कार्यालयी हिन्दी
प्रस्तावना
‘कार्यालयी हिंदी’ का अभिप्राय है उस हिंदी से जिसका प्रयोग किसी सरकारी कार्यालय के प्रशासनिक काम-काज के दौरान किया जाता है और इसके अंतर्गत प्रशासन के विभिन्न विभागों से संबंधित शब्दावली का अधिक प्रयोग होता है। यह सामान्य हिंदी, साहित्यिक हिंदी या व्यावसायिक हिंदी से बिल्कुल भिन्न होती है। इसे कामकाजी हिंदी भी कहा जाता है।
कथ्य पाठ
मनुष्य जिस समाज में रहता है स्वाभाविक तौर पर उस समाज के लोगों के साथ संवाद करने के लिए वह भाषा का प्रयोग करता है। संवाद का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम होने के कारण भाषाओं में परस्पर समन्वय और विषय के परिवर्तन दिखाई देते हैं। वैसे भी भाषाएँ एक जैसी नहीं रहती वे भी निरंतर अपना स्वरूप बदलती हैं। कभी किसी एक भाष में अनेक नए शब्दों से उसका विस्तार होता है तो कभी उस भाषा के अनेक शब्द प्रचलन में न रहने के कारण उस भाष बाहर हो जाते हैं। कभी किसी एक नए विषय के आगमन से उस विषय से सम्बद्ध नए शब्दों की स्वीकार्यता भाषा को विकास देती है तो कभी वैश्विक संबंधों के चलते नई वस्तुओं की वैश्विक उपयोगिता के कारण उन शब्दों का क्षेत्र सीमित नहीं रहता। इस तरह भाषा निरंतर यात्रा करती रहती है। यह यात्रा ही भाषा में परिवर्तन के कारण उसके महत्त्व को भी बढ़ाती है।
भाषा के संबंध में कहा जाता है कि हर कोस-कोस पर पानी और बानी अर्थात वाणी में बदलाव आता है। भारत जैसे देश में जहाँ विभिन्न भाषाओं और बोलियों के लोग निरंतर यात्राएँ करते हैं वहाँ एक क्षेत्र की भाषा का दूसरे क्षेत्र के साथ संपर्क और संबंध संवाद के कारण रहता ही है। किसी आलोचक का है कि ‘समाज और इसके सदस्यों के अस्तित्व और चरित्र के अनेक आयाम होते हैं और इन सभी आयामों के में भाषा की विशिष्ट भूमिका होती है।’ इन संदर्भ आयामों से आबद्ध होकर ही मनुष्य समाज की संस्कृति में भिन्नता के बावजूद एक समानता भी मिलती है। इस तरह से देखा जाए तो भाषा की समाज के लिए एक विशिष्ट भूमिका आरंभ से ही है।
जहाँ तक भारत जैसे राष्ट्र की बात की जाए तो यह निश्चित है कि भारत में बहुसंख्यक समाज हिंदी भाषा को जानता, बोलता है। संपर्क भाषा के रूप में भी हिंदी को ही भारत की भाषा स्वीकार किया जाता है। वैदिककालीन संस्कृत से निकली भारतीय भाषाओं में सबसे अधिक निकट संबंधता हिंदी के साथ है। जिस तरह से संस्कृत भाषा वैदिक काल से निरंतर परिवर्तित होते हुए आधुनिक युग में अपना स्वरूप बिल्कुल बदल चुकी है उसी तरह ‘हिंदी’ के उदय के साथ वर्षों की यात्रा के उपरांत हिंदी विभिन्न अनुशासनों की सहचरी की भूमिका निभाते हुए निरंतर विकसित होती रही है। उसका स्वरूप किसी एक अनुशासन में कुछ और होता है तो किसी अन्य अनुशासन में कुछ और वर्तमान समय में हिंदी समाज के समक्ष जिस रूप में है उसके अनेक स्वरूप हमें दिखाई देते हैं। उसके प्रयोजन के आधार पर उसके विभिन्न रूप इस प्रकार हैं-
- साहित्यिक हिन्दी
- सामान्य जन की हिंदी
- कार्यालयी हिंदी
- व्यावसायिक हिंदी
स्वाभाविक तौर पर ‘साहित्यिक हिंदी’ से अभिप्राय साहित्य की विभिन्न विधाओं में प्रयोग में ली जाने वाली सृजनात्मक भाषा से होता है जिसमें बिंब, प्रतीक, लक्षणात्मक व व्यंजनात्मक प्रयोग, आलंकारिकता आदि शिल्प के अनेक पक्ष समाहित होते हैं। इस हिंदी में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अर्थ-ग्रहण किये जा सकते हैं। वहीं सामान्य जन की हिंदी अनौपचारिकता से युक्त होती है और इसके अंतर्गत भाषिक संरचना के नियमों से कुछ छूट मिल जाती है।
