केशवदास रामचंद्रिका व्याख्या pdf

प्रस्तुत पद संख्या 135-142 में राम नाम महिमा का बखान सगुण भक्ति काव्य परंपरा के कवि केशवदास द्वारा किया गया है। निम्नलिखित पद उनके द्वारा रचित रामचंद्रिका ग्रंथ से लिए गए हैं जो कि राम काव्य परंपरा की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। (केशवदास रामचंद्रिका व्याख्या pdf)
जिनके पुरिषा भुव गंगहि ल्याये।
नगरी शुभ स्वर्ग सदेह सिधाये।।
जिनके सुत पाहन ते तिय कीनी।
हर को धनुभंग भ्रमें पुर तीनी।।135।।
बिन आपु अदेव अनेक सँहारे।
सब काल पुरंदर के रखवारे।
जिनकी महिमाहि अनंत न पायो।
हम को बपुरा यरा वेदनि गायो।।136।।
बिनती करिए जन जो जिय लेखो।
दुख देख्यो ज्यों कल्हि त्यों आजहु देखो।
यह जानि हिये ढिठई मुख माषी।।
हम हैं चरणोदक के अभिलाषी।।137।।
तामरस छंद
जब ऋषिराज बिनय करि लीनों।
सुनि सब के करुणा रस भीनों।
दशरथ राय यहै जिय जानी।
यह वह एक भई रजधानी।।138।।
दशरथ (दोहा) हमको तुम से नृपति को, दासी दुर्लभ राज।
पुनि तुम दीनी कन्यका त्रिभुवन की सिरताज।।139।।
वसिष्ठ- विजय छंद
एक सुखी यहि लोक बिलोकिए हैं वहि लोक निरै (निरय, नरक) पगु धारी।
एक इहाँ दुख देखत केशव होत वहाँ सुरलोक विहारी।
एक इहाँऊ उहाँ अति दीन सो देत दुहूँ दिशि के जन गारी।
एकहि भाँति सदा सब लोकनि है प्रभुता मिथिलेश तिहारी।।140।।
जाबालि-
ज्यों मणि में अति ज्योति हुती रवि से कुछ और महाछबि छायी।
चंद्रहि वंदत हैं सब केशव ईश ते वंदनता (वंदनीयता, वंदन किए जाने की योग्यता) अति पायी।।
भागीरथी हुतिय अति पावन बावन ते अति पावनतायी।
त्यों निमिवंश बड़ोई हुतो भइ सीय सँयोग बड़ोये बड़ाई।।141।।
पूजि राज ऋषि ब्रह्म ऋषि, दुंदुभि दीन्हि बजाइ।
जनक कनक-मंदिर गये, गुरु समेत सुख पाइ।।142।। (दोहा)
केशवदास रामचंद्रिका व्याख्या pdf