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सप्रसंग व्याख्या, सूरदास

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2.  बिन गोपाल बैरिन भईं कुंजै।
तब ये लता लागति अति शीतल, अब भईं ज्वाल की पुंजै।।
बृथा बहति जमुना, खग बोलत, ब्रथा कमल फुलै, अलि गुंजैं।
पवन पाति धनसार संजीवनि दधिसुत किरन भानु भईं भुजैं।।
ए, ऊधो, कहियो माधव सो बिरह कदन करि मारत लुंजै।
सूरदास प्रभु को भग जोवत आँखियाँ भईं बरन ज्यों-ज्यों गुंजैं।।

संकेत- बिन गोपाल………. ज्यों-ज्यों गुंजैं।

संदर्भ- प्रस्तुत पद भक्तिकाल की कृष्णकाव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास द्वारा रचित है। जिसका संपादन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ‘भ्रमरगीतसार’ नाम से किया है। प्रस्तुत पंक्तियाँ इसी ‘भ्रमरगीतसार’ से उद्धृत हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ भ्रमरगीत में गोपियों ने उद्धव से कही। कृष्ण जब से अक्रूर के साथ मथुरा गए है, गोपियाँ उनके विरह में व्याकुल है। जो ब्रज और मधुवन कृष्ण की उपस्थिति में गोपियों को अत्यधिक सुकून देता था, वही कृष्ण के वियोग में विष के समावन लग रहा है।

व्याख्या- सूरदास जी ने इस पद में गोपियों की विरह-वेदना को प्रकृति के माध्यम से प्रस्तुत किया है। प्रकृति संयोग की व्यवस्था में उद्दीपन विभाव का कार्य करती है, किन्तु जब वियोग की अवस्था आती है तो ये प्रकृति बहुत ही कष्ट दे रही है। उसकी कोमल शीतलता आज काँटे के समान लग रही है। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव, बिना कृष्ण के ये कुंज ये वन हमारे लिए शत्रु के समान बन गये हैं। जब श्री कृष्ण ब्रज में थे तो ये लताएँ जो शीतल प्रतीत होती थी आज वे ही लताएँ भयंकर अग्नि राशि के जैसी लग रही है। हमें तो प्रकृति के सारे व्यापार निरर्थक लगते हैं। हमारी दृष्टि में यमुना का बहना और पक्षियों का बोलना व्यर्थ लग रहा है। अर्थात् यमुना का बहना, पक्षियों का कलरव, कमलों का खिलना, भौरों का गुँजार आदि आज सब व्यर्थ है, निरर्थक है। अब उनकी कोई उपयोगिता शेष नहीं रह गई है; क्योंकि अब मंद-मंद बहती यमुना की कछारों पर कृष्ण की रासलीला का मंचन नहीं रह गयी। उस समय ये सारी चीजे कितनी सुखद प्रतीत होती थी। गोपियाँ आगे शीतलोपचार में प्रयुक्त होने वाली चीजों के बारे में गिन-गिनकर बताती है कि पवन, पानील, कपूर, संजीवनी बूटी और चन्द्र किरणे आदि चीजे जो शीतलता प्रदान करने वाली प्रकृति में विख्यात है; वे सारी चीजें सूर्य की ज्वाला के समान हमें जला रही है। फिर गोपियाँ उद्धव से आग्रह कर रही है कि हे उद्धव श्री कृष्ण से जाकर हमारी वियोग दशा के बारे में बताना। उन्हें कहना कि जिस प्रकार कोई एक अपंग व्यक्ति को छूरी चुभा रहा होता है, उसी प्रकार आपके वियोग में हमारे पंगु मन को भी आपके वियोग की वेदना सता रही है। उन्हें ये भी बता देना कि उनके इंतजार में हमारी प्रतीक्षातुर आँखे गुंजा के समान लाल हो गई है।

विशेष-

  1. प्रकृति उद्दीपन विभाव के रूप में है।
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