वैसे तो ‘कार्यालयी हिंदी’ सामान्य रूप से वह हिंदी है जिसका प्रयोग किसी भी कार्यालय के दैनिक कामकाज में प्रयोग में लिया जाता है लेकिन व्यावसायिक कार्यालयों की हिंदी इससे भिन्न प्रकार की होती है। इसीलिए ‘कार्यालयी हिंदी’ को वर्तमान समय में सरकारी कार्यालयों में व्यवहार में ली जाने वाली हिंदी के रूप में ही जाना जाता है। इसका प्रयोग किसी सरकारी कार्यालय के प्रशासनिक काम-काज के दौरान किया जाता है और इसके अंतर्गत प्रशासन के विभिन्न विभागों से संबंधित शब्दावली का अधिक प्रयोग होता है। वहीं ‘व्यावसायिक हिंदी’ से अभिप्राय औद्योगिक या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में प्रयोग में ली जाने वाली हिंदी से हैं जिसके अंतर्गत वाणिज्यिक, पर्यटन, संस्कृति, जनसंचार आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं।
कार्यालयी हिंदी का अभिप्राय
सामान्य तौर पर विभिन्न कार्यालयों में कार्य करने वाले लोग जब हिंदी में उस कार्यालय का कार्य करते हैं तो उसे कार्यालयी हिंदी कहा जाना चाहिए। किन्तु यहाँ कार्यालयी हिंदी का अभिप्राय वह नहीं है। कार्यालयी हिंदी सरकारी कार्यालयों और उससे सम्बद्ध प्रतिष्ठानों में प्रयोग में ली जाने वाली हिंदी से है जिसे भारतीय संविधान में ‘राजभाषा’ के रूप में जाना जाता है। राज-काज की भाषा होने के कारण ही इसे राजभाषा शब्द से भी संबोधित किया जाता है। डॉ. उषा तिवारी का मानना है कि “सरकारी कामकाज में प्रयुक्त होने वाली भाषा को प्रशासनिक हिंदी या कार्यालयीन हिंदी कहा जाता है। हिंदी का वह स्वरूप जिसमें प्रशासन के काम में आने वाले शब्द, वाक्य अधिक प्रयोग में आते हों।” (कार्यालयी हिंदी एवं कार्यालयी अनुवाद तकनीक, पृष्ठ 82)
समाज का विस्तृत और व्यापक क्षेत्र होने के कारण उसमें विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं के लिए तथा व्यापार
करने हेतु कार्यालयों की उपस्थिति के क्षेत्र भी अनेक हैं इसलिए कार्यालय शब्द की व्यापकता के कारण यह भ्रम की
स्थिति उत्पन्न होती है कि प्रत्येक कार्यालय में प्रयोग में ली जाने वाली हिंदी ही कार्यालयी हिंदी होगी। लेकिन वास्तव में
ऐसा नहीं है । प्रचलन और प्रयोग की दृष्टि से कार्यालयी हिंदी सरकारी कार्यालयों में ‘राजभाषा हिंदी’ के रूप में प्रयुक्त भाषा से लिया जाता है। इसके अंतर्गत केंद्र सरकार, राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सभी कार्यालय सरकारी कार्यालयों में परिगणित होते हैं। उनमें प्रयोग में ली जाने वाले कामकाजी हिंदी को ही ‘कार्यालयी हिंदी’ कहा जाता है। क्योंकि संवैधानिक रूप से कार्यालयी हिंदी के लिए ‘राजभाषा हिंदी’ का प्रयोग किया जाता है। इसलिए
कार्यालयी हिंदी को समझने के लिए संविधान में राजभाषा संबंधी प्रावधानों को जानना आवश्यक है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के स्वाभिमान और उसकी गरिमा के अनुकूल हिंदी को 14 सितम्बर,
1949 को ‘राजभाषा’ के रूप स्वीकार कर लिया गया। उसी दौरान संविधान में यह प्रावधान भी सम्मिलित कर दिया गया कि अंग्रेज़ी पन्द्रह वर्षों तक हिंदी की सह-राजभाषा के रूप में काम करती रहेगी। लेकिन विभिन्न संशोधनों और आपसी असहमतियों के कारण सांवैधानिक रूप से हिंदी ‘राजभाषा’ होते हुए भी अंग्रेज़ी ही शासन-व्यवस्था की भाषा बनी हुई है।
