सम्प्रेषण और संचार।

सम्प्रेषण
सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच मौखिक, लिखित, सांकेतिक या प्रतिकात्मक माध्यम से विचार एवं सूचनाओं के प्रेषण की प्रक्रिया है। सम्प्रेषण हेतु सन्देश का होना आवश्यक है। संप्रेषण में पहला पक्ष प्रेषक (सन्देश भेजने वाला) तथा दूसरा पक्ष प्रेषणी (सन्देश प्राप्तकर्ता) होता है। संप्रेषण उसी समय पूर्ण होता है जब सन्देश मिल जाता है और उसकी स्वीकृति या प्रत्युत्तर दिया जाता है। सम्प्रेषण के कितने प्रकार हैं? सम्प्रेषण मौखिक, लिखित या गैर शाब्दिक हो सकता है।
1. मौखिक सम्प्रेषण
जब कोई संदेश मौखिक अर्थात् मुख से बोलकर भेजा जाता है तो उसे मौखिक सम्प्रेषण कहते हैं। यह भाषण, मीटिंग, सामुहिक परिचर्चा, सम्मेलन, टेलीफोन पर बातचीत, रेडियो द्वारा संदेश भेजना आदि हो सकते हैं। यह सम्प्रेषण का प्रभावी एवं सस्ता तरीका है। यह आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार के सम्प्रेषण के लिए सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है। मौखिक सम्प्रेषण की सबसे बड़ी कमी है कि इसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका कोई प्रमाण नहीं होता।
2. लिखित सम्प्रेषण
जब संदेश को लिखे गये शब्दों में भेजा जाता है, जैसे पत्र, टेलीग्राम, मेमो, सकर्लर, नॉटिस, रिपोर्ट आदि, तो इसे लिखित सम्प्रेषण कहते है । इसकी आवश्यकता पड़ने पर पुष्टि की जा सकती है। सामान्यतः लिखित संदेश भेजते समय व्यक्ति संदेश के सम्बन्ध में सावधान रहता है। यह औपचारिक होता है। इसमें अपनापन नहीं होता तथा गोपनीयता को बनाए रखना भी कठिन होता है।
3. गैर-शाब्दिक सम्प्रेषण
ऐसा सम्प्रेषण जिसमें शब्दों का प्रयोग नहीं होता है गैर शाब्दिक सम्प्रेषण कहलाता है। जब आप कोई तस्वीर, ग्राफ, प्रतीक, आकृति इत्यादि देखते हैं। आपको उनमें प्रदर्शित संदेश प्राप्त हो जाता है। यह सभी दृश्य सम्प्रेषण हैं। घन्टी, सीटी, बजर, बिगुल ऐसे ही उपकरण हैं जिनके माध्यम से हम अपना संदेश भेज सकते हैं। इस प्रकार की आवाजें ‘श्रुति’ कहलाती है। इसी प्रकार से शारीरिक मुद्राओं जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों का उपयोग किया गया हो, उनके द्वारा भी हम सम्प्रेषण करते हैं। उन्है । हम संकेतों द्वारा सम्प्रेषण कहते हैं।
हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को सलाम करते हैं। हाथ मिलाना, सिर को हिलाना, चेहरे पर क्रोध के भाव लाना, राष्ट्र गान के समय सावधान की अवस्था में रहना आदि यह सभी संकेत के माध्यम से सम्प्रेषण के उदाहरण हैं।
सम्प्रेषण सेवाएं
एक स्थान से दूसरे स्थान सन्देश भेजने और उसका उत्तर प्राप्त करने आपको किसी माध्यम की आवश्यकता होती है जो कि सम्प्रेषण के साधन कहलाते हैं । सम्प्रेषण के विभिन्न माध्यम हैं – डाक पत्र प्रेषण सेवा, कुरीयर सेवा, टेलीफोन, टेलीग्राम, इन्टरनेट, फैक्स, ई-मेल, वायस मेल, आदि । इन साधनों को सम्प्रेषण सेवाएं भी कहते हैं व्यवसाय हते प्रभावी सम्प्रेषण सेवाओं को दो भागों में बाटा जा सकता है :-
- डाक सेवाए
- दूरसंचार सेवाएं
1. डाक सेवाएं
भारत में डाक प्रणाली का प्रारम्भ 1766 में लार्ड क्लाइव ने सरकारी डाक भेजने के लिए किया था। यह जन साधारण के लिए सन् 1837 से ही उपलब्ध हुई। भारतीय डाक सेवा नेटवर्क की गणना विश्व की बड़ी डाक सेवाओं में होती है। इसमें पूरे देश में 1,55,516 डाक घर हैं जिनमें से 1,39,120 ग्रामीण क्षेत्रों में है। इनका मुख्य कार्य पत्रों, पार्सल, पैकेट को एकत्र करना, उनको छांटना एवं उनका वितरण करना है।
इसके अतिरिक्त जन साधारण एवं व्यावसायिक उद्योगों को अन्य अनेक सेवाएं प्रदान करते है। आइए, डाक सेवाओं को विभिन्न वर्गों में इस प्रकार वर्गीकृत करें-
- डाक सेवाएं
- वित्तीय सेवाएं
- बीमा सेवाएं
- व्यवसाय विकास सेवाएं
1. डाक सेवाएं
डाक से लिखित सन्देश भेजने के लिए पोस्टकार्ड, अन्तर्देशीय पत्र या लिफाफों का प्रयोग किया जाता है। ये सन्देश परिवहन के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाए जाते हैं। डाक सेवाओं में दशा के भीतर एवं देश के बाहर सन्देश भेजने की सेवाएं दी जाती है। डाक भेजने और पाने वाला, दोनों एक ही देश में रहते हों तो यह अन्तदर्शीय डाक सेवा कहलाती है जबकि डाक भेजने वाला और पाने वाला दोनों अलग-अलग देशों में रहते हों तो इसे अन्तरराष्ट्रीय डाक सेवा कहते हैं।
