हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

सूचना के अधिकार के लिए लेखन

1 3,328

प्रस्तावना

‘सूचना का अधिकार’ से तात्पर्य है भारत के किसी नागरिक को सरकार तथा उससे सम्बद्ध किसी भी विभाग या संस्था से सूचना प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार। यह अधिकार भारतीय नागरिकों को भारतीय संसद द्वारा दिसम्ब 2002 में ‘सूचनाधिकार विधेयक’ द्वारा प्रदत्त किया गया है। प्रशासन तथा कार्यपालिका के कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए ही इस कानून की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने इसे लागू किया। देश के विभिन्न राज्यों के गैर-सरकारी संगठनों के वर्षों के संघर्ष के परिणामस्वरूप ही इस विधेयक को संसद के पटल पर रखा गया। लम्बे संघर्ष के बाद यह कानून देश में 15 जून, 2005 से प्रभावी हो गया है।

कथ्य-पाठ

भारत के प्रत्येक नागरिक को सरकार तथा उससे सम्बद्ध किसी भी विभाग या संस्था से सूचना प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार है। भारतीय संसद द्वारा ये अधिकार दिसम्बर 2002 में ‘सूचनाधिकार विधेयक’ को पारित कर प्रदान किया गया। प्रशासन तथा कार्यपालिका के कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए ही इस कानून की आवश्यकता को पिछले काफी समय से महसूस किया जा रहा था। देश के विभिन्न राज्यों के गैर-सरकारी संगठनों के वर्षों के संघर्ष के परिणामस्वरूप ही इस विधेयक को संसद के पटल पर रखा गया। लम्बे संघर्ष के बाद यह कानून देश में 15 जून, 2005 से प्रभावी हो गया है।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् से ही समाज के विभिन्न वर्गों तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा यह माँग उठायी जाती रही कि सामान्य जनता को सूचना का अधिकार मिलना चाहिए। इस दिशा में द्वितीय प्रेस आयोग ने भी सरकार से इस माँग को दोहराया। सन् 1990 से सभी राजनीतिक दलों ने इस दिशा पहल भी की और अपने-अपने चुनावी घोषणापत्रों में सुचना के अधिकार को कानून बनाने का वायदा किया। सन् 1996 में भारतीय प्रेस परिषद ने विभिन्न विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस दिशा में पहल की ओर सूचनाधिकार विधेयक का मसौदा तैयार किया और इस मसौदे को केंद्र सरकार के पास भेज दिया। केंद्र सरकार ने ‘कॉमन कॉज़’ नामक एक गैर सरकारी स्वैच्छिक संगठन के निदेशक एच.डी. शौरी की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय कमेटी का गठन किया। समिति ने इस मसौदे में अपेक्षित परिवर्तन करते हुए इसे ‘सूचना की स्वतंत्रता विधेयक’ के नाम से सरकार को सौंप दिया और सरकार ने इस विधेयक को ‘सूचनाधिकार विधेयक’ के नाम से 16 दिसम्बर, 2002 को संसद में पारित कर दिया। लेकिन इस विधेयक के अंतर्गत अनेक कमियाँ होने के कारण विभिन्न संशोधनों के द्वारा इसे 15 जून, 2005 से जम्मू एवं कश्मीर तथा राष्ट्रीय महत्त्व के कुछ संस्थानों को छोड़ सारे भारत में लागू कर दिया गया। भारतीय प्रेस परिषद द्वारा सन् 1996 में तैयार मसौदे के अंतर्गत ‘सूचना का अधिकार’ का प्रारूप की मुख्य बात इस प्रकार है-