कार्यालयी हिंदी का क्षेत्र
पूर्व में ही यह स्पष्ट किया जा चुका है कि ‘कार्यालयी हिंदी’ का अभिप्राय सरकारी कार्यालयों में प्रयोग में की जाने वाली हिंदी से है इसलिए भारत सरकार के किसी भी सरकारी कार्यालय में कार्य करने वाले कर्मचारी/अधिकारी वर्ग के लोग इस भाषा का प्रयोग कार्यालय संबंधी कार्य के दौरान कर सकते हैं। राजभाषा सम्बन्धी सांवैधानिक प्रावधानों में ‘कार्यालयी हिंदी’ के क्षेत्राधिकार के सम्बन्ध में राजभाषा नियम, 1976 में पूरी तरह से स्पष्ट किया गया है। इसके अनुसार- केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय, कार्यालय और उसके विभाग; केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त आयोग, समिति, प्राधिकरण, संस्थान या उसका कोई कार्यालय; केंद्र सरकार के स्वामित्व में या इसके नियंत्रणाधीन किसी निगम अथवा कम्पनी के कार्यालय; उपर्युक्त केंद्र सरकार के लिए निर्धारित कार्यालयों की तरह राज्य सरकारों के कार्यालय, संसद, विधान मंडल, न्यायालय, शिक्षा संस्थानों और सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों के प्रशासनिक खंड आदि । मुख्य रूप से इन क्षेत्रों को कार्यालयी हिंदी के क्षेत्रों के रूप में मान्यता प्राप्त है। लेकिन प्रशासन ने इस व्यवस्था को निर्धारित करते समय भारत के सभी राज्यों को क, ख व ग तीनों क्षेत्रों में विभाजित किया।
‘क’ क्षेत्र के अंतर्गत – बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह एवं दिल्ली संघ शासित प्रदेश।
‘ख’ क्षेत्र के अंतर्गत – गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब राज्य तथा अंडमान और – चंडीगढ़ संघ राज्य क्षेत्र।
‘ग’ क्षेत्र के अंतर्गत – ‘क’ तथा ‘ख’ क्षेत्र के राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के अतिरिक्त।
‘क’ वर्ग के अंतर्गत आने वाले उपर्युक्त राज्यों से अलग हुए उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ आदि राज्य अपने-अपने वर्गों के अंतर्गत ही बने हुए हैं। इन क्षेत्रों में ‘क’ वर्ग में आने वाले राज्यों में सरकारी काम काज की भाषा पूर्णतः हिंदी होगी। लेकिन यदि वे किसी अन्य वर्ग के राज्य या संघ शासित प्रदेशों से पत्र-व्यवहार करते हैं तो उनके अंग्रेजी पत्रों के साथ हिंदी अनुवाद भी अनिवार्य रूप से भेजा जाएगा। केन्द्र सरकार के सभी कार्यालय ‘ख’ क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कार्यालयों को आंशिक रूप से हिंदी में तथा आवश्यकतानुसार अंग्रेजी में भेजे गए पत्रों के अनुवाद हिंदी में भेजना अनिवार्य होगा।
‘ख’ क्षेत्र के किसी भी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र द्वारा किसी भी व्यक्ति या कार्यालय को हिंदी या अंग्रेजी में पत्र भेजे जा सकते हैं।
‘ग’ क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा भेजे जाने वाले सभी पत्र अंग्रेजी में होंगे। किन्तु ‘ग’ क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के कार्यालय अथवा केंद्र सरकार के कार्यालय से ‘क’ अथवा ‘ख’ क्षेत्र को भेजे जाने वाले पत्र हिंदी या अंग्रेज़ी किसी भी भाषा में हो सकते हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो केंद्र सरकार तथा ‘क’ क्षेत्र में आने वाले राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र के कार्यालयों में पूर्ण रूप से पत्र व्यवहार कार्यालयी हिंदी में किया जाना अनिवार्य है। किसी असाधारण स्थिति में ही हिंदी के स्थान पर अंग्रेज़ी पत्र-व्यवहार किया जा सकता है किन्तु उस अंग्रेज़ी पत्र के साथ उसका हिंदी अनुवाद भेजना भी अनिवार्य है। इसी तरह ‘ख’ तथा ‘ग’ क्षेत्रों के लिए उपर्युक्त निर्दिष्ट प्रावधानों के अनुसार कार्यालयी हिंदी का क्षेत्र निर्धारित किया गया है।