सामान भेजने के लिए पार्सल सेवा का प्रयोग होता है तो छपे हुए सन्देश हेतु बुक पोस्ट सेवा का प्रयोग होता है। डाकघर की कुछ विशिष्ट डाक सेवाओं के बारे में संक्षिप्त वर्णन हैं-
1. डाक प्रेषण प्रमाण पत्र – सामान्य पत्रों के लिए डाक घर कोई रसीद नहीं देता है। लेकिन यदि पत्र प्रेषक इस बात का प्रमाण चाहता है कि उसने वास्तव में पत्र को डाक से भेजा था तो उसे निर्धारित फीस के भुगतान पर डाकघर एक प्रमाण पत्र जारी करता है जिसे डाक प्रेषण प्रमाण पत्र कहते है। इन पत्रों पर ‘डाक प्रमाण पत्र के अन्तर्गत’ (UPC) अंकित होता है।
2. पंजीकृत डाक – यदि डाक भेजने वाला चाहता है कि डाक को प्रेषणी को अवश्य सुपुर्द किया जाये और ऐसा नहीं होने पर डाक को उसे लौटा दिया जाये तो इसके लिए डाक घर पंजीकृत डाक सेवा की सुविधा प्रदान करते हैं। इस सेवा के बदले डाकघर अतिरिक्त राशि लेता है तथा पंजीकृत डाक के लिए प्रेषक को रसीद जारी करता है।
3. बीमाकृत डाक – यदि डाक अथवा पार्सल के रास्ते में ही नष्ट अथवा क्षतिग्रस्त होने का भय हो तो इन्हें भेजने वाला प्रीमीयम का भुगतान कर डाकघर से ही इनका बीमा करवा कर अपना सामान भेज सकता है। इस स्थिति में डाकघर बीमाकार के रूप में कार्य करता है एवं क्षति होने पर उसकी पूर्ति करता है। बीमा प्रीमियम का भुगतान डाक भेजने वाला करता है।
4. द्रुतगामी डाक – अतिरिक्त फीस का भुगतान कर कुछ चुने हुए स्थानों में शीघ्र से शीघ्र निश्चित समय से व गारन्टी सहित डाक की सुपुर्दगी की सेवा है। यह सुविधा भारत में 1000 डाकघरों में उपलब्ध है तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 97 देशों के लिए उपलब्ध है।
5. न्यस्त डाक – यदि प्रेषणी का सही पता नहीं है तो प्रेषक न्यस्त डाक की सुविधा प्राप्त कर सकता है। इसके अन्तर्गत पत्र को उस क्षेत्र के डाक अश्चिाकारी को भेजा जाता है जिसमें प्रेषणी रहता है। प्रेषणी अपनी पहचान कराकर डाकघर से पत्र प्राप्त कर सकता है। यह सुविधा यात्रा कर रहे लोग तथा यात्री विक्रयकर्ताओं (travelling salesman) के लिए उपयोगी है क्योंकि किसी भी शहर में इनका पता निश्चित नहीं होता। ऐसे लोगों के लिए जो किसी नये स्थान पर स्थाई पते की तलाश में हैं, उनके लिए भी यह सुविधा लाभदायक है।
2. वित्तीय सेवाएँ
डाकघर द्वारा विभिन्न वित्तीय सेवाएं प्रदान की जाती है, जैसे-
डाकघर बचत योजनाएं
धन हस्तांतरण सेवाएं
म्यूचूअल फण्ड एवं प्रतिभूतियों का वितरण
उपरोक्त वित्तीय सेवाओं के विशिष्ट याजेनाओं की जानकारी अग्रांकित है-
1. बचत सेवाएं – जनता की बचत को जमा करने के लिए डाकघर की आठ
विभिन्न योजनाए हैं, जो नीचे दी गई हैं-
- डाकघर बचत बैंक खाता।
- 5 वर्षीय डाकघर आवर्ती जमा योजना।
- डाकघर समयावधि खाता।
- डाकघर मासिक आय योजना।
- 6 वर्षीय राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (आठवां निर्गमन) योजना।
- 15 वर्षीय लोक भविष्य निधि खाता। (PPF)
- किसान विकास पत्र योजना।
- वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, 2004
2. धन हस्तारण सेवा – डाकघर की धन हस्तांतरण सेवा के माध्यम से धन को सुगमता से एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजा जा सकता है। इन सेवाओं के प्रमुख दो प्रकार हैं-
(1) मनी-आर्डर
(2) पोस्टल आर्डर
इसके अन्तर्गत पैमा भेजने वाला डाकघर में रूपये जमा करा देता है और कुछ कमीशन लेकर डाक विभाग उस पैसे को सम्बन्धित स्थान में सम्बन्धित व्यक्ति को पहुंचाने का दायित्व ले लेता है।
मनीआर्डर अनके प्रकार के होते है जैसे साधारण मनीआर्डर, टेलीग्राफिक मनीआर्डर, सेटेलाइट मनीआर्डर, द्रुत डाक मनीआर्डर, इस्टेंट मनीआर्डर, कार्पोरेट मनीआर्डर आदि।
मनीआर्डर के समान ही इण्डियन पोस्टल आर्डर के माध्यम से भी धन हस्तांतरित किया जा सकता है जो कि मुख्यतः परीक्षा शुल्क या किसी पद पर आवेदन करते समय उपयोग में लाई जाती है।
