हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

राष्ट्रभाषा, राजभाषा और सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी

0 5,864

भाषा के विविध रूपों-सामान्य भाषा, बोली, विभाषा, भाषा, राष्ट्रभाषा, राजभाषा, साहित्यक भाषा, कृत्रिम भाषा, सम्पर्क भाषा आदि में से केवल राजभाषा राष्ट्रभाषा तथा सम्पर्क भाषा के बारे में विवेचन करना यहाँ अभीष्ट है। राजभाषा हिन्दी का राजभाषा अधीनियम के संदर्भ में विशेष उल्लेख अभिप्रेत है।

राष्ट्रभाषा और राजभाषा

देश की भाषा ही राजनीतिक, धार्मिक सांस्कृतिक आदि कारणों से समग्र राष्ट्र के सार्वजनिक प्रयोग में आ जाती है, उसमें देश की संस्कृति एवं उसमें बद्धमूल आदर्शों की अनिवति होती है तथा उसकी प्रकृति और उसके सम्पन्न साहित्य में यह सामर्थ्य होती है कि देश की अन्य भाषाओं को बिना उनकी प्रगति में बाधक हुए अपने साथ ले चल सके। हिन्दी जो राष्ट्रभाषा हुई है, और सांस्कृतिक कारणों से देशभर में प्रचलित हुई। धार्मिक जनों तथा साधु-सन्तों द्वारा भी सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम हिन्दी को ही प्राप्त हुआ था। अनेक विरोधों के होते हुए भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त हुआ और अहिन्दी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय होती जा रही है। हिन्दी की व्यापकता सम्पूर्ण देश के क्षेत्रों में है।

19वीं सदी का समय हिन्दी के सर्वतोमुखी विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। खड़ी बोली गद्य का निर्माण इसी काल से हुआ।

राष्ट्रीय विकास में उस देश की राष्ट्रभाषा के अतिरिक्त वहाँ की राजभाषा का भी विशिष्ट महत्त्व है। दोनों में अन्तर यह है कि राष्ट्रभाषा का विकास स्वतः स्फूर्त और प्रवाहमान होता है, जबकि राजभाषा शासन तन्त्र की नीतियों के संयोजन का साधन । शासक और शासित के बीच फैले अन्तराल को समाप्त करने में राजभाषा सहायक होती है। पराधीन भारत में मुगलकाल में फारसी और अंग्रेजी में अंग्रेजी भारत की राजभाषा थी। उसे राष्ट्रभाषा का पद जनमानस के व्यवहार के बिना नहीं मिलता। स्वाधीन भारत के नए प्रजातांत्रिक शासनतन्त्र में प्रजोन्मुखी शासन नीति के लिए एक भाषा ऐसी भी सर्वमान्य होनी चाहिए जिसे शासक और शासित दोनों स्वीकार करें। संविधान निर्माताओं ने निर्णय लिया था कि राजभाषा नागरी में लिखी हिन्दी होगी तथा 15 वर्षों तक सह राजभाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा। किन्तु अब तक भी वही सिथति बनाए रखने के लिए समय-समय पर राजभाषा अधीनियम बनाए जाते रहे और द्विभाषिक सिथति के रूप में अंग्रेजी सह-राजभाषा बनी रही।

यहाँ राजभाषा के रूप में हिन्दी संवैधानिक स्थिति, राजभाषा अधीनियम, भाषा नीति विषयक संकल्प तथा राजभाषा नियम आदि का विवेचन प्रस्तुत किया जाता है।

राजभाषा के रूप में हिन्दी

संवैधानिक स्थिति

भारत के संविधान के अनुच्छेद और 343 से 351 तक भारत संघ की राजभाषा के सम्बन्ध में अलग-अलग प्रावधानहैं।

संसद में कार्य संचालन की भाषा संविधान में यह है कि “अनुच्छेद 348 के उपबन्धों के अधीन संसद की कार्यवाही हिन्दी अथवा अंग्रेजी में होगी। परन्तु राज्य सभा का सभापति या लोकसभा का अध्यक्ष इस रूप में कार्य करने वाला व्यकित किसी सदस्य को, जो हिन्दी या अंग्रेजी में अपने को पर्याप्त रूप से अभिव्यक्त नहीं कर सकता, सदन को अपनी मातृभाषा में सम्बोधित करने की अनुमति दे सकेगा ।

