प्रारूपण: सामान्य परिचय
प्रस्तावना
अपने देश के संविधान में हिंदी को राजभाषा पद की अधिकारिणी घोषित कर दिये जाने पर हिंदी भाषा के प्रयोग एवं व्यवहार में वृद्धि होना निश्चित था। अतः हिंदी का शब्द-सागर अपेक्षित पारिभाषिक हिंदी शब्दों की लहरों से भरने लगा। ‘प्रारूपण’ भी इसी प्रकरण का हिंदी में गढ़ा एक पारिभाषिक शब्द है जो अंग्रेजी के ड्राफ्टिंग शब्द के लिए हिंदी में ग्रहण किया गया है। प्रारूपण का व्यवहारिक पक्ष इस बात को स्पष्ट करता है कि यह अपने में विभिन्न कार्यालयों के लिए किए जाने वाले सभी प्रकार के कार्यों का लिपिबद्ध लेखा जोखा है जो दफ्तरी टिप्पण (ऑफिशियल नोटिंग) का अगला सोपान है। दफ्तरी कामकाज के लिए एब बंधी-बंधाई शैली से परिचित होना नितांत आवश्यक है। इसीलिए सरकारी या गैरसरकारी विभिन्न कार्यालयों के कामकाज को विधिवत् पूरा करने में इसका बहुत महत्त्व होता है।
प्रारूपण : अर्थ एवं स्वरूप
‘प्रारूपण’ को परिभाषित करने से पूर्व उसके स्वरूप पर विचार कर लेने से प्रारूपण की परिभाषा करने व समझने में सुविधा होगी। आइए, सर्वप्रथम प्रारूपण के स्वरूप को समझ लिया जाए।
‘प्रारूपण’ एक पारिभाषिक शब्द है जो अंग्रेजी के ड्राफ्टिग शब्द के लिए हिंदी में ग्रहण किया गया है। वैसे अंग्रेजी के ड्राफ्टिंग के लिए ‘प्रलेखन’, ‘आलेखन’, ‘मसौदा’, (मसविदा) शब्द भी प्रयोग में लाये जा रहे हैं। किंतु प्रारूप (ड्राफ्ट) से तात्पर्य होता है किसी भी वस्तु, सामग्री, पत्र ग्रहण किया गया वा लेख का प्रारंभिक रूप यानी खाका। अतएव ‘ड्राफ्ट’ के लिए ‘प्रारूप’ और ‘ड्राफ्टिंग’ के लिए ‘प्रारूपण’ सर्वथा उपयुक्त एवं युक्तियुक्त लगता है।
आप जानते हैं कि सरकारी तथा गैरसरकारी कार्यालयों से किए जाने वाले प्रत्येक कार्य का रिकार्ड रखना अत्यंत आवश्यक होता है। इतना ही नहीं किसी निर्णय अथवा आदेश एवं ससूचना को जब क्रियान्वित किया जाता है तो एक लिखित स्वीकृति सक्षम अधिकारी से प्राप्त की जाती है। इसे टिप्पण (नोटिंग) कहते है। यह दफ्तरी कामकाज की पहली सीढ़ी है। उदाहरण के लिए यदि किसी कार्यालय में मेज-कुर्सियाँ इस्तेमाल में आते-जाते टूट गई हैं तो संबंध सहायक इस पर एक टिप्पण लिखकर सक्षम अधिकारी को सूचना देते हुए नई खरीदने की या टूट-फूट की मरम्मत करवाने की आज्ञा लेगा। नई खरीदने की स्थिति में निविदा (टेंडर) मँगवाने के लिए भी स्वीकृति लेगा। यहाँ तक की प्रक्रिया तो टिप्पण के क्षेत्र में आयेगी। किंतु इसके बाद निविदा शब्दावली प्रेसों में छपने के लिए भेजने और फिर जिसकी निविदा स्वीकृत हुई है उसे अधिकारी द्वारा सामग्री भेजने के लिए आदेश देने के हेतु जो भी लिखित पत्राचार होगा उसका प्रारूप तैयार करने की प्रक्रिया प्रारूपण में आएगी। इस तरह प्रशासनिक कामकाज को निपटाने के लिए जो दफ्तरी कार्रवाई पत्र-व्यवहार के रूप में किसी संस्था अथवा व्यक्ति विशेष से की जायेगी, उसका प्रारंभिक रूप तैयार कर अधिकृत प्रशासक से स्वीकृत करना लागू अथवा कार्य सम्पन्न करना प्रारूपण के व्यवहारिक स्वरूप का अंग माना जाता है।
इस प्रकार आप उपर्युक्त विवेचन से समझ गये होंगे कि प्रारूपण अपने में विभिन्न दफ्तरों में किए जाने वाले सभी प्रकार के कार्यों का लिपिबद्ध लेखाजोखा है जो दफ्तरी टिप्पण (ऑफिशियल नोटिंग) का अगला सोपान है। आइए अब प्रारूप को एक परिभाषा की मर्यादा में बाँध लिया जाए।