3. म्यूचुअल फण्ड एवं प्रतिभूतियों का वितरण – इस सुविधा के अन्तर्गत निवेशक को निर्धारित डाकघरों के माध्यम से म्यूचुअल फण्ड व सरकारी प्रतिभतियों के क्रय की सुविधा दी जाती है। स्टेट बैंक आफ इन्डिया, प्रूडेन्सीयल आई सी आई सीआई के म्यूचुअल फण्ड, आर बी आइर्रसरकारी रिलीफफंड और आई सी आई सी आई सेफट बॉड बंगलौर, चैन्नई, चंडीगढ़, दिल्ली, मुम्बई के 42 डाकवरों पर उपलब्ध हैं ।
3. बीमा सेवाएं
डाक सेवाओं एवं धन के स्थानान्तरण के अतिरिक्त डाकघर लोगों का जीवन बीमा भी करते है । । डाकघरों के द्वारा दी जाने वाली जीवन बीमा की अलग-अलग 11 योजनाएं हैं। ये हैं :
(1) पोस्टल लाइफ इन्शोरेन्स (PLI)
(2) ग्रामीण डाक जीवन बीमा
पोस्टल लाइफ इन्शोरेंस का प्रारम्भ 1884 में डाक एवं तार विभाग के कर्मचारियों के लिए किया गया था जिसे बाद में केन्द्र व राज्य सरकारों के कर्मचारियों, सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों, विश्वविद्यालयों, सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, वित्तीय संस्थानों, एवं जिला परिषदों के कर्मचारियों के जीवन के बीमों तक विस्तृत कर दिया गया।
इन सभी संगठनों के कर्मचारी जो 50 वर्ष से कम आयु के हैं, एक निश्चित प्रीमियम का भुगतान कर एक निश्चित अवधि के लिए अपने जीवन का बीमा करा सकते हैं।
पी. एल. आई. की पांच योजनाएं हैं:
(1) सुरक्षा (आजीवन जीवन बीमा)
(2) सुविधा (परिवर्तनीय आजीवन जीवन बीमा)
(3) संतोष ( बंदोबस्ती बीमा)
(4) सुमंगल (संभावित बंदोबस्ती वीमा)
(5) युगल सुरक्षा (पति पत्नी का संयुक्त जीवन बंदोबस्ती बीमा)
पी. एलआई. के समान ही डाकघर अपनी ग्रामीण डाक जीवन बीमा (आर.पी.एल.आई.) योजना के अन्तर्गत कम प्रीमियम पर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन का बीमा करते हैं।
इसका प्रारम्भ 24 मार्च 1995 में किया गया। उपरोक्त सभी योजनाए ग्रामीण डाक जीवन बीमा योजना (RPLI) के अन्तर्गत भी उपलब्ध हैं ।
4. व्यवसाय विकास सेवाएं
डाक पहुंचने एवं धन हस्तांतरण करने के अतिरिक्त डाकघर व्यावसायिक इकाइयों को अनेक विशेष सेवाएं भी प्रदान करते हैं। आइये, इन विशेष सेवाओं के बारे में संक्षेप में जानें-
1. व्यावसायिक डाक : इस सेवा के द्वारा डाकघर बड़ी मात्रा में डाक भेजने वालों की डाक भेजने से पहले की सभी क्रियाओं को करते हैं। यह क्रियाएं हैं प्रेषक के कार्यालय से डाक को लेना, उन्हें पैकेट में डालना, उन पर पते लिखकर टिकट इत्यादि लगाकर पोस्ट करना।
2. मीडिया डाक : डाक विभाग मीडिया पोस्ट के माध्यम से कॉरपोरेट एवं सरकारी संगठनों को सम्भावित ग्राहकों तक पहुंचाने में सहायता का एक अद्भुत साधन उपलब्ध कराता है। इस सुविधा के अन्तर्गत:
(क) पोस्ट कार्ड, अन्तर्देशीय पत्र एवं अन्य डाक स्टेशनरी पर विज्ञापन की छूट दी जाती है,
(ख) पत्र पेटियों पर स्थान प्रायोजन की सुविधा प्रदान की जाती है।
3. एक्सप्रैस पार्सल पोस्ट : डाकघर अपनी एक्सप्रैस डाक सेवा के द्वारा कॉरपोरेट एवं व्यावसायिक ग्राहकों को विश्वसनीयता, शीघ्रगामी एवं मितव्ययी पार्सल सेवा प्रदान करते हैं। यह 35 कि. ग्राम वजन तक के पार्सल एवं 50,000 रूपये तक की मूल्यदेय डाक (वी. पी. पी.) को निर्धारित समय पर प्रेषणी के घर तक पहुंचाते हैं।
4. सीधे डाक : इसके अन्तर्गत व्यावसायिक इकाईयां पर्चे एवं अन्य विज्ञापन सामग्री जैसे सी. डी., फ्लोपी, कैसेट, नमूने आदि को कम मूल्य पर सीधे सम्भावित ग्राहकों को भेज सकती हैं।
5. फुटकर डाक : डाकघर टेलीफोन, बिजली एवं पानी के बिल आदि सार्वजनिक सुविधाओं सम्बन्धी बिलों का पैसा एकत्रित करने एवं अन्य इसी प्रकार की सुविधाएं भी प्रदान करते हैं। सरकार एवं अन्य निजी संगठनों के आवेदन पत्रों की बिक्री करना, डाकिये के द्वारा सर्वेक्षण कराना, डाकिये के द्वारा पता जांच कराना आदि कुछ सेवाएं हैं जो फुटकर डाक सेवा के अन्तर्गत प्रदान की जाती है।
6. व्यावसायिक उत्तरापेक्षित डाक : इस सेवा के अन्तर्गत डाकघर ग्राहक को व्यावसायिक उत्तरापेक्षित पत्र माध्यम से बिना किसी शुल्क के अपने उत्तर भेजने की छूट देता है। इसके लिए प्रेषक को कोई डाक व्यय नहीं चुकाना पड़ता। डाकघर
प्रेषणी से बाद में इस राशि को प्राप्त कर लेता है।
7. डाक दुकान : डाक दुकानें वह छोटी फुटकर दुकानें हैं जिनकी स्थापना ग्राहकों को डाक स्टेशनरी, शुभकामना कार्ड एवं छोटे उपहार बेचने के लिए की गई है। यह दुकानें कुछ डाकघरों के परिसर में लगी होती हैं।