सामान्य तौर पर ‘क’ क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले जिला न्यायालय पूर्ण रूप से हिंदी में ही कार्य करने के लिए निर्दिष्ट हैं। शेष क्षेत्रों के जिला न्यायालय अपनी राज्यीय भाषाओं में कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में तथा उन न्यायालयों के कार्यालयों में सभी कार्य अंग्रेजी में ही किए जाने का प्रावधान है। विशिष्ट परिस्थितियों में उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय चाहे तो किसी भी वाद के लिए हिंदी में ‘वाद’ प्रस्तुत करने या बहस करने की अनुमति प्रदान कर सकता है। लेकिन इन न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय के अंग्रेज़ी रूप ही मान्य होंगे उनके हिंदी अनुवाद नहीं। इस प्रकार देखा जाए तो कार्यालयी हिंदी का क्षेत्र विशाल होते हुए भी विभिन्न उपबन्धों और नियमों द्वारा उसे सीमित किया गया है।
यह आश्चर्य की बात ही है कि संविधान में हिंदी को राजभाषा का स्थान तो दिया गया किन्तु वर्तमान दौर में हिंदी – पट्टी के क्षेत्रों में भी हिंदी राजभाषा के रूप में न तो सम्मान अर्जित कर सकी और न हीं लोगों में रुचि। ऐसे में हिंदीतर क्षेत्रों में उसे कार्यालय में प्रयोग में लिए लागू करना किस प्रकार संभव हो सकता है! लेकिन विगत कुछ वर्षों में तकनीकी के आगमन और सोशल मीडिया द्वारा हिंदी को मिलने वाली वैश्विक पहचान ने स्थितियों को बदल दिया है। इसीलिए पिछले कुछ वर्षों में राजभाषा के लिए ‘क’ क्षेत्र के राज्यों व संघ शासित प्रदेशों में हिंदी भाषा कार्यालय की भाषा के रूप में प्रयोग में ली जाने लगी है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि केंद्र की नीतियों में हिंदी के प्रचार-प्रसार की विभिन्न योजनाओं ने राज्यों को प्रभावित तो किया ही, केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होने के कारण उन नीतियों का क्रियान्वयन आसान हो गया। दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री अपने विदेशी दौरों में भी लगातार अपने राष्ट्र का मत हिंदी में रखने लगे। इस कारण भारत की आम जनता में भी हिंदी के प्रति एक रुझान सहज ही बनने लगा। सरकारी कार्यालयों में उच्चाधिकारियों ने अपने मंत्रालय और संस्थानों आदि के अधीनस्थ आने वाले कार्यालयों को दिशा निर्देश जारी किए कि वे राजभाषा के सांवैधानिक प्रावधानों का पालन सक्रियता से करें।
राजभाषा संबंधी सांवैधानिक प्रावधानों में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में राजभाषा के रूप में अंग्रेजी में काम करने की स्वीकृति मिली हुई है। लेकिन विगत कुछ वर्षों में अनेक राज्यों, विशेषकर हिंदी पट्टी के क्षेत्रों के राज्यों के उच्च न्यायालयों में हिंदी के वादों को प्रस्तुत करने की स्वीकृति मिलने लगी है। यहाँ तक कि वर्ष 2016 में उच्चतम न्यायालय ने भी अपने यहाँ प्रतिवादी के आग्रह पर उसे हिंदी में ही अपनी वाद की बहस करने की अनुमति प्रदान की। न्यायालयों के न्यायाधीश भी धीरे-धीरे इन तथ्यों से भली-भाँति परिचित हो रहे हैं कि भारत की अधिकांश जनता हिंदी भाषा में ही सहज है। ऐसे में सामान्य नागरिक को उचित न्याय मिल सके, इसलिए अनेक न्यायाधीश अब हिंदी में कार्य की स्वीकृति प्रदान करने लगे हैं। ऐसे में न्यायालयों में कार्यपद्धति का यह परिवर्तन कार्यालयी हिंदी के विकास का सूचक है।
