हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

बिहारी के दोहे

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दोहे

मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय॥

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय,
वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये।

थोड़े ही गुन रीझते बिसराई वह बानि।
तुमहूँ कान्ह मनौ भए आज-काल्हि के दानि॥

कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात॥

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