सरकारी अथवा गैर-सरकारी कार्यालयों में कामकाज को निपटाने के लिए किए जाने वाले पत्र-व्यवहार का नियम एवं विधिपूर्वक लिपिबद्ध प्रारंभिक रूप तैयार करना प्रारूपण कहलाता है।
प्रारूपण के प्रमुख तत्त्व
(1) शुद्धता- प्रारूपण में शुद्धता से तातपर्य है अंक- आंकड़ों, संदर्भ, दिनांक क्रमांक आदि का ठीक-ठीक होना। इनकी त्रुटि से कार्यालय में कोई भी संचिका (फाइल) यथास्थान और यथासमय नहीं पहुँचेगी और कार्य में गतिरोध उत्पन्न हो जाएगा। अतः शुद्धता प्रारूपण का प्रथम एवं मुख्य तत्त्व है।
(2) स्पष्टता– प्रारूपण का दूसरा तत्त्व है स्पष्टता। पहले स्थान पर तो विचारणीय प्रकरण का विषय स्वयं प्रारूपण के मस्तिष्क में स्पष्ट होना चाहिए, दूसरे स्थान पर उसके कथ्य की रूपरेखा अपने में इतनी पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए कि उसमें किसी प्रकार की भ्रान्ति की गुंजाइश न रह जाए।
(3) संक्षिप्तता– यहाँ संक्षिप्तता से तात्पर्य है विषय से न भटकना । संक्षिप्त किंतु विषयनिष्ठ प्रारूप को पढ़कर उस पर वंछित दफ्तरी कार्यवाही शीघ्र की जा सकती है। जबकि प्रायः विस्तृत प्रारूप समय सापेक्ष होने के कारण टलता रहता है।
(4) परिनिष्ठित भाषा – प्रारूप में भाषा के परिनिष्ठित होने से तात्पर्य है भाषा का संयत, शुद्धा सरल एवं विनीत प्रयोग, पुनरूक्तिरहित तथा पूर्वाग्रहमुक्त होना भाषा के परिनिष्ठित रूप में ही आता है।
(5) परंपरागत पद्धति का अनुकरण- सरकारी पत्र-व्यवहार में सर्वत्र एक नपी-तुली परंपरा पद्धति का अनुकरण करना ही अपेक्षित होता है इसमें शैलीगत विशेषता के लिए कोई सीन नहीं रहता । दफ्तरी पत्राचार एक दीर्घ परंपरा से विकसित होता आ रहा है, उसमें अकारण परिवर्तन करना वांछनीय नहीं होता।
प्रारूपण के गुण एवं विशेषताएँ
(1) आदेश की भाषा का शब्दशः प्रयोग- प्रारूपण में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उच्चाधिकारी के आदेश की भाषा शब्दशः ही प्रयुक्त हो । विशेष रूप से विधि और वित्त के प्रकरणों में तो आदेश का अक्षरशः प्रयोग ही अभीष्ट होता है। आदेश की भाषा का ज्यों का त्यों प्रारूपण में प्रयोग करना ही इसकी एक विशेषता है।
(2) तिथि-सीमा-निर्धारण – यदि किसी प्रकरण में राज्य सरकारों, मंत्रालयों तथा अन्य कार्यालयों से सूचनादि लेना आवश्यक हो तो उत्तर देने की तिथि आदि निर्धारित कर देना ही प्रारूपण की दूसरी विशेषता मानी जाती है।
(3) सरकारी आदेशों का प्रमाणिकरण- कुछ आदेश राष्ट्रपति या सरकार के नाम से जारी करने पड़ते हैं। इसके लिए विधान यह है कि राष्ट्रपति के नाम से जारी किये जाने वाले किसी भी लिखित तथ्य या आदेश-पत्र पर वही हस्ताक्षर कर सकता है जो इस कार्य के निर्मित संविधान के अनुसार अधिकृत हो। अन्यथा प्रारूपण में विधिा एवं तकनीक की दृष्टि से दोष निकाला जा सकता है। इस विधान में परिवर्तन भी होते रहते हैं जिसके लिए सतर्क रहना आवश्यक होता है।
(4) क्रमबद्धता – प्रारूपण में क्रमबद्धता से तात्पर्य है सभी चर्चित संदर्भों एवं पत्रों को एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत करना। इसके अभाव में विचाराधीन पत्राचार की फाइलें तथा कागज-पत्र ढूँढने में समय का अपव्यय होता है जो कि किसी भी दफ्तरी कार्यवाही में विलंब का तथा आलोचना का कारण बनता है।