8. मूल्य देय डाक : यह सुविधा उन व्यापारियों की आवश्यकता की पूर्ति करती है जो अपने माल की बिक्री तथा उसके मूल्य की वसूली डाक के माध्यम से करना चाहते हैं। यहां डाकघर विक्रेता से पैक हुआ माल लेते हैं तथा उसे ग्राहक तक पहुंचाते हैं। ग्राहक से माल का मूल्य एवं मूल्य देय डाक का शुल्क मिलाकर पूरी राशि लेने के बाद सामान उसे दे दिया जाता है। फिर डाकघर उसमें से अपना शुल्क रखकर बची राशि विक्रेता को भेज देता है।
9. कॉरपोरेट मनीआर्डर : आमलागौं की तरह व्यापारिक सगंठन भी मनीआर्डर के द्वारा धन हस्तान्तरित कर सकते हैं । उनके लिए डाकघर की कॉरपोरेट मनीआर्डर सेवा उपलब्ध है। इससे व्यापारिक संगठन देश के किसी भी भाग में एक करोड़ रूपये तक की राशि हस्तान्तरित कर सकते हैं । यह सुविधा उपग्रह से जुड़े सभी डाकघरों में उपलब्ध है।
10. पोस्ट बॉक्स एव पोस्ट बैग सुविधा : इस सुविधा के अन्तर्गत डाकघर में प्राप्तकर्ता को एक विशेष संख्या एवं एक बॉक्स अथवा बैग निर्धारित कर दिया जाता है। डाकघर उस संख्या पर आने वाली सभी गैर पंजीकृत डाक को उन बॉक्स अथवा थैलों में रख लेता है। प्राप्तकर्ता अपनी सुविधानुसार डाक को लेने के लिए आवश्यक इन्तजाम करता है। यह सुविधा उन व्यापारिक फर्मों के लिए उपयुक्त है जो अपनी डाक जल्दी लेना चाहती हैं। वह लोग जिनका कोई स्थाई पता नहीं होता या फिर वो लोग जो अपना नाम एवं पता गुप्त रखना चाहते हैं इस सुविधा का लाभ एक निर्धारित किराए का भुगतान कर उठा सकते हैं।
11. बिल डाक सेवा : यह वार्षिक रिपोर्टों, बिल, मासिक लेखा बिल और इसी प्रकार की अन्य मदों के आवधिक सम्प्रेषण के लिए कम लागत पर प्रदान की जाने वाली सेवा है।
12. ई-डाक : ई-डाक सेवा का शुभारम्भ 30 जनवरी 2004 को किया गया। इसके अन्तर्गत लोग देश के सभी डाकघरों में ई-मेल के माध्यम से संदेश भेज सकते हैं। व्यवसाय के लिए इसे और अधिक उपयोगी बनाने के लिए कॉरपोरेट ई-मेल प्रतिरूप का 18 अक्टूबर 2005 को शुभारम्भ किया गया जिससे एक ही समय में अधिकतम 9999 पतों पर ई-डाक एक साथ भेजी जा सकती हैं।
2. दूर संचार सेवाएं
भारत में पहली टेलीग्राम लाइन सन्देश भेजने के लिए 1851 में खोला गया, कोलकाता और डायमण्ड हारबर के बीच। पहली टेलीफोन सेवा का प्रारम्भ क में 1881-82 में किया गया। पहला स्वचालित एक्सचजे शिमला में 1913-14 में प्रारम्भ किया गया। वर्तमान में भारत में टेलीफोनों की संख्या के आधार पर विश्व में 10वां बड़ा नेटवर्क है। भारत की दूरसंचार सेवाओं का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया है गया है।
- स्थाई लाइन फोन – स्थाई लाइन फोन अथवा टेलीफोन मौखिक सम्प्रेषण का अत्यधिक लोकप्रिय साधन है। यह व्यवसाय में आन्तिरिक एवं बाह्य सम्प्रेषण के लिए बहुत अधिक प्रयोग में आता है। इससे मौखिक बातचीत, चर्चा एवं लिखित संदेश भेजा जा सकता है। हमारे देश में सरकार एवं निजी दूरसंचार कम्पनियां यह सेवा प्रदान कर रही है।
- सैल्यूलर सेवाएं – आजकल सैल्यूलर अर्थात मोबाइल फोन बहुत लोकप्रिय 2. हो गये हैं क्योंकि इससे संदेश प्राप्तकर्ता तक हर समय एवं हर स्थान पर पहुंचा जा सकता है। यह स्थाई लाइन टेलीफोन का सुधरा रूप है। इसमें कई आधुनिक विशेषताएं है जैसे कि संक्षिप्त संदेश सेवा, मल्टीमीडिया मैसेजिगं सेवाएं, आदि। एमटीएनएल, बीएसएनएल, एयरटेल, आइडीया, वोडाफोन, रियालन्स एवं टाटा हमारे देश की अग्रणी मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कम्पनियां हैं।
- टेलीग्राम – यह एक प्रकार का लिखित सम्प्रेषण है जिसके माध्यम से संदेश को शीघ्रता से दूर स्थानों को भेजा जा सकता है। इसका प्रयोग अति-आवश्यक छोटे संदेशों के प्रेषण के लिए किया जाता है। यह सुविधा टेलिग्राफ ऑफिस में उपलब्ध होती है।
- टेलेक्स – टेलेक्स में टेलीप्रिटर का उपयोग होता है। यह मुद्रित सम्प्रेषण का माध्यम है। टेलीप्रिंटर एक टेली टाइप राइटर है जिसमें एक मानक की बोर्ड होता है तथा यह टेलीफोन के द्वारा जुड़ा होता है।
- फैक्स- फैक्स या फैक्सीमाईल एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जिससे हस्तलिखित अथवा मुद्रित विषय को दूर स्थानों को भेजा जा सकता है। टेलीफोन लाइन का प्रयोग कर यह मशीन दस्तावेज की हूबहू नकल प्राप्त करने वाली फैक्स मशीन पर भेज देती है। आज व्यवसाय में लिखित सम्प्रेषण के लिए इसका प्रचलन काफी बढ़ गया है।
