कबीर के दोहे हिन्दी-‘क'(B.Com.)
निम्नलिखित कबीर के दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के ge पेपर हिन्दी-‘क’ में लगे हुए हैं।
पाछै लागा जाइ था, लोक बेद के साथि।
आगै थे सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि।।11।।
दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया बिसाहूणा, बहुरि न आवौ हट्ट।।12।।
ग्यान प्रकास्या गुर मिल्या, सो जिनि बोसरि जाइ।
जब गोबिंद कृपा करी, जब गुर मिलिया आइ॥13॥
कबीर गुर गरवा मिल्या, रलि गया आर्टें लूंग।
जाति पाँति कुल सब मिटे, नाँव धरौगे कौंण ॥14॥
जाका गुर भी अंधला, चेला खरा निरंध।
अंधै अंधा ठेलिया, न्यूं कूप पडत ॥15॥
नां गुर मिल्या न सिप भया, लालच खेल्या डाव।
दून्यूं बूड़े धार मैं, चढ़ि पाथर की नाव ||16॥
चौसठि दीवा जोइ करि, चौदह चंदा मांहि।
तिहिं घरि किसकौ चानिणौं, जिहि घरि गोविन्द नांहि ॥17॥