कबीर के दोहे

निम्नलिखित दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम सेमेस्टर में लगे हुए हैं।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग दूडै वन माँहि।
ऐसे घटि घटि राम है, दुनियाँ देखे नाँहि॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता ज्ञान॥
सात समंदर की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, हरि गुण लिखा न जाए॥
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय॥
सतगुरु हमसूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