परिभाषाएँ

(क) ‘सूचना’ से वह सामग्री अथवा सूचना अभिप्रेत है जो कि एक लोक प्राधिकारी के कार्यों, प्रशासन अथवा आचरण से सम्बद्ध है जिसके बारे में जनता को जानने का अधिकार है और इसमें लोक प्राधिकारी के कार्यों से सम्बद्ध कोई दस्तावेज अथवा रिकार्ड शामिल है,
(ख) ‘विहित’ से अधिनियम के अंतर्गत नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है,
(ग) ‘लोक प्राधिकारी’ में शामिल है
1. संसद और भारत सरकार तथा भारत के क्षेत्राधिकार के भीतर प्रत्येक राज्य सरकार और विधानमंडल तथा स्थानीय अथवा अन्य प्राधिकारी, और
2. एक कंपनी, निगम, न्यास, फर्म, सोसायटी अथवा सहकारी समिति – सरकार की हो अथवा निजी व्यक्तियों और संस्थानों जिनके कार्य जनहित को प्रभावित करते हैं, के नियंत्रण में हो। कंपनी, निगम, न्यास, फर्म, सोसायटी और सहकारी समिति का वही अर्थ होगा जैसा कि उन्हें सम्बद्ध अधिनियमों में दिया गया जिसके अंतर्गत वे पंजीकृत किये गये हैं।
(घ) ‘सूचना का अधिकार’ से सूचना तक पहुँच का अधिकार अभिप्रेत है और इसमें, किसी लोक-प्राधिकारी का निरीक्षण और उसके दस्तावेजों अथवा रिकार्डों से टिप्पणियाँ और उद्धरण तथा उनकी प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करना शामिल है।

सूचना का अधिकार

(क) प्रत्येक नागरिक को एक लोक-प्राधिकारी से सूचना प्राप्त करने का अधिकार होगा।
(ख) प्रत्येक लोक-अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह इसके पूरे रिकार्ड रखें जो कि समुचित तालिकाबद्ध और सूचीबद्ध हों और धारा 4 के उपबंधों के अधीन किसी भी व्यक्ति को, इससे सूचना का अनुरोध किया जाने पर माँगी गयी सूचना सहित ऐसी सूचना उपलब्ध करवायी जाए क्योंकि सूचना प्राप्त करने व जुटाने और सूचना देने से इंकार न करने और नही इसकी उपलब्धता को सीमित करने की बाध्यता है।
(ग) इस धारा के पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी किसी व्यक्ति के ऐसी सूचना प्राप्त करने के अधिकार को नहीं रोकेगा जो कि उनके जीवन तथा दैहिक स्वतंत्रता को प्रभावित करेगा।
(घ) हवालात, जेल, मानसिक-शरणस्थल, प्रतिप्रेषण गृह, महिलागम, शिक्षा आश्रम आदि जैसी अभिरक्षा संबंधी (घ) संस्था के लिए आगंतुक समिति नियुक्त करना अनिवार्य होगा जिसमें स्वतंत्र नागरिक होंगे जिनकी दिन-रात उन तक और उनके रिकार्डों व गृह सदस्यों तक पूरी पहुँच होगी।

सूचना के अधिकार पर प्रतिबंध

लोक अधिकारी, लिखित रूप में कारण देते हुए प्रकट करने से इंकार कर सकेगा-
(क) ऐसी सूचना, जिसके प्रकटीकरण से भारत की एकता और प्रभुता, राज्य सुरक्षा और दूसरे राज्यों के साथ मित्रातापूर्ण संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, लोक व्यवस्था, किसी अपराध की जाँच-पड़ताल अथवा जिससे अपराध भड़क सकता है,
(ख) व्यक्तिगत अथवा अन्य सूचना, जिसके प्रकटीकरण से किसी सार्वजनिक कार्य का संबंध नहीं है अथवा जिसमें जनता का कोई हित नहीं है और इससे व्यक्तिगत एकांत में स्पष्ट और अवांछनीय अनाधिकार प्रवेश होगा,
(ग) विधि द्वारा सुरक्षित व्यापार और वाणिज्यिक गोपनीयता।

