शास्त्री, भयाणी तथा डॉ. पंडित का कार्य उल्लेख है।

बंगाली में डॉ. चटर्जी, डॉ. सेन के अतिरिक्त एस.पी. चौधरी ने कार्य किया। उड़िया में भी छिटपुट कार्य हुए हैं। पंजाबी का भाषिक एटलस डॉ. गिल के निर्देशन में तैयार हुआ। बोली विज्ञान की दृष्टि से डॉ. बाहरी एवं बहल के कार्य उल्लेख है। डॉ. विश्वनाथ प्रसाद के निर्देशन में सम्पन्न सिंहभूम जिले के जलभूम और मसभूम सब डिबीजनों का सर्वेक्षण भी उल्लेख है।
किसी भी भाषा का सर्वेक्षण करना कोई सरल कार्य नहीं है। एक ही क्षेत्र में कई भाषा-भाषी रहते हैं। उन भाषा भाषियों के बीच में से ही हमें किसी भाषा विशेष अथवा क्षेत्र विशेष की भाषा का सर्वेक्षण करना होता है। एक ही क्षेत्र में कई भाषा समाज के लोग रहते हैं पहले हमें उन भाषायी समाज को अलग-अलग करना पड़ता है। ये प्रक्रिया इस प्रकार चलती हैं।

  • सर्वप्रथम उस क्षेत्र विशेष का चुनाव करना जिसका सर्वेक्षण किय जाना हो।
  • उस समूह का चुनाव करना जिसका सर्वेक्षण करना है।
  • क्षेत्र के चुनाव के पश्चात् उस क्षेत्र में कितने भाषायी समाज के लोग रहते हैं उनका चुनाव करना।
  • उन भाषायी समाज के भाषायी नमूनों का संग्रहण करना, यह संग्रह मौखिक अथवा लिखित दोनों रूपों में किया जा सकता है।
  • नमूनों के संग्रहण के पश्चात् उनका विश्लेषण किया जाता है।
  • विश्लेषण के पश्चात् निकाले गए तथ्यों के आधार पर ही निष्कर्ष दिया जाता है।

इस प्रकार यह प्रक्रिया चलती है

भाषा सर्वेक्षण की प्रविधि

गुणात्मक प्रविधि (Qualitative Method) — 1- जैसा कि इस विधि के नाम से ही ज्ञात होता है गुणात्मक अर्थात् इस सर्वेक्षण विधि के माध्यम से सर्वेक्षण करते सर्वेक्षण कर्त्ता भाषा का सर्वेक्षण करते समय पैदा होने वाले जटिल हुए प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास करता है। हम सभी जानते हैं कि एक निश्चित सयम के पश्चात् भाषा का स्वरूप बदलता रहता है परन्तु इस बदलाव के पीछे क्या कारण है कि एक समाज की सोच, जीवनशैली, रहन-सहन में के बाद उसकी भाषा में भी बदलाव आने लगता है, दो भाषाओं या उनके भाषायी बदलाव आने समाज में तुलनात्मक अध्ययन किस प्रकार किया जाए किसी भाषा में अन्य भाषा की तुलना में क्या विशेषताएं अधिक दिखलाई पड़ती है आदि प्रश्नों का उत्तर तलाशने की कोशिश इस प्रविधि द्वारा की जाती है। परन्तु इस विधि की अपनी एक सीमा भी है वह यह है कि यह प्रविधि बड़ी जानकारियां प्राप्त करने में सफल नहीं है अर्थात् किसी वृहद क्षेत्र की भाषा संबंधी जानकारी प्राप्त करने यह इतनी कारगार नहीं होती जितनी मात्रात्मक प्रविधि होती है।
गुणात्मक प्रविधि का उदाहरण उदाहरण के लिए यदि हमें आज की साहित्यिक हिंदी भाषा की तुलना हिंदी के आरंभिक साहित्यिक रूप से करनी तो हमें गुणात्मक प्रविधि की सहायता लेनी होगी।

मात्रात्मक प्रविधि

मात्रात्मक विधि वास्तव में गुणात्मक विधि का विस्तार ही है। अध्ययन क्षेत्र बड़ा होने पर, आंकड़ों को तथ्यों के साथ एकत्र करने के लिए इस अधि का प्रयोग किया जाता है। मात्रा का अर्थ ही है कि हम उसे गिन सके। मात्रात्मक प्रविधि का उदाहरण- उदाहरण के लिए यदि हमें किसी क्षेत्र विशेष के लोगों की मातृभाषा की जानकारी प्राप्त करनी हो तो हम मात्रात्मक प्रविधि के माध्यम से ही उनकी भाषा का संग्रहण और विश्लेषण कर सकते हैं।

यहाँ यह ध्यान रखने योग्य है कि गुणात्मक और मात्रात्मक प्रविधि एक-दूसरे की विरोधी न होकर बल्कि एक दूसरे की पूरक है।

सर्वेक्षण कार्य के साथ तालिका

डॉ. राजमणि शर्मा ने सर्वेक्षण कार्य के साथ प्रस्तुत की जाने वाली तालिका इस प्रकार बताई है।
सर्वेक्षक-

(1) नाम
(2) व्यवसाय
(3) तिथि
(4) उद्देश्य

सूचक-

(1) नाम
(2) उपनाम
(3) लिंग
(4) अवस्था
(5) योग्यता
(6) राष्ट्र, जाति, उपजाति
(7) धर्म, देश, सामाजिक स्तर
( 8 ) स्थान
(9) भाषा का नाम
(10) पड़ोसी भाषाओं के नाम
(11) सूचक द्वारा प्रयुक्त अन्य भाषाएं।

भाषा सर्वेक्षण के उद्देश्य

  • किसी क्षेत्र विशेष की जानकारी प्राप्त करना ।
  • किसी भाषा के भाषायी समाज की जानकारी प्राप्त करना।
  • किसी भाषायी समाज में बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या प्राप्त करना।
  • भाषा में पैदा होने वाले बदलाव की जानकारी प्राप्त करना ।
  • एक निश्चित सीमा के भीतर दो भाषाओं में पैदा होने वाले अंतर को देखना।
  • एक ही समाज में रहने वाले लोगों का सम्प्रेषण माध्यम / या उसकी स्थिति देखना
  • कोड – मिश्रण, द्विभाषिकता, बहुभाषिकता के स्तर पर को जांचना
  • समाप्त होने वाली भाषाओं की गणना करना।
  • पिजिन और क्रियोल भाषा के पैदा होने के कारणों की जांच करना।
  • भाषा और बोलियों के सूक्ष्म विभेदों को ज्ञात करना ।
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