- वाइस मेल – यह कम्प्यूटर आधारित प्रणाली है जिसके द्वारा आने वाले टेलीफोन को प्राप्त करके उसका जवाब दिया जाता है। वाइस मेल में कम्प्यूटर की मेमोरी द्वारा टेलीफोन से आये सदेशों को जमा किया जाता है। टेलीफोन करने वाइस मेल का नंबर डायल करता है फिर कम्प्यूटर द्वारा दिए निर्देशो का पालन कर आवश्यक सूचना ले सकता है। लोग वाइस मेल पर अपना संदेश रिकार्ड भी करा सकते है और फिर उसका जवाब भी दे सकते है।
- ई-मेल- इलैक्ट्रॉनिक मेल का लोकप्रिय नाम ई-मेल है। यह सम्प्रेषण आधुनिक साधन है। इसमे मुद्रित संदेश, तस्वीर, आवाज आदि को इन्टरनेट के माध्यम से एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर भेजा जाता है।
- एकीकृत संदेश सेवा – यह प्रणाली है जिसमे टेलीफोन उपकरण, फैक्स मशीन, मोबाईल फोन व इन्टरनेट ब्राउजर का उपयोग कर एक ही मेल बाक्स, पर फैक्स, वाइस मेल और ई-मेल संदेश प्राप्त किए जा सकते हैं।
- टैलीकान्फ्रेंसिंग – टेलीकान्फ्रेंसिग वह प्रणाली है जिसमे लोग आमने सामने बैठे बिना एक दूसरे से बातचीत कर सकते है। लोग दूसरे की आवाज सुन सकते हैं एवं उनकी तस्वीर भी देख सकते हैं। अलग अलग देशो मे बैठे हुए लोग भी एक दूसरे के प्रश्नों का उत्तर दे सकते है। इसमे टेलीफोन, कम्प्यूटर, टेलीविजन जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
सम्प्रेषण का महत्त्व
- व्यवसाय को प्रोत्साहन – सम्प्रेषण से कम समय मे ज्यादा काम सम्भव हो गया है और घरेलू एवं विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई है। व्यापारी घर बैठे ही सौदे कर सकते है, पूछताछ कर सकते है आदेश दे सकते है व स्वीकृति भेज सकते है।
- श्रम में गतिशीलता – सम्प्रेषण के आसान साधनों से दूरी के दुख दर्द कम हो गये है, परिवार व मित्रों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रख सकते है। इसीलिए काम धंधे के लिए लोग अब आसानी से दूर जाने लगे है।
- सामाजीकरण – सम्प्रेषण के विविध साधनों से लोग अपने सगे-सम्बन्धी, मित्रों, परिचितों से नियमित रूप से सन्देशों का आदान-प्रदान करते हैं। इसमें आपसी सम्बन्ध, प्रगाढ़ हुए है और सामायीकरण बढ़ा है।
- . समन्वय एवं नियंत्रण – व्यावसायिक गृहों एवं सरकार के कार्यालय अलग अलग स्थानों पर स्थित होते है और एक ही भवन के अन्दर कई विभाग हो सकते हैं। उनके बीच प्रभावी सम्प्रेषण उनके कार्यो में समन्वय स्थापित करने तथा उन पर नियन्त्रण रखने में सहायक होता है।
- निष्पादन में कुशलता – प्रभावी सम्प्रेषण का कार्य निष्पादन में श्रेष्ठता लाने में बड़ा योगदान होता है । व्यावसायिक इकाई में नियमित सम्प्रेषण के कारण दूसरों से ऐच्छिक सहयोग प्राप्त होता है क्योंकि वह विचार एवं निर्देशो को भली-भांति समझते हैं।
- पेशेवर लोगों के लिए सहायक – वकील अलग-अलग कोर्ट में जाते हैं जो दूर दूर स्थित होते हैं। डाक्टर कई नर्सिग होम में जाते है और चार्टर्ड एकाउन्टेंट कम्पनियों के कार्यालयों में जातें हैं। मोबाइल टेलीफोन से उन्हें अपना कार्यक्रम निर्धारित करने में तथा उसमे आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने में सहायता मिलती हैं।
- आपातकाल में सहायक – यदि कोई दुर्घटना घटित हो जाए या आग लग जाए तो आधुनिक संचार माध्यमों की सहायता से तुरन्त सहायता मांगी जा सकती है या सहायता प्राप्त हो सकती हैं।
- समुद्री तथा वायु यातायात – संचार माध्यम समुद्री जहाज तथा हवाईजहाज की सुरक्षित यात्रा के लिए बहुत सहायक रहते हैं क्योंकि इनका मार्गदर्शन एक स्थान विशेष पर स्थित नियन्त्रण कक्ष से प्राप्त सम्प्रेषण द्वारा किया जाता है।
- शिक्षा का प्रसार – शिक्षा सम्बन्धी अनेक कार्यक्रम रेडियो द्वारा प्रसारित किये जाते हैं और टेलीविजन पर दिखाए जाते है। यह प्रणाली व्यक्तिगत अध्ययन के स्थान पर विद्यार्थियों कों शिक्षा देने की एक अधिक लोकप्रिय प्रणाली बन चुकी हैं।
- विज्ञापन – रेडियो तथा टेलीविजन जन साधारण से संवाद के साधन हैं तथा व्यावसायिक फर्मों के लिए विज्ञापन के महत्वपूर्ण माध्यम है क्योंकि इनके द्वारा बड़ी संख्या में लोगों तक पहुचा जा सकता हैं।
संचार
संचार क्या है?