विगत् वर्षों में केंद्र सरकार के वे कार्यालय जो ‘क’ सूची से इतर ‘ख’ व ‘ग’ क्षेत्रों में आते हैं। उन क्षेत्रों में केंद्र सरकार के कार्यालयों में द्विभाषी कार्यप्रणाली को अपनाया जा रहा है। वहाँ अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में पत्रों के अनुवाद भी भेजे जाते हैं। इतना ही नहीं भारत के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा यह दिशा निर्देश जारी किए गए कि वे अपने सभी कार्यों का निष्पादन या तो केवल हिंदी में अथवा द्विभाषी फार्मूला की नीति के आधार पर करें। इस दिशा में दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय द्वारा उक्त नीति का पालन किया जा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में जनसंचार के क्षेत्र ने अत्यधिक प्रगति की है। जनसंचार के तकनीकी माध्यमों में लगातार लोगों का रुझान बढ़ रहा है। इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं के चलते और जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा अपने लिए लक्षित दर्शक वर्ग को केंद्र में रखकर कार्य करने की योजना के कारण, वहाँ के कार्यालयों में हिंदी में दक्ष लोगों की नियुक्त्यिाँ की जा रही हैं। विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हिंदी का वर्चस्व निरन्तर बढ़ता चला जा रहा है। निश्चित रूप से हिंदी के इस बढ़ते प्रभाव से कार्यालयी हिंदी को अधिक विस्तार करने का अवसर मिलेगा।
वैसे भी किसी भी भाषा का संबंध जब रोजगार से जुड़ जाता है तो वह स्वयं ही अपने विकास के रास्ते तलाश लेती है। ऐसे में सरकारी कार्यालयों में द्विभाषिकता की नीति का पालन करने के चलते अनुवादकों की माँग बढ़ने लगी है। इसके चलते कार्यालयी हिंदी के विकास के अनेक रास्ते खुलने लगे हैं। इतना ही नहीं भारत सरकार तथा अनेक राज्यों सरकारों के सोशल मीडिया पर जनता से सीधे संवाद करने की नीति ने भी कार्यालयी हिंदी को एक दिशा प्रदान की है। भारत की विशाल जनता सोशल मीडिया के विभिन्न रूपों में सक्रिय है। इस जनता में अधिकांश हिंदी भाषी प्रदेशो की जनता है या वह हिंदी भाषा सहज रूप से जानती है। ऐसे में मंत्रालयों ने अपने यहाँ सोशल मीडिया के विभागों का किया है जो मंत्रालयों या उनके अधीनस्थ कार्यालयों की नीतियों को समाज तक पहुँचाने और सामाजिकों के सुझावों को जानने के लिए हिंदी भाषा को जानने वाले लोगों की नियुक्तियाँ करते हैं। इतना ही नहीं, भारत सरकार के सभी मंत्रालयों को अपनी वेबसाईट को अंग्रेजी व हिंदी दोनों में बनाने के दिशा निर्देश केंद्र द्वारा दिए गए हैं। इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगा है।