इसी अनुच्छेद के खण्ड (2) में यह व्यवस्था थी कि जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपलब्ध न करे तब तक संविधान के लागू होने के 15 वर्ष के पश्चात यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो कि “अथवा अंग्रेजी में शब्द उसमें से लुप्त कर दिए गए हैं।

लेकिन 15 वर्ष पूरे होने से पहले ही राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 के अधीन यह व्यवस्था की गई कि संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद अर्थात 26 जनवरी, 1965 के बाद भी संसद में हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाएगा।

इसी उपबन्ध के अधीन संसद में अंग्रेजी में दिए गए भाषणों का साथ-साथ हिन्दी में अनुवाद करने की व्यवस्था शुरु हुई। तमिल तेलगू, कन्नड़ और मलयालम में दिए गए भाषणों का भी सदन में हिन्दी और अंग्रेजी में साथ-साथ अनुवाद करने की व्यवस्था है।

संविधान के अनुच्छेद 343 (3) के अनुसार अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने के लिए संसद में राजभाषा अधीनियम, 1963 के बाद भी (क) संघ में उन सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए जिनके लिए इस तारीख से पहले अंग्रेजी का प्रयोग किया जा रहा था, और (ख) संसद में कार्य-निष्पादन के लिए हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाए।

धारा 4 में व्यवस्था की गई कि उक्त धारा 3 के लागू होने के 10 वर्ष बाद लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 सदस्यों की एक राजभाषा समिति का गठन किया जाए। यह समिति सरकारी काम-काज में हिन्दी के प्रयोग की समीक्षा करेगी और अपनी सिफारिशों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करेगी। यह रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जाएगी और सभी राज्य सरकारों को भिजवायी जाएगी। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट पर और राज्य सरकारों द्वारा व्यक्त की गई राय पर विचार करने के बाद उस रिपोर्ट के अनुसार निर्देश जारी कर सकते हैं।

राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1967 के अनुसार राजभाषा अधीनियम 1963 की धारा 3 के स्थान पर निम्नलिखित व्यवस्था की गई।

संविधान के लागू होने से 15 वर्ष की अवधी बीत जाने पर भी (क) संघ के उन सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए जिनके लिए 26 जनवरी, 1965 से पहले अंग्रेजी का प्रयोग किया जा रहा था, और (ख) संसद में कार्य-निष्पादन के लिए, हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाएगा।

इस अधिनियम के उपबन्ध में यह भी व्यवस्था की गई कि जिन राज्यों ने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है उनके और संघ के बीच पत्र-व्यवहार के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होगा। जिस राज्य ने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है, उसके और किसी ऐसे राज्य के बीच जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया यदि हिन्दी में पत्र-व्यवहार किया जाता है तो हिन्दी में लिखे गए पत्र के साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद भी भेजा जाएगा। साथ ही, जिस राज्य ने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, वह भी संघ के साथ हिन्दी में पत्र-व्यवहार कर सकता है और ऐसी स्थिति में उस राज्य के साथ किए जाने वाले पत्र-व्यवहार में अंग्रेजी का प्रयोग अनिवार्य नहीं होगा।

धारा (2) में व्यवस्था है कि केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों, विभागों कार्यालयों के बीच परस्पर पत्र-व्यवहार के लिए जब हिन्दी अथवा अंग्रेजी का प्रयोग किया जाये तो उसके साथ अंग्रेजी या हिन्दी अनुवाद, जैसी भी सिथति हो, भेजने की तब तक व्यवस्था की जानी चाहिए जब तक संबंधीत मंत्रालय विभाग कार्यालय के कर्मचारी हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेते।

धारा 3 के अनुसार संघ के निम्नलिखित सरकारी प्रयोजनों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग किया जाएगा :

संकल्प, सामान्य आदेश, नियम, अधिसूचनाएँ, प्रशासनिक या अन्य रिपोर्टें और प्रेस विज्ञप्तियाँ,
संसद के किसी एक या दोनों सदनों में रखी जाने वाली प्रशासनिक और अन्य रिपोर्टें और अन्य सरकारी कागजात,
संविदा, करार, लाइसेंस, परमिट, नोटिस, निविदा, फार्म।

