कविता: रोटी और संसद- सुदामा पांडेय ‘धूमिल’

कवि: सुदामा पांडेय ‘धूमिल’
एक आदमी रोटी बेलता है।
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है।
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ…
‘यह तीसरा आदमी कौन है?’
मेरे देश की संसद मौन है।