भूमंडलीकरण के कारण बाज़ार ने भी समाज पर अपनी पकड़ बना ली है। बाज़ार में वस्तुओं की माँग को बढ़ाए रखने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है। इन दिशा में विभिन्न निजी प्रतिष्ठानों ने अपने कार्यालयों में विज्ञापन लेखकों को विशेष रूप से नियुक्त किया है। ये विज्ञापन लेखक अपने प्रतिष्ठान के लिए विज्ञापन ही तैयार नहीं करते वरन् अपने प्रतिष्ठान की नीतियों और योजनाओं को भी सहज भाषा में सामाजिकों के लिए तैयार करते हैं। भले ही इन निजी प्रतिष्ठानों के कार्यालयों में प्रयोग में ली जाने वाली भाषा ‘राजभाषा हिंदी’ की तरह न हो लेकिन बदलते हुए दौर के साथ- साथ यदि कार्यालयों की कार्य प्रणाली के अनुरूप ‘कार्यालयी भाषा’ बदलती है तो इसमें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। वैसे भी राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों में हिंदी के प्रचार-प्रसार सम्बन्धी दिशा निर्देशों में स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है कि हिंदी के विकास में यदि अन्य भाषाओं और बोलियों के शब्द इसमें सहज रूप से आ सकते हैं तो उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए। इसलिए बाज़ार के अनुसार हिंदी में परिवर्तन यदि अपेक्षित है तो उसे नकारना नहीं चाहिए।
यह सही है कि आने वाला समय हिंदी का है। वैश्विक स्तर पर हिंदी ने अपनी एक विशेष पहचान स्थापित ली है। उसने केवल सामान्य जनता की संवेदनाओं की भाषा को ही विकसित नहीं किया बल्कि प्रशासन की भाषा के रूप में भी उसने परिवर्तन को स्वीकार किया है। विश्व के किसी भी देश में जाने वाले भारतीय की अस्मिता सहज रूप से ‘’हिंदी’ के साथ सम्बद्ध हो जाती है। विश्व के 150 से अधिक देशों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है। ऐसे में वैश्विक रूप से हिंदी को यदि प्रतिष्ठित कर भारत की अस्मिता का एक सशक्त आधार बनाना है तो भारत की जनता को सर्वमान्य रूप से हिंदी को सर्वप्रिय भाषा के रूप में स्वीकृति प्रदान करती होगी । आपसी राग-द्वेषों और राजनीतिक विवादों से ऊपर उठकर उसे राजभाषा के पद पर केवल स्थापित ही नहीं करना होगा बल्कि उसे वह प्रतिष्ठा भी देनी होगी जिसकी वह हकदार है।
जिस तरह से वर्तमान दौर में हिंदी का वर्चस्व वैश्विक स्तर पर बनता चला जा रहा है उसे देखते हुए प्रतीत होता है कि भारत में भी यह कार्यालयों की ऐसी भाषा बनेगी जो सामान्य जन की अभिव्यक्ति की भाषा के समान होगी। यह कहना कि तकनीक और विज्ञान की भाषा अंग्रेजी है, एक छद्म सत्य लोगों के सामने लाना है। चीन, जापान, फ्रांस आदि जैसे देशों ने अपनी भाषा में ही तकनीकी और विज्ञान का ज्ञान सहेजकर प्रतिष्ठा प्राप्त की। इन देशों की सारी कार्य-व्यवस्था इनकी अपनी भाषा में ही होती है। ऐसे में इन देशों को दृष्टिगत रखकर भारत को भी हिंदी को ज्ञान, विज्ञान और तकनीकी की भाषा के रूप में स्थापित करना होगा। इससे सामान्य जन इस भाषा के प्रति गौरव का भाव अर्जित कर इसमें कार्य करने में समर्थ होंगे और हिंदी साहित्य और सम्पर्क की भाषा के समान ही ‘कार्यालयी हिंदी’ के रूप में ख्याति प्राप्त कर पाने में समर्थ होगी।
निष्कर्ष
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सरकारी कामकाज को सुचारु रूप से चलाने और विभिन्न सरकारों को समाज के साथ सहजता से संपर्क बनाए रखने के लिए ‘कार्यालयी हिंदी’ का प्रयोग न केवल उचित है बल्कि इससे उसकी कार्यप्रणाली में भी सरलता आती है। यह हिंदी संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के अंतर्गत ‘राजभाषा’ के रूप में जानी जाती है। यह पूर्णतः मानक एवं पारिभाषिक शब्दों को ग्रहण करके चलती है। कार्यालयी हिंदी सामान्य रूप से वह हिंदी है जिसका प्रयोग कार्यालयों के दैनिक कामकाज में व्यवहार में लिया जाता है।
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