धारा 4 में व्यवस्था है कि राजभाषा के प्रयोग के संबंध में नियम बनाते समय केन्द्रीय सरकार द्वारा सरकारी काम-काज के शीघ्र और दक्षतापूर्वक निबटारे का और जन-साधारण के हितों का सम्यक ध्यान रखा जाएगा और इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि जो व्यकित हिन्दी अथवा अंग्रेजी किसी एक भाषा का ज्ञान रखते हों, वे प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें।

भाषा नीति विषयक संकल्प

राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1967 के साथ-साथ संसद के दोनों सदनों ने संघ की भाषा नीति के संबंध में एक संकल्प भी पारित किया जिसमें सरकार से कहा गया है-

हिन्दी का प्रसार और विकास करने और संघ के विभिन्न सरकारी प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रगामी प्रयोग में तेजी लाने के लिए एक व्यापक और विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया जाए और उसे कार्यानिवत किया जाए।

उपर्युक्त संदर्भ में किए गए उपायों और उनकी प्रगति का ब्यौरा देते हुए एक वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जाए।

संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के बाद अखिल भारतीय और उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं की परीक्षाओं में संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित सभी भाषाओं और वैकल्पिक माध्यम के रूप में अंग्रेजी के प्रयोग की अनुमति दी जाए।

राज्यों आदि, केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से भिन्न के साथ पत्रादि

केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से क क्षेत्र के राज्य को या ऐसे राज्य में (केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से भिन्न) किसी कार्यालय या व्यकित को पत्रादि, असाधारण दशाओं में के सिवाए, हिन्दी में होंगे तथा यदि कोई पत्रादि उनमें से किसी को अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ-साथ उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा।

अ केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से-

(क) ख क्षेत्र के राज्य को या ऐसे राज्य में (केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से भिन्न) किसी कार्यालय को पत्रादि सामान्यतया हिन्दी में होंगे और यदि कोई पत्रादि उसे अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा। परन्तु यदि कोई ऐसा राज्य यह कहता है कि किसी विशिष्ट वर्ग या वर्ग के पत्रादि या उसके कार्यालयों में से किसी के लिए आशयित पत्रादि, उसकी अवधी तक जो संबंधीत राज्य की सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, अंग्रेजी में या हिन्दी में, दूसरी भाषा में अनुवाद सहित भेजे जाएं तो ऐसे पत्रादि उसी रीति से भेजे जायेंगे।

(ख) ख-क्षेत्र के राज्य में किसी व्यक्ति को पत्रादि उसी रीति से भेजे जायेंगे।

केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों के बीच पत्रादि-

(क) केन्द्रीय सरकार एक मंत्रालय या विभाग और दूसरे मंत्रालय या विभाग के बीच पत्रादि हिन्दी में या अंग्रेजी में हो सकते हैं।

(ख) केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग और क क्षेत्र में सिथत संलग्न या अधीनस्थ कार्यालयों के बीच पत्रादि हिन्दी में होंगे और ऐसे अनुपात में होंगे जो केन्द्रीय सरकार, ऐसे कार्यालयों में हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों की संख्या, हिन्दी में पत्रादि भेजने के लिए सुविधाओं और उनके विषयों को ध्यान में रखते हुए, समय-समय पर अवधरित करें:

आवेदन, अभिवेदन, आदि

कर्मचारी कोई आवेदन, अपील या अभिवेदन हिन्दी में या अंग्रेजी में कर सकता उपनियम (1) में निर्दिष्ट कोई आवेदन, अपील या अभिवेदन जब भी हिन्दी में किया है। जाये या उसमें हिन्दी में हस्ताक्षर किए जायें तो उसका उत्तर हिन्दी में दिया जाएगा।

केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में टिप्पणों का लिखा जाना

कर्मचारी किसी फाइल पर टिप्पण या कार्य वृत हिन्दी में या अंग्रेजी में लिख सकता है और उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह उसका अनुवाद दूसरी भाषा में भी प्रस्तुत करें।