संचार एक तकनीकी शब्द है जो अंग्रेजी के कम्यूनिकेशन का हिन्दी रूपान्तर है। इसका अर्थ होता है किसी सूचना या जानकारी को दूसरों तक पहुंचाना। इसके माध्यम से मनुष्य के सामाजिक संबंध बनते और विकसित होते हैं। मानवीय समाज के संचालन की समस्त प्रक्रिया संचार पर आधारित है। इसके बिना हम रह नहीं सकते। प्रत्येक मनुष्य अपनी जाग्रतावस्था में संचार करता है, अर्थात् बोलने, सुनने, सोचने, देखने, पढ़ने, लिखने या विचार-विमर्श में अपना समय लगाता है। मनुष्य अपने हाव-भाव, संकेतों और वाणी के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है तो वह संचार है।
संचार मनुष्य के अलावा पशु-पक्षियों में भी होता है, पर इसके लिए माध्यम का होना अति आवश्यक है। भाषा ही संचार का पहला माध्यम है। भाषा के माध्यम से एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से, एक समूह को दूसरे समूह से और एक देश को दूसरे देश से जोड़ा जा सकता है। इसलिए सूचनाओं, विचारों एवं भावनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संप्रेषित करने की कला का नाम संचार है। संचार ही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें में दो या दो से अधिक लोगों की भावनाओं तथा विचारों का संप्रेषण होता है।
संचार ने ही समुचित दुनिया को एक छोटे से गांव में तब्दील कर दिया है। अमेरिकी विद्वान पसिंग ने मानव संचार के छह घटक बताए हैं-
- सर्पिल या कुंडलीदार प्रक्रिया
- कार्य-व्यापार
- अर्थ
- प्रतीकात्मक क्रिया या व्यवहार
- प्रेषण तथा ग्रहण करने से जुड़े सभी तत्त्व
- लिखित, मौखिक एवं शब्द – सहित संदेश
संदेश भेजने वाला ‘प्रेषक’ कहलाता है और संदेश प्राप्त करने वाला ‘प्राप्तकर्ता’ दोनों के बीच एक माध्यम होता है। जिसके सहयोग से प्रेषक का संदेश प्राप्तकर्ता के पास पहुंचता है। प्राप्तकर्त्ता के दिल-दिमाग पर प्रभाव डालता है। जिससे सामाजिक सरोकारों में बदलाव आता है।
संचार-प्रक्रिया का पहला चरण प्रेषक होता है। इसको एनकोडिंग भी कहते हैं। एनकोडिंग के बाद विचार शब्दों, प्रतीकों, संकेतों एवं चिहनों में बदल जा हैं। इस प्रक्रिय के बाद विचार सार्थक संदेश के रूप में ढल जाता है। जब प्राप्तकर्त्ता अपने मस्तिक में उक्त संदेश को ढाल लेता है तो संचार की भाषा में ‘डीकोडिंग’ कहने लगते हैं। डीकोडिंग के बाद प्राप्तकर्त्ता उस संदेश का अर्थ समझता है वह अपनी प्रतिक्रिया प्रेषक को भेजता है तो उस प्रक्रिया को ‘फीडबैक’ कहने लगते हैं।
प्रो. हरि मोहन का कहना है कि कई बार हम उस अर्थ को नहीं ग्रहण कर पाते, जो अर्थ ‘स्रोत’ हम तक पहुंचाना चाहता है। इसका कारण है व्यावधान। अपने अनुभव-अपने क्षेत्र, ज्ञान और संदर्भ के अनुसार ही संदेश का अर्थ ग्रहण करते हैं। ऐसी स्थिति में यदि हम प्रभावपूर्ण ढंग से संचार करना चाहते हैं तो, यह जरूरी है कि हम एक-दूसरे को, एक-दूसरे की मनःस्थिति को समझ कर संवाद करें। संदेश स्पष्ट हो। माध्यम तृष्टि-रहित हो। स्रोत या संदेश प्रेषक के शब्दों और प्रतीकों का अर्थ बहुज्ञात यानी प्रचलित हो। उन शब्दों, चिहनों, संकेतों या प्रतीकों का अर्थ ‘प्राप्तकर्त्ता’ के लिए भी वही हो, जो उनके लिए समाज, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान और साहित्य, कला, संगीत आदि क्षेत्रों में निर्धारित है। पर संदेश के लिए पांच प्रश्नों का उत्तर पूछना अतिआवश्यक है-
- कौन कहता है?
- क्या कहता है?
- किस माध्यम से कहता है?
- किससे कहता है?
- किस प्रभाव के साथ कहता है?