सूचना देने की प्रक्रिया

(क) इस अधिनियम के अंतर्गत लोक प्राधिकरण से सूचना माँगने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति के सम्मुख आवेदन करेगा जो कि फिलहाल लोक-प्राधिकरण प्रभारी है।
(ख) माँगी गई सूचना को आवेदक को आवेदन पत्रा देने के तीस दिनों के भीतर लोक-प्राधिकारी द्वारा दी जायेगी और जहाँ ऐसी सूचना किसी व्यक्ति के जीवन अथवा दैहिक स्वतंत्रता से सम्बद्ध आवेदन करने के 48 घंटों में दी जाएगी।
(ग) माँगी गई सूचना लिखित में अंग्रेजी अथवा हिंदी अथवा राज्य की भाषा में दी जाएगी।
(घ) माँगी गई सूचना के बदले में लोक-प्राधिकारी को शुल्क लेने का अधिकार होगा।

इस अधिनियम के अंतर्गत यदि लोक प्राधिकारी किसी सूचना को देने से इंकार करता है तो उसे इंकार करने के कारण लिखित रूप में देने होंगे। तीस दिनों के भीतर यदि सूचना प्राप्त नहीं होती तो इसके लिए उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय के पास आवेदक को अपील करनी होगी। सूचना के लिए नियुक्त प्राधिकारी सूचना न देने की स्थिि में उत्तरदायी होगा। गलत सूचना देने की स्थिति में प्राधिकारी पर दंड लगाया जा सकता है।
इस तरह सूचना के अधिकार को सामान्य जनता को सौंपकर विधायिका ने एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इसके
आधार पर किसी भी व्यक्ति को किसी भी सूचना को प्राप्त करने के लिए सादे कागज पर अपना आवेदन संबंध प्राधिकारी को दस रुपए के ड्राफ्ट के साथ प्रस्तुत करना होगा। सम्बन्धित जानकारी के लिए यदि आवेदक को कुछ दस्तावेजों को प्राप्त करना है तो प्रत्येक दस्तावेज की छायाप्रति के लिए दो रुपए प्रति कॉपी देय होगा। तीस दिन तक आवेदक को उत्तर प्राप्त न होने की स्थिति में वह उच्च न्यायालय में अपनी शिकायत दर्ज कर सकता है। जिसके आधार पर संबंधित अधिकारी के विरुद्ध न्यायालय कार्यवाही कर सकता है।
वर्तमान में इस कानून के विषय में सामान्य जनता को अधिक जानकारी नहीं है या फिर वह इसे क्रियान्वयन की प्रक्रिया को सुचारू रूप से नहीं समझ पाया है। इसके लिए अनेक गैर-सरकारी संगठनों तथा न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों ने सहयोग देना आरम्भ कर दिया है। गरीब-से-गरीब अथवा अमीर-से-अमीर व्यक्ति को इस कानून को प्रयोग करने का समान अधिकार है इसलिए सरकार को प्रयास करने चाहिए कि वह इस कानून के विषय में आम जनता के बीच जाकर इसका प्रचार करे जिससे लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर इस कानून का उपयोग कर सकें। निरक्षर जनता के लिए सरकार को विभिन्न कार्यालयों को उचित दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए जहाँ जाकर निरक्षर लोग, या फिर सामान्य जनता आवेदन के प्रारूप को समझ सके तथा आवेदन को तैयार करवाने में सहयोग ले सके।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (1) के अंतर्गत आवेदन-पत्र का प्रारूप

