कबीर के दोहे
निम्नलिखित दोहे बी.ए. प्रोग्राम के GE हिन्दी-ख में लगे हुए हैं।
सतगुर मिल्या त का भया, जे मनि पाड़ी भोल।
पासि बिनंठा कप्पड़ा, क्या करै बिचारी चोल।।24।।
बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमंकि।
भेरा देख्या जरजरा, (तब) ऊतरि पड़े फरंकि।।25।।
गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहु आकार।
आपा मेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।26।।
कबीर सतगुर नां मिल्या, रही अधूरी सीष।
स्वांग जती का पहरि करि, घरि घरि माँगै भीष।।27।।
सतगुर साँचा सूरिवाँ, तातैं लोहि लुहार।
कसणी दे कंचन किया, ताई लिया ततसार।।28।।
सतगुर हम सूं रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग।।33।।
कबीर बादल प्रेम का, हम परि बरप्पा आइ।
अंतरि भीगी आत्मां, हरी भई बनराई।।34।।