स्रोत प्रेषक → एनकोडर → संदेश → डीकोडर → प्राप्त कर्त्ता
संचार-प्रक्रिया
संदेश पहले ढोल-नक्कारे बजा कर दिया जाता था और हाथी-घोड़े कर बैठकर तथा पैदल चल कर भी। लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य की सोच बदली ठीक वैसे-वैसे संदेश देने के साधन भी बदले। रेलगाड़ी व मोटरकारों ने अपनी दस्तकें देना प्रारंभ किया वैसे ही संदेश के पुराने साधन धीरे-धीरे लुप्त होते गए। मुद्रण की पद्धति का विकास हुआ। पत्र-पत्रिकाओं में मुद्रित होकर संदेश रेलगाड़ी व मोटरकारों द्वारा देश के कोने-कोने में पहुंचने लगा। लेकिन मनुष्य यहीं तक सीमित नहीं रहा। वह अपनी 1 सोच में परिवर्तन ही करता रहा। ध्वनि को शीघ्रता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना संभव बनाया। तार, टेलीफोन एवं उपग्रह संचार के नए माध्यम बने। तार में संदेश संप्रेषित किया जा सकता था लेकिन टेलीफोन ने दूर बैठे व्यक्तियों से बातचीत कराना संभव बनाया। इंटरनेट व उपग्रहों से संचार की प्रक्रिया और आगे बढ़ी।
बृजमोहन गुप्त का कहना है कि संचार जीवन को अर्थपूर्ण और जीवंत बनाता है। यह हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जब हम पढ़ते या सोचते हैं तो संचार होता है, जब हम अपने विचारों को किसी के सामने रखते हैं तब संचार होता है, जब हम अपने विचारों, जानकारी, भावनाओं का किसी के साथ आदान-प्रदान करते हैं तब संचार होता है। यही नहीं, जब हम सोते समय सपने देखते हैं तो यह भी संचार है। कहने का तात्पर्य यह है कि संचार हर समय होता है। कहावत है जीना ही संचारित करना है। इस तरह संचार का महत्त्व मौखिक है। किसी भी सामाजिक व्यवस्था में संचार को मुख्य क्रियाओं को इस प्रकार पहचाना जा सकते है।
विभिन्न विद्वानों द्वारा संचार की परिभाषाएं
संचार एक शक्ति है जिसमें एक एकाको संप्रेषण दूसरे व्यक्तियों को व्यवहार बदलने हेतु प्रेरित करता है।
-हावलैंड
वाणी, लेखन या संकेतों के द्वारा विचारों अभिमतों अथवा सूचना का विनियम करना संचार कहलाता है।
-रॉबर्ट एंडरसन
संचार एक प्रक्रिया है जिसमें सामाजिक व्यवस्था के द्वारा सूचना, निर्णय और निर्देश दिए जाते हैं और यह एक मार्ग है जिसमें ज्ञान, विचारों और दृष्टिकोणों को निर्मित अथवा परिवर्तित किया जाता है।
-लूमिक और बीगल
संचार समानुभूति की प्रक्रिया या शृंखला है जो कि एक संस्था के सदस्यों को ऊपर से नीचे तक और नीचे से ऊपर तक जोड़ती है।
-मैगीनसन
किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अथवा किसी एक व्यक्ति से कई व्यक्तियों को कुछ सार्थक चिह्नों, संकेतों या प्रतीकों के सम्प्रेषण से सूचना, जानकारी, ज्ञान या मनोभाव का आदान-प्रदान करना संचार है।
-प्रो. रमेश जैन
संचार एक जटिल प्रक्रिया का परिणाम है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच अर्थपूर्ण संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता है ये अर्थपूर्ण संदेश, संदेश भेजने वाले और संदेश पाने वालों के बीच एक समझदारी या साझेदारी बनाते हैं।
-प्रो. हरि मोहन
संचार की अवधारणा
कम्यूनिकेशन अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जो लैटिन भाषा के Communitas के साथ जुड़ कर हिंदी भाषा का समुदाय शब्द बनाता है। समुदाय का अर्थ भाईचारा, मैत्री भाव, सहभागिता से लगाया गया है। कुल मिला कर यही कह सकते हैं कि मनुष्य की आपसी व्यवहार, संपर्क, बरताव समुदाय में होता है। पर जब हम किसी के साथ शब्दों से मिलते हैं यानी बातचीत करते हैं तो आपस में उभयनिष्ठ बनाते हैं। इसलिए संचार का अर्थ एक-दूसरे को जानना, संबंध बनाना, सूचनाओं का आदान-प्रदान करना होता है। विचारों को प्रकट करने की कला भी संचार है, और एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचना भेजने का विज्ञान भी।