विशेष

  1. आवेदक को जिस विभाग/संस्थान / कार्यालय के लिए आवेदन करना है उस विभाग की वेबसाईट से जनसूचना अधिकारी की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लें। अधिनियम के अनुसार प्रत्येक कार्यालय को अपने यहाँ नियुक्त जनसूचना अधिकारी के बारे में पूर्ण जानकारी कार्यालय की आधिकारिक वेबसाईट तथा कार्यालय में प्रमुख स्थान पर बोर्ड लगाकर देनी अनिवार्य है।
  2. आवेदक को अपने प्रश्नों को सीधे पूछना चाहिए।
  3. आवेदक द्वारा यदि किसी तीसरे पक्ष से संबंधी ऐसी सूचना माँगी गई है तो जन सूचना अधिकार गोपनीय है तो उसके अंतर्गत सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 11(1) के अंतर्गत उसे देने से मना कर सकता है। इस नियम के अनुसार “जहाँ एक केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या एक राज्य लोक सूचना अधिकारी, जैसा भी मामला हो, इस अधिनियम के तहत किए गए अनुरोध पर किसी भी जानकारी या रिकॉर्ड या उसके हिस्से का खुलासा करने का इरादा रखता है, जो किसी तीसरे पक्ष से संबंधित है या प्रदान किया गया है और उस तीसरे पक्ष, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा गोपनीय माना गया है। जैसा भी मामला हो, अनुरोध प्राप्त होने के पाँच दिनों के भीतर, अनुरोध के ऐसे तीसरे पक्ष को एक लिखित सूचना देगा और इस तथ्य के बारे में कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, जैसा भी मामला हो, सूचना या रिकॉर्ड या उसके हिस्से का खुलासा करने का इरादा रखता है और तीसरे पक्ष को लिखित या मौखिक रूप से प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित करें कि क्या जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए, और जानकारी के प्रकटीकरण के बारे में निर्णय लेते समय तीसरे पक्ष की ऐसी प्रस्तुति को ध्यान में रखा जाएगा; बशर्ते कि कानून द्वारा संरक्षित व्यापार या वाणिज्यिक रहस्यों के मामले को छोड़कर, प्रकटीकरण की अनुमति दी जा सकती है यदि प्रकटीकरण में सार्वजनिक हित ऐसे तीसरे पक्ष के हितों को किसी भी संभावित नुकसान या चोट से अधिक महत्त्व देता है।
  4. आवेदक को अपने आवेदन की प्रति को अपने पास संभाल कर रखना चाहिए और स्पीड पोस्ट या पंजीकृत डाक की रसीद भी सुरक्षित रखनी चाहिए। यदि आपको 30 दिन के भीतर कोई भी उत्तर नहीं मिलता तो आप सूचना आयुक्त से अपनी शिकायत सीधे कर सकते हैं। प्रत्येक राज्य में एक सूचना आयुक्त नियुक्त किया जाता है। सूचना प्राप्त होने और सूचना न देने के लिए दोषी सूचना अधिकारी के विरुद्ध शिकायत का अधिकार का प्रावधान इस अधिनियम के अंतर्गत है।
  5. आवेदक यदि माँगी गई जानकारी के उत्तर प्राप्त होने के पश्चात उससे संतुष्ट नहीं है तो वह उसी कार्यालय के मुख्य
    जनसूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी के पास अपील कर सकता है।
  6. इस अधिनियम के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी नीचे दिए गए लिंक का उपयोग कर अधिनियम की प्रति प्राप्त कर सकता है : https://bis.gov.in/PDF/pdf/rti/RTI2005.pdf

निष्कर्ष

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ‘सूचना का अधिकार’ प्रत्येक सामाजिक के लिए ऐसा अधिकार है जो एक विशेष अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न सरकारी और सरकार से सम्बद्ध संस्थानों से जानकारियों को प्राप्त करने की सुविधा देता है। कई सरकारी या उससे संबंध प्रतिष्ठान विभिन्न सूचनाओं को या तो उपलब्ध नहीं करते या फिर समय पर उन्हें उपलब्ध नहीं कराते ऐसे में इस अधिकार का प्रयोग कर सामाजिक शीघ्रता से सूचनाओं को प्राप्त कर सकता है।

1 Comment
  1. […] सूचना के अधिकार के लिए लेखन […]

Leave A Reply

Your email address will not be published.