प्रारूपण के सिद्धांत-पक्ष अर्थात् उसके स्वरूप, परिभाषा, तत्त्व, गुण एवं विशेषताओं का विवेचन कर लेने के उपरांत अब उसके पत्र – व्यवहार अर्थात् लेखन-प्रक्रिया एवं विधिा पर प्रकाश डालना अभीष्ट होगा।
प्रारूपण की प्रक्रिया एवं लेखन-विधि के मुख्य अंग
निश्चित फार्म – सामान्यतया प्रारूपण तैयार करने के लिए कार्यालयों में एक फार्म निश्चित रहता है। इसके • अभाव में सादे कागज पर दोनों ओर परिवर्तन परिवर्धन के लिए हाशिया छोड़कर प्रारूप लिखना अथवा टंकित करना चाहिए।
अनुच्छेदों में विभाजन – प्रारूप प्रायः तीन भागों में बाँटा जा सकता है। इस निश्चित तीन अनुच्छेदों में इसका विभाजन किया जा सकता है। प्रथम अनुच्छेद में प्रकरण से संबंद्ध पहले से चला आ रहा पत्र-व्यवहार संक्षेप में प्रस्तुत कर दिया जाता है। दूसरे, अनुच्छेद में मामले का मुख्य कथ्य निहित होता है और तीसरे अनुच्छेद में निष्कर्ष, सुझाव व करणीय बातें लिख दी जाती हैं। बड़े प्रकरणों में अनुच्छेद, संख्याबद्ध एवं तीन से अधिक भी किये जा सकते हैं।
संलग्न पत्रादि का स्पष्ट उल्लेख- प्रारूप की स्वच्छ प्रतिलिपि के साथ नत्थी किये जाने वाले पत्रादि का क्रमांक-दिनांक आदि स्पष्ट रूप से उल्लिखित होना चाहिए ताकि कार्रवाई के लिए उनका तत्काल संदर्भ समान रहे।
पृष्ठांकन ( एण्डोर्समेंट) – पृष्ठांकित होकर जिस-जिस के पास प्रतिलिपियाँ भेजी जानी हो उनका तथा प्रतिलिपियों की वांछित संख्या का स्पष्ट उल्लेख प्रारूपण में अनिवार्य रूप से कर देना चाहिए।
पर्चियाँ लगाना- लेखन-विधि का एक आवश्यक अंग है- प्रारूप के ऊपर पर्चियाँ लगाना। प्रारूप तैयार हो जाने पर वह जिस निमित्त अधिकारी के सम्मुख जा रहा है उसकी पर्ची लगाना आवश्यक होता है, जैस ‘अनुमोदन हेतु’, ‘स्वीकृति हेतु’ आदि। इसके अतिरिक्त प्रकरण में यदि तत्काल कोई कार्यवाही रिक्त अपेक्षित है तो ऐसी दशा में ‘तत्काल’, ‘अग्रता’ आदि की भी पर्चियाँ लगाना उचित होता है।
उपर्युक्त अंगों को ध्यान में रखकर प्रारूपण तैयार हो जाने पर प्रारूपकार को अपने प्रयमोक्षर (इनीशियल) उक्त अधिकारी के पद के नीचे अंकित कर देने चाहिए जिसके द्वारा वह प्रारूप अनु अथवा स्वीकृत तथा अंत में हस्ताक्षर होने के लिए भेजा जाना है।
प्रारूपण की लेखन-विधि के प्रमुख अंगों से परिचित हो जाने के उपरान्त रूपण के तत्त्वों में वर्णित परंपरागत पद्धति को उसके अंगों के माध्यम से स्पष्ट करना ही उचित होगा क्योंकि चिट्ठी-पत्री इन्हीं बंधी-बंधाई रेखाओं पर ही आद्धृत रहती है। स्पष्ट है कि इन आधारभूत परंपरागत सरकारी पत्राचार के अंगों को समझे बिना प्रारूपण कर्य सम्भव ही नहीं हो पायेगा।
दफ्तरी पत्राचार के सामान्य अंग
आधिकारिक (ऑफिशियल) पत्रों का प्रारूप जिन अंगों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है उन्हें इस प्रकार गिनाया जा सकता है-
- पत्र – क्रमांक
- विभाग का नाम एवं पता
- पत्र प्रेषक का नाम अथवा पद एवं पता
- पत्र प्राप्तकर्ता का नाम अथवा पद एवं पता
- प्रेषक के कार्यालय का स्थान तथा दिनाँक
- विषय
- संबोधन
- मूल कथ्य
- स्वनिर्देश
- हस्ताक्षरकर्ता के नाम व पद का उल्लेख
- संलग्न पत्र – सूची
- पृष्ठांकन
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