पत्र पढ़ना भी संचार है। टेलीफोन पर बातचीत करना भी संचार कहलाता है। टेलीफोन से भी संचार होता हो और रेडियो से भी। भाषण भी अपने आप में संचार है । कुल मिलाकर यही कहा जाता है कि दूसरों तक संदेश पहुंचाना या दूसरों से सूचना प्राप्त करना। जहां तक संचार की अवधारणा का सवाल है तो हम यही कह सकते हैं कि जबसे जीव की उत्पत्ति हुई तब से संचार की शुरुआत हुई। क्योंकि संचार मनुष्य के अलावा पशु-पक्षी भी करते हैं। मनुष्य के संचार से पशु-पक्षियों का संचार कुछ भिन्न है। मधुमक्खी का गूंजना भी एक संचार है, पक्षियों का चहचाहना भी संचार है और गाय-भैंस का रंभाना भी संचार है। पर मनुष्य ही उक्त जीवों में श्रेष्ठ जीव है। जिसने संचार प्राप्त करने की विशिष्ट योग्यता प्राप्त की हैं। प्रमाण की विशिष्ट योग्यता प्राप्त करने के लिए मनुष्य ने लाखों वर्ष गुजारे हैं। यानी हम कल्पना कर सकते हैं कि जब मनुष्य विकसित नहीं था। जंगलों में रहता था तब अपने विचारों को एक-दूसरे के पास किस तरह पहुंचाता होगा? इसके ठोस नहीं मिलते। भाषा वैज्ञानिकों ने कल्पना अवश्य की कि पहले मनुष्य ने चित्रों के द्वार अपने विचारों को एक-दूसरे के पास पहुंचाया। इसके बाद संकेतों का निर्माण किया। ध्वनि के अनुसार स्वर व व्यंजनों को बनाया। स्वर व व्यंजनों के योग से एक मानक भाषा का आविष्कार हुआ। इसलिए हम इतना तो कह ही सकते हैं कि मनुष्य ने पहले बोलना सीखा और बाद में लिखना । इसलिए भाषा के विकास के लिए बहुत समय लगाया। जब जाकर मनुष्य संचार की विशिष्ट श्रेणी में आया। विचारों की अभिव्यक्ति जिज्ञासाओं को परस्पर बांटना ही संचार का मुख्य उद्देश्य है।
संचार की विशेषताएं
- संचार जटिल, प्रतीकात्मक, समस्यायुक्त एवं विरोधाभासी प्रकृति का हो सकता है। सामान्य रूप में संचार प्रक्रिया तब व्यवहत होती है जब कोई-न-कोई संदेश संप्रेषित किया जाता है, प्राप्त तथा विश्लेषित किया जाता है। इस प्रकार, संदेश और ग्राह्यतायुक्त प्रक्रिया है। लेकिन इन दोनों प्रक्रियाओं का आधार उद्देश्यपूर्णता से युक्त है। अतः संप्रेषण एवं ग्राह्यता के लिए संचार का उद्देश्यपूर्ण होना अति आवश्यक है।
- संचार का प्रभावी होने के लिए उसका सार्थक होना भी जरूरी है, तभी संचार उत्प्रेरक हो सकता है। इसके अंतर्गत अनुभवों का आदान-प्रदान किया जाता है। यह आदान-प्रदान किया जाता है। यह आदान-प्रदान की क्रिया प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में संपन्न होती है। संदेश का संप्रेषण किया जाता है। संदेश में अनुभव, वर्तमान व्यवहार एवं भविष्य की आवश्यकता निहित है। इस प्रकार दो व्यक्तियों में सार्थकता का निर्माण संप्रेषण से होता है।
- संदेश-प्रेषण से पूर्व संप्रेषक को स्वतः उस सूचना, तथ्य और विचार को हृदयंगम कर लेना चाहिए, तत्पश्चात्, श्रोताओं की पसंद और संचार माध्यम पर ध्यान देना चाहिए।
- संचार में सफलता की प्राप्ति के लिए संग्राहकों उपयुक्त भौतिक वातावरण उपस्थित करना चाहिए।
- संग्राहक पर संदेश के प्रभाव का मूल्यांकन अपेक्षित है।
संचार के तत्व
- स्रोत का संप्रेषण ( Source of Communication)
- संदेश (Message of Content)
- संचार माध्यम (Communication Channels)
- संकेतीकरण (Encoding)
- संकेतवाचन (Decoding)
- संचार प्राप्तकर्त्ता (Receiver)
- प्रतिपुष्टि (Feedback)
संचार के क्षेत्र
- मौखिक संचार (Oral Communication)
जब व्यक्ति अपनी भावनाओं को लिखित रूप न देकर वार्तालाप करता है तो उसे मौखिक संचार कहते हैं। सुनना भी मौखिक संचार के अंतर्गत आता है और हाथ-पैर हिलाना भी। यानी अंग संचालन भी मौखिक संचार का रूप है। वार्ता, गोष्ठी, भाषण सिनेमा, सरकस आदि मौखिक संचार के अभिनव हैं। - लिखित संचार (Written Communication)
जब व्यक्ति अपनी भावनाओं को मौखिक रूप न देकर लिखित रूप प्रदान करता है तो उसे लिखित संचार कहते हैं। सूचनाओं को लिख कर भेजना या प्राप्त करना लिखित संचार की श्रेणी में आता है। अध्यापक का ब्लैक बोर्ड पर समझाना, पत्र लिखना या भेजना आदि लिखित संचार के अंग हैं। - मुद्रण संचार (Printing Communication)
जब सूचनाएं मुद्रित होकर मनुष्य के पास आती-जाती हैं तो उसे मुद्रित संचार कहा जाता है। छापेखाने के आविष्कार के बाद मनुष्य ने अपने विचारों को मुद्रित करके आदान-प्रदान करना शुरू किया। 1456 में गुंटेन बर्ग बाइबल छपकर दुनिया के सामने प्रस्तुत हुई। पत्र-पत्रिकाएं, पुस्तकें, हैंडबिल आदि मुद्रित संचार के अंग हैं। - दूर संचार (Distance Communication)
इसका प्रारंभ की टेलीग्राम प्रणाली से आरंभ होता है । कारकोनी के प्रयास ने दूर संचार के क्षेत्र में चार चांद लगा दिए। यानी मारकोनी की खोज वायरलेस के आने से सूचनाएं तीव्रगति से भेजी गई आई । टेलीफोन एवं मोबाइल से सूचनाएं भेजना एवं प्राप्त करना दूर संचार प्रणाली के अंतर्गत आती है।
[…] सम्प्रेषण और संचार। […]