हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

कबीर की भक्ति भावना (kabir ki bhakti bhavna)

0 10

प्रश्नः क्या कबी ने अनीश्वरताप के निकट पहुंच चुके भारतीय जनमानस को निर्गुण ब्रम्ह की भक्ति की ओर प्रवृत्र होने की उत्तेजना प्रदान की? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए। (kabir ki bhakti bhavna)

उत्तर : निर्गुण ब्रह्म गुणों से रहित न होकर गुणातीत है जिसका रूप, रेखा, जाति, रंग नहीं है। कबीर का निर्गुण ब्रह्म अद्वैतवाद के निकट होकर सिद्धों, नाथों की हठयोग साधना, वैष्णवों के प्रप्रत्रि व नामस्मरण भाव से युक्त और इस्लाम को एकेश्वरवाद का स्वीकार करता है।

तत्कालीन समाज की परिस्थितियों के कारण भारतीय जनमानस धर्माडम्बर, अनाचार, पाखण्ड, कर्मकाण्डों, अंधविश्वास, मूर्ति पूजा, असाम्प्रदायिक गतिविधियों से आहत था और उसकी आध्यात्मिक दृष्टि अनिर्दिष्ट होने के कारण अराजकता बढ़ रही थी।

ऐसे में कबीर जैसे संतो ने धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार किए। जहाँ उन्होंने हिन्दुओं को खरी-खोटी सुनाई, वहीं मुस्लिम लोगों को भी कटघरे में खड़ा किया और एकेश्वरवाद की ओर नई दिशा प्रदान की।

हिन्दु तुरक का एकै कर्ता ।
एकहिं ब्रम्ह सबन का भर्ता।।

कबीर ने धार्मिक ठेकेदारों के ज्ञान पर प्रहार करते हुए भारतीय जनमानस को प्रेम का पाठ पढ़ाया।

पोथि पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय।।

कबीर के पाथर पूजै हरि मिलै..” से मूर्तिपूजा का खण्डन हुआ तो वहीं “कबीर कुत्ता राम…” से समर्पण भाव प्रकट किया जो लोगों को धार्मिक कर्मकाण्डों से दूर अध्यात्म की ओर मोड़ रहे थे।

कबीर ने जनमानस को समझाया कि जिस, ब्रह्म की खोज वह बाहर कर रहे है वह तो उनके भीतर ही है “कस्तुरी कुण्डल बसे…. “

इस तरह उस दौर की त्रस्त जनता को कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की खूबियों से अवगत कराते हुए सामजस्यपूर्ण वातावरण बनाया और उनकी आध्यात्मिक ज्ञान की दृष्टि को निर्दिष्ट किया।

(kabir ki bhakti bhavna)

Leave A Reply

Your email address will not be published.