मॉडल प्रश्न उत्तर, हिन्दी कविता सेमेस्टर-2, इकाई-3 बिहारी

निम्नलिखित मॉडल प्रश्नोत्तर बी.ए.(ऑनर्स) हिन्दी के सेमेस्टर-2 के पेपर हिन्दी कविता: सगुण भक्तिकाव्य एवं रीतिकालीन काव्य के हैं।
बिहारी (बिहारी रत्नाकर)
प्रश्न-1. “बिहारी हिन्दी मुक्तक काव्य-परंपरा के श्रेष्ठ कवि थे।” इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि थे। उनके द्वारा रचित ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ में दोहा, छंदों का समावेश है। इतना होने पर भी उनमें अत्यधिक भावों की प्रधानता है, इसलिए किसी आलोचक ने इनके विषय पर कहा है- “बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।” साथ ही इनके ग्रंथ के बारे में यह उक्ति कहीं जाती है-
“सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखन मे छोटै लगै घांव करै गंभीर।”
इनकी अनुभूतियाँ (भाव) जितनी सशक्त है, उतना ही सशक्त इनका अभिव्यक्ति-कौशन (कलापक्ष) भी है।
वे जानते थे कि सभा और समाजों के लिए दोहा सर्वाधिक उपयुक्त छंद है क्योंकि इसमें कुछ छंदों के अंतर्गत ही अपनी काव्य-प्रतिभा को दर्शाया जा सकता है। सफल मुक्तककार के लिए इससे अधिक अच्छा छंद कोई और नहीं हो सकता। एक सफल मुक्तक काव्य की संपूर्ण विशेषताएँ इनके ग्रंथ में उपलब्ध हैं। मुक्तक उस रचना को कहते हैं जो स्वयं में अर्थ की दृष्टि से पूर्ण हो और जिसमें पूर्ण और अपार संबंध हो। इसी कारण ‘बिहारी सतसई’ एक लोकप्रिय काव्य-रचना सिद्ध हुई।
बिहारी के मुक्तक काव्य की विशेषताएँ-
1. भाषा की समास शक्ति- कम शब्दों में अधिक भावों को व्यक्त करने के लिए भाषा की समास शक्ति का प्रयोग बिहारी ने किया। इन्होंने बड़े प्रसंगों को भी दोहे की दो पंक्तियों में सम्मिलित कर विलक्षण सफलता प्राप्त की है। इन्होंने अपने आश्रयदाता राजा जय सिंह की अपने छोटी चौहान रानी के प्रति आसक्ति को इस प्रकार दूर किया-
“नंहि पराग नंहि मधुर मधु, नंहि विकास इहि काल।
अली कली ही सौ बिंहयी, आगे कौन हवाल।।”
2. कल्पना की समाहार शक्ति- बिहारी की काव्य प्रतिभा का मूल कारण था- उनकी कल्पना शक्ति। हिन्दी साहित्य में ऐसे कुछ विलक्षण कवि ही हुए है। जिनमें दूर सूक्ष्म कल्पना के बल पर अपने दोहों में साकार करने की यह शक्ति पायी जाती है। इसके द्वारा इनके काव्य में मधुरता सरसता, सहजता और चमत्कार उत्पन्न हो गए हैं।
3. चमत्कार का प्रदर्शन- इन्होंने अपने युग के अनुसार अपने काव्य में चमत्कार के प्रदर्शन की प्रवृत्ति का परिचय दिया। ये परिचय विशेषतः अलंकारों के माध्यम से दिया गया। बिहारी के काव्य में ‘श्लेष’ और ‘यमक’ अलंकारों का चमत्कार अनेक स्थानों पर देखा जा सकता है-
“कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।
उंहि खाऐ बैराय, इंहि पाए हो बौराय।”
इन्होंने शब्दालंकारों के प्रयोग से दोहरे अर्थों का समावेश करके विशेषतः चमत्कार की सृष्टि की है।
4. शृंगार रस की प्रधानता- इनका ग्रंथ मूलतः शृंगार रस से युक्त है। इन्होंने शृंगार रस के दोनों भेदों का प्रयोग किया है। संयोग और वियोग। सयोग पक्ष का अत्यधिक सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इस पक्ष को कोई भी स्थिति उनके नेत्रों से बच नहीं पाई है। इन्होंने नायक-नायिकाओं की प्रेम क्रीड़ाओं, हाव-भाव और नायिका के नख शिख का वर्णन सुंदरता से प्रस्तुत किए हैं। राधा और कृष्ण की सुंदरता से प्रस्तुत किए हैं। राधा और कृष्ण की क्रीडा को उन्होंने प्रस्तुत करते हुए लिखा है-
“बतरस लालच लल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे भौहनुं हसै, दैन कहै नटि जाय।।”
5. प्रकृति चित्रण- इन्होंने छः ऋतुओं का स्वतंत्रता पूर्वक वर्णन किया हैं छः ऋतुओं ग्रीष्म, वसंत, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुओं पर दोहे लिखे हैं। इन्होंने मनुष्य के स्वभाव को प्रकृति से प्रभावित माना और प्रकृति एवं मनुष्य दोनों को आमने-सामने रखकर उसे चित्रित किया। ग्रीष्म की भीषणता को प्रकट करते हुए इन्होंने लिखा है-
“लहलाने एकल वसंत, अति मयूर मृग बाघ।
जगत तपोवन सो कियो, पीरघ दाग निदान।।”
गर्मी से घबराकर छाया भी छाया चाहती हुई गहन वनों में चली गई है और शीत ऋतुओं दिन के छोटे होने से सूर्य की किरणों का मान, घर जंवाई के समान घट गया है। उन्होंने प्रकृति का आलंबन रूप में चित्रण करके अनेक मार्मिक दोहे लिखे हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति का साकार चित्र नेत्रों के सामने उपस्थित हो गया है।
6. प्रेम का वर्णन- इनका प्रेम का वर्णन हृदय को आकृष्ट करने वाला है। इन्होंने प्रेम की अवस्था को विभिन्न दशाओं का चित्रण बड़ी कुशलता के साथ किया है। यह वर्णन मानवेत्तर, नख शिख नेत्र संबंधित दोहों में अधिक अच्छा बना पड़ा है। इन्होंने नायक-नायिका के हाव-भाव एवं प्रेम क्रीडाओं का सुंदर वर्णन प्रस्तुत किया है। इन्होंने अत्यधिक प्रेम के साथ एक नायिका के सौन्दर्य का चित्रण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि उसके काजल से मुक्त नेत्र खंजन पक्षी को लज्जित कर रहे हैं और उसके मुख की आभा के कारण तिथि जानने के लिए ‘तिथि पत्र’ का आश्रय लेना पड़ रहा है-
“पत्रा ही तिथि पाइए वा घर के चहुँ पास।
निति प्रीत पून्यों ही रहत आनन ओज उजास।”