उपनियम (1) में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, आदेश देना, ऐसा अधिसूचित कार्यालय विनिर्दिष्ट कर सकती है जहाँ टिप्पण, प्रारूपण और ऐसे अन्य शासकीय प्रयोजनों, के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जायें, उन कर्मचारियों द्वारा जिन्हें हिन्दी प्रवीणता प्राप्त है, केवल हिन्दी का प्रयोग किया जाएगा।

मैन्युअल, संहिताएँ और अन्य प्रक्रिया संबंधी साहित्य, स्टेशनरी आदि

केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से संबंधित सभी मैन्युअल, हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में द्विभाषिक रूप में, यथासिथति, मुद्रित किया जाएगा, साइक्लोस्टाइल किया जाएगा और प्रकाशित किया जाएगा।

केन्द्रीय सरकार के किसी कार्यालय में प्रयोग में लाए जाने वाले प्रारूपों और रजिस्टरों के शीर्षक हिन्दी और अंग्रेजी में होंगे।

केन्द्रीय सरकार के किसी कार्यालय में प्रयोग के लिए लिखे गए, मुद्रित या उत्कीर्ण सभी नामपटट, सूचनापट्ट, पत्रशीर्ष और लिफाफों पर उत्कीर्ण लेख तथा स्टेशनरी की अन्य मदें हिन्दी और अंग्रेजी में होंगी:

अनुपालन का उत्तरदायित्व

केन्द्रीय सरकार के प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व होगा कि वहः
यह सुनिशिचत करें कि अधिनियम और इन नियमों के उपबन्धों का समुचित रूप से अनुपालन किया जाता है, और

सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी

‘सम्पर्क भाषा शब्द अंग्रेजी शब्द लिंग्वा फ्रेंस (Lingue France) के रूप में व्यवहत होता है जिसका अर्थ है ‘सामान्य बोली या ‘लोक बोली। हिन्दी अपने राष्ट्रीय स्वरूप में ही पूरे देश की सम्पर्क भाषा बनी हुई है। अपने सीमित रूप में, प्रशासनिक भाषा के रूप में, हिन्दी के व्यवहार में भिन्न भाषा-भाषियों के बीच परस्पर सम्प्रेषण का माध्यम बनी हुई है। भिन्न-भिन्न भाषा-भाषियों के मध्य परस्पर विचार-विनिमय का माध्यम बनने वाली भाषा को सम्पर्क भाषा कहा जाता है। यद्यपि अंग्रेजी भाषा भारत में सह-राजभाषा के रूप में स्वीकृत है तथापि विश्व के अनेक देशों में वह सम्पर्क भाषा बनी हुई है, जहाँ विभिन्न देशवासी परस्पर अपना सम्पर्क अंग्रेजी में साधते हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष में बोली और समझी जाने वाली राष्ट्रभाषा हिन्दी है, वह सरकार की राजभाषा भी है तथा सारे देश को एक सूत्र में पिरोने वाली सम्पर्क भाषा भी है। इस तरह अपने तीनों रूपों-राष्ट्रभाषा, राजभाषा और सम्पर्क भाषा में हिन्दी भाषा अपना दायित्व सहजता से निभा रही है क्योंकि इन तीनों में अन्तःसम्बन्ध हैं। ‘राष्ट्रभाषा सम्पूर्ण राष्ट्र में स्वीकृत भाषा होती है जबकि प्रशासनिक कार्यों के व्यवहारों में प्रयुक्त होने वाली ‘राजभाषा घोषित की जाती है तथा सम्पर्क भाषा का विकास प्राकृतिक और स्वैच्छिक आधार पर होता है जो सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। सम्पर्क भाषा ही सर्व-स्वीकृत होकर राष्ट्रभाषा बनती है। समृद्ध देशों में राष्ट्रभाषा, राजभाषा और सम्पर्क भाषा के रूप में एक ही भाषा का प्रयोग होता है, जैसे जापान, अमेरीका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, रूस आदि देश। इस दृष्टि से भारतवर्ष भी समृद्ध देश है जहाँ हिन्दी ही अपने तीनों रूपों में प्रयुक्त होती है। हिन्दी ही राष्ट्रभाषा भी है और राजभाषा भी तथा सम्पर्क भाषा भी। विश्व के अनेक देशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार हो रहा है। हिन्दी की गुणवत्ता का अनुभव सभी शिक्षाविदों, विद्वानों, लेखकों और सहृदय सामाजिकों ने किया है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.